बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) और विपक्षी की ओर से लगाए गए 'वोट चोरी' के आरोपों की वजह से देशभर में सियासी घमासान छिड़ गया है. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष के सवालों का जवाब दिया और वोट चोरी के आरोपों को निराधार बताया है. साथ ही बिना नाम लिए राहुल गांधी को हलफनामा दायर करने या देश से माफी मांगने की बात कही है. हालांकि इस पूरे विवाद के बाद विपक्ष और चुनाव आयोग आमने-सामने आ गए हैं.
CEC को हटाने के लिए प्रस्ताव?
अब चर्चा है कि विपक्षी दल, खासतौर पर कांग्रेस मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने का प्रस्ताव ला सकती है. हालांकि अब तक इसकी औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है. कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने सोमवार को कहा कि इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो नियमों के अनुसार CEC के खिलाफ कांग्रेस पद से हटाने का प्रस्ताव ला सकती है. अगर ऐसा होता है तो यह वाकई में देश के इतिहास की बड़ी घटना होगी.
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मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट है जजों को पद से हटाने की प्रक्रिया जैसी ही है. देश के CEC को पद से हटाना जटिल और सख्त प्रक्रिया है, जो भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 में तय की गई है. संविधान में यह सुनिश्चित किया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को सरकार के दबाव से बचाया जा सके, ताकि वह निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर सकें. मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संवैधानिक और स्वतंत्र है, इसलिए उन्हें सिर्फ साधारण बहुमत से नहीं हटाया जा सकता.
पद से हटाने की क्या है प्रक्रिया?
मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने की प्रक्रिया संसद में शुरू होती है. उनके खिलाफ 'दुर्व्यवहार' या 'अक्षमता' साबित करने के लिए पद से हटाने का प्रस्ताव लाया जा सकता है. सीईसी को हटाने का प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है. इस प्रस्ताव को लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ पेश किया जाना जरूरी है. हालांकि इस पूरी प्रक्रिया को महाभियोग की जगह 'हटाने की प्रक्रिया' कहा गया है.
प्रस्ताव पेश होने के बाद, संबंधित सदन के स्पीकर (लोकसभा) या चेयरमैन (राज्यसभा) को इस पर विचार करना होता है. वे इस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं. अगर स्पीकर या चेयरमैन प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, तो वे आरोपों की जांच के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन करते हैं.
आरोपों की जांच करती है कमेटी
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी के मुताबिक इस प्रस्ताव पर भी महाभियोग की तरह संबंधित सदन के अध्यक्ष या सभापति आरोपों की पड़ताल के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाते हैं. इसकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के एक जज करते हैं, जबकि किसी भी हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद कमेटी में शामिल होते हैं. उनकी जांच रिपोर्ट पर सदन चर्चा करता है.
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यह कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त पर लगाए गए आरोपों की गहन जांच करती है. इस प्रक्रिया में मुख्य चुनाव आयुक्त को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है. कमेटी अपनी जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट स्पीकर या चेयरमैन को सौंपती है. अगर कमेटी आरोपों को सही पाती है और मुख्य चुनाव आयुक्त को दुर्व्यवहार या अक्षमता का दोषी ठहराती है, तो हटाने की प्रक्रिया आगे बढ़ती है.
'विशेष बहुमत' से पारित होता है प्रस्ताव
अगर समिति की रिपोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त को दोषी पाया जाता है, तो हटाने का प्रस्ताव फिर से संबंधित सदन में चर्चा के लिए लाया जाता है. इस प्रस्ताव को सदन के कुल सदस्यों के बहुमत (50% से ज्यादा) और उपस्थित या मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना अनिवार्य है. इसे 'विशेष बहुमत' (Special majority) कहा जाता है.
एक सदन में प्रस्ताव पारित होने के बाद, इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है. दूसरे सदन में भी इसे उसी विशेष बहुमत से पारित होना जरूरी है. दोनों सदनों में प्रस्ताव के पारित हो जाने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. संसद की ओर से प्रस्ताव पारित हो जाने पर राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने का आदेश जारी कर सकते हैं. पूरी प्रक्रिया एक ही सत्र में होनी जरूरी है.
राष्ट्रपति जब दोनों सदनों से पारित प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा देते हैं, तो मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटा दिया जाता है. यह प्रक्रिया बेहद कठिन है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम कर सकें. अब तक, भारत में किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को इस प्रक्रिया के माध्यम से हटाया नहीं गया है, जो इस पद की गरिमा और स्वतंत्रता को दर्शाता है.
जब बीजेपी ने की थी कोशिश
यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान साल 2006 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने चुनाव आयुक्त नवीन चावला पर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति से उन्हें पद से हटाने की सिफ़ारिश की थी. इसके बाद बीजेपी चुनाव आयुक्त चावला को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसपर एनडीए के 200 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर थे. लेकिन तब के लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था. इसके बाद बीजेपी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी लेकर गई थी, हालांकि वहां से भी कोई फायदा नहीं हुआ.
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस अपने सहयोगियों को ऐसे किसी प्रस्ताव के लिए सहमत करने में सफल हो पाती है. प्रस्ताव आने के बाद उसे किस सदन में पहले पेश किया जाता है, यह भी तय होना है. इसके अलावा प्रस्ताव आने के बाद स्पीकर या चैयरमैन की भूमिका भी अहम हो जाएगी, क्योंकि चेयर के पास ही उस प्रस्ताव को मंजूर या खारिज करने का अधिकार होता है.