ओंकारदास (39) (नत्था)
गांव के असहाय नत्था को उन्होंने सचमुच विश्वसनीय बना दिया. उसके बाद से उनकी दुनिया, फौरी तौर पर ही सही, बदल गई है.
विशाल शर्मा (29) (रिपोर्टर दीपक)
''मत पूछिए, महीने भर में ब्लड और यूरिन छोड़ सारे टेस्ट हो गए. अंत में रोल मिला तो जान में जान आई.''
फर्रुश जाफर (72) (अम्मां)
''इस रोल के लिए मेरा ऑडिशन नहीं हुआ. आमिर (खान) बोले कि किसकी जुर्रत थी आपका ऑडिशन लेने की?''
शालिनी वत्स (धनिया)
''बुंदेली समझ्ने के लिए मुझे वहां की बोलचाल की एक सीडी दी गई. रघुवीर (यादव) जी ने भी इसमें मेरी मदद की.''
अनूप त्रिवेदी (38)
(जुग्गन दारोगा)
उनका यह बुंदेली जुमला खूब हंसाता हैः ''अपनो तेल पटा पै कर ले, मोए कड़हिया दे दे.''
अम्मां के मुंह से झ्रने वाली 'दुआओं' का जायका तो ले ही लिया होगा आपने अनुषा रिजवी की पीपली लाइव देखकर. एकदम लाइव/जीवंतः ''ये हे हे हे, तोहका मउका मिलेस नाहीं कि तै सुरू ह्वै गई''; ''नत्था काहे जान देय? अरे खुदकसी करै वकरी जोरू धनिया कुलटा ऊ नागिन.'' भाव और जज्बात में सना हर शब्द दर्शक के दिलोदिमाग पर, रेमिंग्टन के टाइपराइटर की तरह, मोटे अक्षरों में उभरता हुआ सा. नत्था-बुधिया की, हमेशा चरपइया पर पड़े-पड़े धरती-आकाश हिलाने वाली अम्मां को यादगार बना दिया है 72 साल की .फर्रूश जाफर ने. उमराव जान (रेखा की मां को याद कीजिए) और स्वदेश के बाद यह उनकी तीसरी पर कॅरिअर की पहली अहम फिल्म है.
उन्हें ही क्यों? कई और कलाकारों को इस फिल्म ने पहला बड़ा मौका दिया है. मसलन भड़भड़िया रिपोर्टर दीपक बने विशाल शर्मा और अंग्रेजी-दां पत्रकार नंदिता बनी मलैका शेनॉय. नत्था और उसकी पत्नी धनिया के किरदार में क्रमशः ओंकारदास मानिकपुरी और शालिनी वत्स की तो यह पहली ही फिल्म है. जुग्गन दारोगा के छोटे पर अहम किरदार में अनूप त्रिवेदी ने भी परदे पर आगाज किया है. उनके किरदारों की खूबियों, आड़े-टेढ़े संवादों के बारे में अब सड़कों-चौराहों पर चर्चे शुरू हो चुके हैं. यानी अब उनके लिए भी वक्त है पीपली के निर्माण के दिनों की गहमागहमी और उससे जुड़े खट्टे-मीठे लम्हों को याद करने का.
ओंकार को तो अमिताभ बच्चन, सलमान खान और अनिल कपूर तक सभी बधाई दे चुके हैं. सालों तक नया थिएटर में छोटे-बड़े रोल करने के बाद अब उन्हें ग्लैमर को नजदीक से महसूस करने का मौका मिला है. जवाहरलाल नेहरू विवि से राजनीति शास्त्र में एम. फिल शालिनी ने शूटिंग स्थल (भोपाल के पास बड़वई गांव) पहुंचने पर पहली बार महसूस किया कि धनिया को सोच में उतारना तो आसान था लेकिन उस पृष्ठभूमि की स्त्री के से बाल और खाली मेकअप से हासिल करना शायद मुमकिन नहीं. नया थिएटर के नाटकों में हबीब तनवीर ने उनसे कभी छत्तीसगढ़ी बोलने को नहीं कहा था. ऐसे में फिल्म में इस्तेमाल बुंदेली उनके लिए चुनौती थी. खैर उन्हें उस बोली की बाकायदा सीडी मुहैया कराई गई और वरिष्ठ अभिनेता रघुवीर यादव (बुधिया) ने उनकी मदद की.
अम्मां यानी जाफर शूटिंग के वक्त भी सबके हंसने का इंतजाम करती थीं. अवधी जबान और तहजीब की जीती-जागती विरासत, उच्च शिक्षित और जौनपुर (उ.प्र.) के एक गांव में 16 साल प्रधान रहीं जाफर सिचुएशन के मुताबिक जब अपने से ही गढ़े जुमले और गालियां निकालतीं तो चारों ओर ठट्ठा ही गूंजता. नत्था की शौचक्रिया तक को रिपोर्ट करने का जिम्मा संभालने वाले विशाल बताते हैं कि ज्यादा चुनौती मुख्यमंत्री राम यादव के इंटरव्यू वाले दृश्य में थी. ''दो कदम चलते हुए ही साबित करना था कि मैं उनका चंपू भी हूं और उनके एकाएक मौके पर पहुंचने से सकपकाया हुआ भी.'' इसमें वे कामयाब रहे. इस रोल की तैयारी के लिए उन्होंने किसी रिपोर्टर को फॉलो करने की बजाए यह देखा कि टीवी पत्रकार बोलने में किस तटस्थता से अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं. दीपक के रोल के लिए उनका महीने भर तक ऑडिशन आदि चला था. वे हंसते हुए याद करते हैं, ''ब्लड और यूरिन टेस्ट को छोड़ सब टेस्ट हो गए.''
मौजूं जुमले गढ़ने में हबीब तनवीर के शिष्य रहे अभिनेता अनूप (जुग्गन दारोगा) भी कम न थे. चारपाई मांगने पर बुधिया को जवाब के रूप में उन्होंने अपनी ओर से यह जुमला ठोकाः ''अपनो तेल पटा पै कर ले, मोए कड़हिया दे दे.'' पीपली को लाइव बनाने में इस तरह के आंचलिक जुमलों का बड़ा रोल रहा है. उससे भी बढ़कर इन अभिनेताओं की अनगढ़ किस्म की ऊर्जा ने उनके किरदारों की धमनियों में प्राण डाले हैं. पीपली का नाम आने पर आखिर यही चेहरे तो याद आएंगे हमें.;-शिवकेश