scorecardresearch
 

एक है धारावी... कहानी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती की जो अब बनेगी 'मॉडर्न सिटी'

करीब 600 एकड़ में फैले इस इलाके में आठ लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. एक से दो लाख लोग प्रति वर्ग किलोमीटर के जनसंख्या घनत्व ने इसे दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक बना दिया है. धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम यानी झुग्गी है. मुंबई के बिल्कुल बीच में बसे इस इलाके को 'मिनी इंडिया' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर प्रवासी बस गए हैं. धारावी सिर्फ एक बस्ती या इलाका नहीं, यह मुंबई की धड़कन है.

Advertisement
X
कैसे बदलेगी धारावी की तस्वीर?
कैसे बदलेगी धारावी की तस्वीर?

मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया का एक सच धारावी भी है. यहां घर को घर कहना भी शायद अतिश्योक्ति होगी, क्योंकि 10X10 फीट के एक मकान में सात-आठ लोगों का परिवार गुजारा करता है. बुनियादी सुविधाएं काश इस इलाके को छूकर निकली होतीं, बेहिसाब भीड़ और गंदगी से फैलने वाली बीमारियों ने धरावी के लोगों की औसत आयु (60 साल) को देश की तुलना में दस साल कम कर दिया है. कहते हैं धारावी कभी नहीं सोती, यहां दिन-रात मशीनें चलती हैं, सुइयां भागती हैं और हथौड़े चलते हैं. 

एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी

करीब 600 एकड़ से ज्यादा में फैले इस इलाके में आठ से दस लाख लोग रहते हैं. चार लाख लोग प्रति वर्ग किलोमीटर के जनसंख्या घनत्व ने इसे दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक बना दिया है. साथ ही धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम यानी झुग्गी है. मुंबई के बिल्कुल बीच में बसे इस इलाके को 'मिनी इंडिया' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां देश के अलग-अलग इलाकों से आए प्रवासी बस गए हैं. धारावी सिर्फ एक बस्ती या इलाका नहीं, यह मुंबई की धड़कन है.

अब धारावी की झुग्गियों को हटाकर इलाके को मॉडर्न सिटी बनाने के प्लान पर काम चल रहा. इसके लिए अडानी ग्रुप और महाराष्ट्र सरकार के बीच एक समझौता हुआ है. इस डील के तहत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने 95,790 करोड़ रुपये की धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) के मास्टर प्लान को मंज़ूरी दे दी है. जनवरी 2025 से इस प्रोजेस्ट पर काम शुरू भी हो चुका है, जिसका मकसद जनवरी 2032 तक धारावी को एक आधुनिक और शहरी क्षेत्र में बदलना है. हालांकि इसे लेकर विवाद भी है और स्थानीय लोगों की चिताएं भी हैं.

Advertisement

धारावी का इतिहास

धारावी को साल 1880 के आसपास बसाया गया था, जब देश अंग्रेजी हुकूमत के अधीन था. ब्रिटिश शासन ने मुख्य शहर से कारखानों और उद्योगों को हटाने के लिए धारावी को बसाया और रोजगार की तलाश में देशभर से मजदूर यहां आकर रहने लगे. लेकिन आज जिस मुंबई को हम जानते हैं वो कभी सात द्वीपों का एक समूह हुआ करती थी. 17वीं सदी तक इन द्वीपों पर पुर्तगालियों का कब्जा था. फिर पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन डी ब्रगैंजा की शादी ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय के साथ हुई और पुर्तगालियों ने अंग्रेजों को मुंबई दहेज में दे दिया.

धारावी में झुग्गियों का अंबार (File Photo: ITG)

मुंबई को तब बॉम्बे कहा जाता था. शहर के ज्यादातर टापुओं पर मछली पकड़ने का काम होता था, लिहाजा ब्रिटिश सरकार ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को किराए पर दे दिया ताकि वह अपना कारोबार चला सकें. मुंबई के अलग-अलग टापुओं में विभाजित होने की वजह से माल और लोगों के आवागमन में दिक्कत आती थी. एक से दूसरे टापू तक जाने के लिए बार-बार नाव का इस्तेमाल करना पड़ता. टापुओं के बीच दलदली जमीन और घना जंगल था. 

