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केंद्र सरकार या राज्य कौन लेता है GST में छूट का फैसला? जानिए GST काउंसिल में फैसले का पूरा सिस्टम

जीएसटी काउंसिल की दो दिवसीय बैठक बुधवार से शुरू हो रही है और इसमें टैक्स सिस्टम में सुधारों के लिए अहम फैसले लिए जा सकते हैं. ऐसे में जानते हैं कि काउंसिल का संस्थागत ढांचा कैसे तैयार होता है और इसमें केंद्र-राज्यों के वोटों का वेटेज कितना है.

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देश का वित्त मंत्री GST काउंसिल का अध्यक्ष होता है (File Photo: PTI)
देश का वित्त मंत्री GST काउंसिल का अध्यक्ष होता है (File Photo: PTI)

देश में जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक बुधवार और गुरुवार को हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से गुड्स एंड सर्विस टैक्स में सुधार की बात कही थी, ऐसे में इस मीटिंग को लेकर काफी उम्मीदें लगाई जा रही हैं. दो दिन तक चलने वाली इस बैठक में जीएसटी रेट में बदलाव और चार की जगह दो टैक्स स्लैब को लेकर मुहर लगेगी. सरकार टैक्स स्ट्रक्चर को आसान बनाने के लिए प्रयासरत है और इसी वजह से जीएसटी रिफॉर्म पर जोर दिया जा रहा है. 

काउंसिल में कौन-कौन हैं सदस्य 

जीएसटी काउंसिल भारत में वस्तु और सेवा कर (Goods and Services Tax) से संबंधित नीतियों और नियमों को तय करने वाली सर्वोच्च संस्था है. यह एक संवैधानिक बॉडी है, जिसका गठन संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत किया गया है. जीएसटी काउंसिल का मकसद केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स सिस्टम को लेकर कॉर्डिनेशन बनाना और जीएसटी से संबंधित सभी अहम फैसले लेना है. काउंसिल में फैसले लेने की प्रक्रिया में केंद्र और राज्य सरकारें दोनों शामिल होती हैं. साथ ही परिषद के सदस्यों में केंद्र सरकार के मंत्री और राज्यों के वित्त मंत्री होते हैं. 

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जीएसटी काउंसिल का अध्यक्ष देश का वित्त मंत्री होता है और इस नाते वर्तमान में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसकी अध्यक्ष हैं. केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री या कोई अन्य नामित केंद्रीय मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं. हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के वित्त मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं. फिलहाल काउंसिल में कुल 33 सदस्य हैं. इनमें कुल 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधि और दो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि शामिल हैं. 

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कैसे लिए जाते हैं फैसले

काउंसल में वोटिंग या सर्वसम्मति के साथ फैसले लिए जाते हैं. आमतौर पर वोटिंग की नौबत नहीं आती है और आपस में विचार-विमर्श के बाद फैसले हो जाते हैं. लेकिन कुछ जटिल विषयों पर अगर वोटिंग की जरूरत पड़ती है तो उस प्रक्रिया को भी निर्धारित किया गया है. काउंसिल में किसी फैसले पर मुहर लगाने के लिए तीन-चौथाई बहुमत यानी 75% वोटों की जरूरत होती है. 

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जीएसटी काउंसिल की मीटिंग के दौरान राज्यों के प्रतिनिधि (File Photo: PTI)

कुल वोटों के वेटेज में केंद्र सरकार की एक तिहाई यानी 33 फीसदी हिस्सेदारी है. सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को कुल वोटों में दो तिहाई यानी करीब 66.67% हिस्सेदारी मिली हुई है. मतलब 66.67% को 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में बराबर बांटा जाता है. इस तरह, प्रत्येक राज्य का वोट वेटेज करीब 2.15% होता है. उदाहरण के लिए अगर किसी एक प्रस्ताव पर वोटिंग हो रही है और सभी 33 सदस्य वोट डालते हैं, तो केंद्र के पास 33 फीसदी और बाकी 66.67% वोट 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच बट जाते हैं.