सबसे पहले मछुआरे आकर जमे

फिर ईस्ट इंडिया कंपनी ने टापुओं को जोड़ने का प्लान बनाया और साल 1708 में माहिम और सायन के बीच एक कॉजवे बनाया गया. मतलब, पानी के ऊपर से गुजरने वाली सड़क जो दो टापूओं या दलदली जमीन को जोड़ती है. इस कॉजवे के बगल में धारावी नाम की एक बस्ती तैयार हुई. धारावी के दो मतलब हैं- खाड़ी के किनारे का इलाका और ढीली मिट्टी. धारावी शुरुआत में एक दलदली जमीन हुआ करता था. जंगल किनारे बसे इलाके में सबसे पहले कोली मछुआरे आकर बसे, तब उनकी छोटी सी बस्ती थी और यहां कोलीवाड़ा बना, जो आज भी धारावी में मौजूद है.

Advertisement
एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्लम है धारावी

आज जिसे हम धारावी के नाम से जानते हैं, उस इलाके को 19वीं सदी में बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (BMC) ने शहर में शामिल किया. 20वीं सदी आते-आते बॉम्बे एक बड़ा पोर्ट हो गया और देश की ट्रेड कैपिटल बन गया. शहर का विकास जरूरी था, लिहाजा शहर की सफाई को ध्यान में रखते हुए ऐसे तमाम धंधे जिनसे गंदगी पैदा होती थी, उन्हें शहर से बाहर ले जाया गया. तब तक जाकर एक चमड़ा कारखाना खुला और धीरे-धीरे धारावी चमड़े के कारोबार का मुख्य केंद्र बन गया. इसी वजह से धारावी को मलिन बस्ती भी कहा जाता है.

कैसे पनपे छोटे-छोटे उद्योग

चमड़े के कारखाने बनने के बाद यहां तमिलनाडु से कारीगर आए, जिनमें से ज्यादातर को समाज में अछूत माना जाता था. इन लोगों ने धारावी में अपनी एक बस्ती बसाई. इसके बाद मिट्टी को तराशने वाले कुम्हार धारावी आकर बसे. 1930 के दशक में गुजरात से कुम्हारों का एक बड़ा समूह मुंबई आया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1895 में 99 साल की लीज पर जमीन दी और उन्होंने धारावी में अपनी बस्ती बसाई, जिसे आज भी कुम्हारवाड़ा यानी कुम्हारों की बस्ती के नाम से जाना जाता है.

धारावी में लोगों की बेहिसाब भीड़ रहती है. यह दुनिया के सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों में से एक है. इतने लोगों के यहां आकर बसने की सबसे बड़ी वजह थी काम और जमीन, जहां वे अपना जीवनयापन कर सकते थे. यहां जमीन बाकी मुंबई के मुकाबले बहुत सस्ती थी, लिहाजा काम की तलाश में मुंबई आने वाले लोग धारावी में बसते चले गए. 20वीं सदी की शुरुआत में तमिल चमड़ा कारीगर आए, फिर गुजराती कुम्हार आए. उत्तर प्रदेश से कढ़ाई और कपड़े सिलने वाले कारीगर भी यही आकर बसे, इसके बाद यहां रेडीमेड क्लॉथ का काम शुरू हो गया.

Advertisement

देशभर से आए लोग यहां बसते गए

साल 1947 देश आजाद हुआ, लेकिन बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा. पाकिस्तान से बड़ी तादाद में हिंदू शरणार्थी दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में पलायन करके आए. उनमें से कई लोगों ने धारावी में पनाह ली. धीरे-धीरे देशभर से काम की तलाश में आने वाले गरीब परिवार मुंबई आ रहे थे. गुजरात से लोग आ रहे थे, महाराष्ट्र के बाकी इलाकों से भी पलायन हो रहा था और धारावी इन सभी को अपने भीतर समाती चली गई.

धारावी आजादी के समय तक शायद देश की सबसे बड़ी झुग्गी बन गई थी. फिर भी लोगों का आना थमा नहीं. साल 1970 के दशक में महाराष्ट्र के कई ग्रामीण इलाके भीषण सूखे की चपेट में थे. गांव के लोगों के पास अपना घर-बार छोड़कर शहर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. इसी तरह हजारों किसान-मजदूर, कारीगर धारावी आकर बस गए. बिहार और यूपी जैसे राज्यों से हजारों लोग मुंबई आए. मुंबई उनके लिए काम और पैसा कमाने का ठिकाना था. 