वोटिंग में किसका-कितना वेट

जैसा कि तय है कि किसी प्रस्ताव पर मुहर लगने के लिए 75 फीसदी वोटों की जरूरत होती है. इसका मतलब है कि केंद्र (33.33%) को किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए अपने साथ कम से कम 20-21 राज्यों (लगभग 43-45% वोट) का समर्थन चाहिए, क्योंकि 33.33% (केंद्र) + 43-45% (राज्य) = 76-78% (75% से ज्यादा).

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जीएसटी काउंसिल की संरचना इस तरह से बनाई गई है कि केंद्र किसी भी प्रस्ताव को अकेले अपने दम पर पारित नहीं करा सकता और उसे ज्यादातर राज्यों की सहमति चाहिए होती है. उसी तरह, अगर केंद्र किसी प्रस्ताव का विरोध करता है, तो राज्यों को 75% वोट हासिल करने के लिए 31 में से करीब 27-28 राज्यों का समर्थन चाहिए, जो काफी मुश्किल हो जाता है.

क्या करती है जीएसटी काउंसिल

यह काउंसिल न सिर्फ टैक्स की दरें तय करती है, बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स रेवेन्यू का बंटवारा, राज्यों के घाटे की भरपाई, किसी वस्तु पर कितना जीएसटी लगाना है या उसे दायरे से बाहर रखना है, इन सभी मामलों का निपटारा काउंसिल करती है. हालांकि राज्य काउंसिल का फैसला मानने के लिए बाध्यकारी नहीं हैं और वह अपने राज्य में जीएसटी काउंसिल के किसी फैसले को लागू होने से रोक भी सकते हैं. 

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पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे विपक्ष दलों की सरकारों वाले राज्य कई बार काउंसिल से पारित होने के बाद भी किसी फैसले पर सहमत नहीं होते और ऐसे में वह फैसला अपने राज्य में लागू नहीं करते हैं. इसके अलावा कुछ राज्यों का मत है कि केंद्र के पास एक तिहाई वोटों की ताकत इसे राज्यों पर हावी बनाती है. हर राज्य के वोट का वेटेज बराबर होने की वजह से उनका प्रभाव बड़े राज्यों से ज्यादा हो सकता है, जबकि बड़े राज्यों की अर्थव्यवस्था और चुनौतियां छोटे राज्यों से अलग होती हैं, इसे लेकर भी कुछ राज्यों की शिकायतें हैं. बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे कई बड़े राज्य लगातार जीएसटी की वजह से राजस्व में कटौती का आरोप लगाते रहते हैं. 

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क्या टैक्स स्लैब में होंगे बदलाव?

देश में अलग-अलग करों को खत्म करने के लिए 'एक देश, एक टैक्स' के मकसद के साथ एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू किया गया था. इससे पहले अलग-अलग राज्यों में एक ही वस्तु और सेवा पर टैक्स की दरें अलग थीं, जिससे कारोबारियों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन जीएसटी ने इन दिक्कतों को दूर किया है और अब एक देशव्यापी टैक्स सिस्टम लागू है. इस सिस्टम के तहत फैसले लेने के लिए जीएसटी काउंसिल बनाई गई, जिसका काम देशभर में एक टैक्स सिस्टम को लागू करना और राज्यों के साथ मिलकर काम करना है.

इस बार जीएसटी काउंसिल की बैठक में टैक्स स्लैब को सरल किया जा सकता है. मौजूदा जीएसटी सिस्टम में 5%, 12%, 18% और 28% के चार स्लैब्स शामिल हैं, जिसे बदलकर 5% और 18% करने का प्रस्ताव है. नए सिस्टम में ज्यादातर सामानों को सिर्फ दो प्रमुख स्लैब्स में ही रखा जाएगा. प्रस्ताव के मुताबिक जरूरी सामान और सेवाओं पर 5% टैक्स और बाकी वस्तुओं को 18% टैक्स स्लैब में शामिल करने की बात कही गई है. हालांकि कुछ राज्य राजस्व में भारी घाटा होने की बात कहकर प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं. 

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