धारावी की सूरत बदली, चुनौतियां बढ़ीं

जैसे-जैसे बाकी राज्यों के लोग यहां आते गए, वैसे-वैसे धारावी में जगह कम पड़ती गई. पहले रेलवे लाइन के किनारे आबादी बसी, फिर खाली दलदली जमीन पर किसी ने अपनी झुग्गियां बना लीं. लोगों को जहां भी सिर छिपाने के लिए जगह मिली वहीं अपना आशियाना बना लिया. बगैर किसी प्लानिंग, नक्शे के बिना इधर-उधर फैली धारावी का आकार बढ़ता चला गया. उसकी सूरत बदलती गई और साथ ही बढ़ती गईं चुनौतियां.

Advertisement

बाहर की दुनिया वालों को धारावी शायद नरक जैसा लगे क्योंकि यहां के लोगों के सामने मुश्किलों का एक बड़ा सा पहाड़ है. सबसे पहली और सबसे बड़ी मुसीबत है बेहिसाब भीड़. मुंबई शहर का औसत जनघनत्व करीब 24,000 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है, जिसको बहुत भीड़-भीड़ वाला शहर कहा जाता है. धारावी में आंकड़ा एक से दो लाख प्रति स्क्वायर किलोमीटर है. यानी शहर के औसत से चार गुना ज्यादा. कुछ हिस्सों में तो यह घनत्व चार लाख प्रति स्क्वायर किमी तक पहुंच जाता है. 

गंदी गलियां और पानी की कमी

दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाके धारावी की गलियां इतनी संकरी है कि यहां एक बार में दो लोगों का एक साथ गुजरना तक दूभर है. कई गलियों में तो सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंच पाती. बुनियादी सुविधाएं न के बराबर हैं. धारावी में सड़कें, नालियां, साफ-सफाई सब खस्ताहाल है. ज्यादातर नालियां और सीवर खुले हुए हैं और बरसात में गलियां गटर में तब्दील हो जाती है. पीने के पानी की सप्लाई बहुत कम है. सुबह होते ही महिलाएं और बच्चों की लंबी लाइनें पानी के नलों पर लगती हैं. घंटों इंतजार के बाद कुछ ही लोगों को पानी मिल पाता है. नहाना, कपड़े धोना और बर्तन सफाई जैसे रोजमर्रा के काम अक्सर घर के बाहर गलियों में किए जाते हैं. 

Advertisement

धारावी में टॉयलेट बहुत बड़ी समस्या है. एक अनुमान के मुताबिक औसतन 500 लोगों के लिए एक टॉयलेट है. बहुत से लोग खुली नालियों या सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं. इन हालात का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है. गंदगी, भीड़ और साफ पानी की कमी के कारण यहां बीमारियां फैलना आम बात है. हैजा, टीबी, टाइफाइड जैसी बीमारियों से अक्सर यहां के लोग पीड़ित रहते हैं. 

अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा योगदान

यही वजह है कि जहां भारत में औसत आयु 70 साल से ज्यादा है, वहीं धारावी में 60 साल से भी कम हो जाती है. बाहर से देखने पर धारावी एक उलझा जाल सा लगता है. इसे सुलझाना भी मुश्किल है क्योंकि धारावी को सिर्फ झुग्गी कहना इसकी पहचान को मिटाने के बराबर है. यह सिर्फ रहने की नहीं, बल्कि काम करने और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की भी जगह है. 

धारावी में चमड़े को सिलने का काम करते कामगर (File Photo: AP)

एक अनुमान के मुताबिक धारावी में करीब पांच हजार बिजनेस और 15 हजार से ज्यादा छोटी वर्कशॉप या कारखाने हैं, जिनमें ज्यादातर घरों के अंदर ही चलते हैं. धारावी में हर साल हजारों करोड़ का कारोबार होता है. मुख्य तौर पर धारावी चमड़े के सामान के लिए जाना जाता है. पहले यहां का चमड़ा ब्रिटिश आर्मी के लिए जूते और साजो-सामान बनाने के काम आता था. आज धारावी का अपना लेदर ब्रांड '90 फीट' है, जो बेहतर क्वालिटी के जैकेट और पर्स के लिए जाना जाता है. 

Advertisement

8600 करोड़ सालाना का टर्नओवर

मिट्टी के बर्तन धारावी के कुम्हारवाड़ा में बनते हैं जिनसे हजारों घरों की दिवाली रोशन होती है. पीढ़ियों से यहां कुम्हार मिट्टी को आकार दे रहे हैं. यूपी से आए कारीगरों ने यहां रेडीमेड कपड़ों का काम शुरू किया था, आज भी यह धारावी का बड़ा उद्योग है. छोटी-छोटी वर्कशॉप में कपड़े सिले जाते हैं. उन पर कढ़ाई होती है और यहां बने कपड़े देश-विदेश में एक्सपोर्ट भी किए जाते हैं. 

रिसाइक्लिंग कर कबाड़ से सामान बनता है. यह धारावी की सबसे बड़ी पहचान है और इसे देश का रिसाइक्लिंग हब भी कहा जाता है. रिसाइक्लिंग कैपिटल ऑफ इंडिया मुंबई शहर का करीब 60 फीसदी प्लास्टिक कचरा धारावी में ही रिसाइकल होता है. प्लास्टिक, लोहा, कांच, टिन, कागज और इलेक्ट्रॉनिक कचरा, हर तरह का कबाड़ यहां आता है और प्रोसेस होता है. एक अनुमान के मुताबिक इस रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर एक अरब डॉलर यानी करीब 8600 करोड़ से ज्यादा है और यह करीब ढाई लाख लोगों को रोजगार देता है. 

मौजूदा दौर में सबसे बड़ा सवाल है कि भविष्य की धारावी कैसी होगी? आज धारावी मुंबई की धड़कन बन चुकी है, जो कभी शहर किनारे पर बसी अनचाही बस्ती थी. धारावी की जमीन अब सोने की हो चुकी है और अब इस सोने को तराशने की कोशिश हो रही है, जिसका नाम धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट है. 

धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट क्या है?

धरावी के रिडेवलपमेंट का प्रोजेक्ट अब अडानी ग्रुप के पास है. नवंबर 2022 में अडानी ग्रुप ने 5069 करोड़ की बोली लगाकर इस प्रोजेक्ट को हासिल किया था. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार और अडानी ग्रुप के बीच एक जॉइंट वेंचर कंपनी 'नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (NMDPL) बनी. यही कंपनी धारावी रिडेवलपमेंट का काम कर रही है. इस कंपनी में अडानी ग्रुप की 80 फीसदी हिस्सेदारी है और 20 फीसदी खर्च महाराष्ट्र सरकार वहन करेगी. इस प्रोजेक्ट को दुनिया की सबसे बड़ी शहरी कायाकल्प परियोजना और मुंबई को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त बनाने की दिशा में पहला कदम भी कहा जाता है.

रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट का पूरा प्लान

धारावी की कुल 621 एकड़ जमीन में से करीब 270 एकड़ जमीन पर रिडेवलपमेंट और पुनर्वास का काम होगा. इस 270 एकड़ में से करीब 116 एकड़ में फ्लैट, दुकानें और कारखाने लगेंगे, बाकी के करीब 118 एकड़ को मार्केट में ओपल सेल के लिए रखा जाएगा. प्लान के तहत 50 फीसदी से भी ज्यादा जमीन, करीब 352 एकड़ को रिडेवलपमेंट प्लान में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि यह जमीन रेलवे, नेचर पार्क और एयरपोर्ट के अधीन आती है. 

मास्टर प्लान में ग्रीन स्पेस को भी शामिल किया गया है. इसमें बड़े सिटी पार्क से लेकर छोटे कम्युनिटी प्ले ग्राउंड बनाए जाएंगे. इससे लोगों को घूमने-टहलने के लिए खुली जगह मिल सकेगी. करीब 25 एकड़ के इलाके में म्यूजियम, महिलाओं के लिए हॉस्टल, अस्पताल, सांस्कृतिक केंद्र, स्कूल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का प्लान है. इस प्रोजेक्ट की कुल लागत ढाई से तीन लाख करोड़ आकी गई, जिसमें से 25,000 करोड़ पुनर्वास यूनिट बनाने पर खर्च होंगे. लेकिन विवाद का मुद्दा फ्लैट पाने की योग्यताएं हैं.

पुनर्वास के तहत फ्लैट पाने की क्या हैं शर्तें?

महाराष्ट्र के स्लम पुनर्वास कानून के तहत हर योग्य निवासी को धारावी में ही एक 350 स्क्वायर फीट का फ्लैट मिलेगा, चाहे उसके पास पहले से कितनी भी झुग्गियां क्यों ना हों. योग्य निवासी यानी वो लोग माने जाएंगे जो साल एक जनवरी 2000 से पहले धारावी में रह रहे हों. जबकि एक जनवरी 2000 से 2011 के बीच जिन्होंने धारावी में घर बसाया उन्हें धारावी के बाहर 300 स्क्वायर फीट का फ्लैट मिलेगा, जिसके लिए उन्हें ढाई लाख रुपये चुकाने होंगे. इसके अलावा साल 2011 से 15 नवंबर 2022 के बीच धारावी में रहने वाले लोगों को आयोग्य माना जाएगा और उन्हें धारावी के बाहर किराए पर फ्लैट मिलेगा, 12 साल रहने के बाद वे उसके मालिक बन सकते हैं. किराए पर फ्लैट देने के लिए सरकार ने मुंबई के पूर्वी उपनगरों जैसे मुलंड कंजूर मार्ग और भांडूप में करीब 256 एकड़ सॉल्ट पैन जमीन NMDPL को देने की मंजूरी दे दी है. 

प्रोजेक्ट के तहत फ्लैट पाने की तीन शर्तें

एनएमडीपीएल को सात साल के अंदर धारावीकरों के लिए घर बनाने हैं और पूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 17 साल का टाइम दिया गया है. इस पूरे रिडेवलपमेंट का मास्टर प्लान मशहूर आर्किटेक्ट हाफीज कॉन्ट्रक्टर ने तैयार किया है और महाराष्ट्र सरकार ने रेलवे की जमीन खरीदकर प्रोजेक्ट पर काम करना भी शुरू कर दिया है.

धारावीकरों की चिंताएं और सवाल

धारावी के लोगों के मन में इस प्रोजेक्ट को लेकर डर और कई सवाल हैं. जैसे क्या घर मिलेगा, किसे मिलेगा, योग्यता की शर्तें कौन पूरी करेगा, कट ऑफ डेट क्या होगी, जिनका नाम लिस्ट में नहीं आएगा उनका क्या होगा. रोजगार का क्या होगा? सवाल सिर्फ छत का नहीं है, धारावी के लोगों के लिए झुग्गी सिर्फ घर नहीं बल्कि उनके जीने का सहारा है. क्योंकि उन्हें रहने के साथ-साथ काम करने की जगह भी चाहिए. लाखों लोग यहीं छोटे-मोटे कारखाने, वर्कशॉप और दुकानों से अपना घर चलाते हैं. क्या मॉडर्न सिटी में उन्हें काम धंधे के लिए जगह मिलेगी या सब कुछ छोड़कर जाना पड़ेगा?

प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह धारावी के लोगों की भलाई के लिए नहीं बल्कि बिल्डर्स को फायदे पहुंचाने के लिए हो रहा है. इसी विरोध की वजह से धारावी में प्रदर्शन भी हो रहे हैं. लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से रिडेवलपमेंट चाहते हैं जिसमें उनके रोजगार का भी ध्यान रखा जाए. यह लड़ाई सिर्फ जमीन और मकान की ही नहीं बल्कि पहचान और अस्तित्व की भी है. 

प्रोजेक्ट को लेकर जमकर सियासत

इस रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर राजनीति भी खूब हो रही है. विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे इसे लेकर महाराष्ट्र सरकार पर धारावी को अडानी ग्रुप के हाथों में बेचने के आरोप लगा रहे हैं. उद्धव ठाकरे ने सत्ता में आने पर रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट रद्द करने का वादा भी किया है. पिछले दिनों राहुल गांधी ने धारावी जाकर वहां लेदर का काम करने वाले कारीगरों से मुलाकात भी की थी.

दूसरी तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस का कहना है कि यह प्रोजेक्ट धारावीकरों की भलाई के लिए है. उन्होंने दावा किया कि सरकार सभी को घर दे रही है. सरकारी नियमों के मुताबिक करीब 50 फीसदी आबादी घर पाने के लिए योग्य नहीं है, बावजूद इसके उन्हें किराए पर उसी तरह का मकान दिया जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि 12 साल तक मकान का किराया देने के बाद ऐसे लोग उसके मालिक बन जाएंगे. प्रोजेक्ट के पक्ष में एक दलील यह भी है कि इस विरोध सिर्फ बड़े-बड़े गोदामों के मालिक कर रहे हैं, आम धारावीकर इसके पक्ष में हैं, क्योंकि वह झुग्गी से निकलना चाहते हैं.

धारावी का रिडेवलपमेंट एक बहुत बड़ा मुद्दा है. अगर अडानी ग्रुप के साथ मिलकर महाराष्ट्र सरकार इस मॉडर्न सिटी के काम में सफल होती है तो यह वाकई में लाखों लोगों की जिंदगी बदलने वाला कदम होगा. लेकिन उससे पहले इस प्रोजेक्ट के सभी स्टेकहोल्डर्स की शिकायतों को दूर करना भी जरूरी है, ताकि किसी के घर के साथ रोजी-रोटी पर संकट न आने पाए.

 

धारावी के सिनेमाई रंग

धारावी की झुग्गियों में बसता है 'मिनी इंडिया'

धारावी सिर्फ लोगों की जिंदगी में नहीं बल्कि सिनेमा के पर्दे पर भी दिखती रही है. इनमें ऑस्कर विनर फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' सबसे प्रमुख है. साल 2009 में रिलीज हुई इस फिल्म ने ऑस्कर प्राइज जीता और आठ अकादमी पुरस्कार भी हासिल किए. फिल्म का गाना 'जय हो' आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है. यह फिल्म एक झुग्गी-झोपड़ी के लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है, जो 'कौन बनेगा करोड़पति' शो में आता है और दो करोड़ रुपये का इनाम जीतता है. यह फिल्म उस झुग्गी-झोपड़ी के काले सच को दिखाती है जिसपर भ्रष्ट लोगों का कब्ज़ा है.

हाल ही में एमएक्स प्लेयर की सीरीज़ 'धारावी बैंक' माफिया सरगना थलाइवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका किरदार अभिनेता सुनील शेट्टी ने निभाया है और जो 'धारावी बैंक' से अपना डिजिटल डेब्यू कर रहे हैं. थलाइवन, अपराध सिंडिकेट, धारावी बैंक का मुखिया है और मुंबई की झुग्गी बस्ती धारावी पर राज करता है. झुग्गी बस्ती पर उसकी पकड़ को मुख्यमंत्री जानवी सुर्वे ख़तरा मानती हैं और थलाइवन के साम्राज्य को गिराने के लिए एक साहसी अधिकारी नियुक्त करती हैं. कहानी इसी प्लॉट के आसपास घूमती है. 

जब रणवीर बने 'गली बॉय'

इसके अलावा देसी हिपहॉप पर बनी फ़िल्म 'गली बॉय' धारावी की एक अलग तस्वीर को बयां करती है. यह म्यूजिकल फिल्म एक युवक मुराद के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका किरदार रणवीर सिंह ने निभाया है, और जो अपने रैप गानों से सामाजिक चुनौतियों का सामना करके अपनी पहचान बनाता है. ज़ोया अख्तर द्वारा निर्देशित, यह फिल्म धारावी की झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों के जीवन को दिखाने की कोशिश करती है. यह फिल्म देश की तरफ से ऑफिशियली ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी.

रजनीकांत अभिनीत फिल्म 'काला' बताती है कि कैसे माफिया गिरोह झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों का जीना मुश्किल बना रहे हैं. कहानी का हीरो करिकालन, एक गॉडफादर की तरह है जो अक्सर झुग्गी-बस्ती के लोगों की रक्षा करता है. साल 2018 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में हुमा कुरैशी और नाना पाटेकर ने भी अहम रोल निभाया है. इसके अलावा 'सलाम बॉम्बे' जैसी कल्ट फिल्म भी धारावी की कहानी को बयां करती है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement