scorecardresearch
 

रानी 'पद्मिनी' के पिता का साम्राज्य, जहां हाथियों के वजन से हिलती थी धरती

संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत पर विवाद के बीच 25 जनवरी को रिलीज हो रही है. पद्मावत के विवाद की जड़ में कथित ऐतिहासिक कहानी का चित्रण है. हालांकि सेंसर के निर्देश के बाद निर्माताओं ने साफ़ कर दिया है कि इसकी कहानी मूल रूप से अवधी के कवि मालिक मोहम्मद जायसी की कृति 'पद्मावत' पर आधारित है.

Advertisement
X
भंसाली की पद्मावत का एक सीन
भंसाली की पद्मावत का एक सीन

संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत पर विवाद के बीच 25 जनवरी को रिलीज हो रही है. पद्मावत के विवाद की जड़ में कथित ऐतिहासिक कहानी का चित्रण है. हालांकि सेंसर के निर्देश के बाद निर्माताओं ने साफ़ कर दिया है कि इसकी कहानी मूल रूप से अवधी के कवि मालिक मोहम्मद जायसी की कृति 'पद्मावत' पर आधारित है.

किसी किताब पर आधारित फिल्मों का चित्रांकन करने में मूल कहानी का वर्णन और घटनाओं का छूट जाना आम है. खासतौर से हिंदी के लोकप्रिय सिनेमा में ऐसा अक्सर देखा जाता है. ऐसे में हम अपने पाठकों को 'पद्मावत' से उन चुनिंदा वर्णनों को बताने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा जायसी ने लिखा है. ट्रेलर और निर्माताओं की ओर से जारी तमाम प्रोमो देखने के बाद हम पद्मावत के ऐसे ही छूटे हिस्से को किश्तों में पेश कर रहे हैं. पहली किश्त में पढ़िए, पद्मिनी के पिता, उनके नगर और ऐश्वर्य का विवरण....

Advertisement

पहला खंड : स्तुति  

जायसी की पद्मावत में कुल 33 खंड हैं. पहले खंड की शुरुआत स्तुतिखंड से होती है. इसमें 192 चौपाइयां और दोहे हैं. पहले खंड में ईश्वर और उसकी तमाम अवस्थाओं, रूप-गुणों का वर्णन है. इसी खंड में कवि ने अपना भी परिचय दिया है और गुरु का भी वर्णन किया है. दिल्ली के सुल्तान शेरशाह, उनकी सेना के साथ पीर सैयद जहांगीर, उनके पुत्र पुत्रियों और चिश्तियों का वर्णन है. कवि ने अपनी अपंगता का भी जिक्र किया है स्तुति खंड के अंत में पद्मावत का कथासार भी वर्णित है.

दूसरे खंड का परिचय

दूसरा खंड 'सिंहलद्वीप वर्णन' पर आधारित है. इसमें पद्मिनी के पिता, उनके वैभवशाली राज्य, उसकी शक्तियों और पद्मिनी के जन्म की दास्तां है.

'धनि सो दीप जंह दीपक नारी, औ सो पदुमिनी दइअ अवतारी.  

सात दीप बरनहिं सब लोगू, एकौ दीप न ओहि सरि जोगू.

दिया दीप नहीं तस उजियारा, सरां दीप सरि होई न पारा.'

जायसी के वर्णन में सिंहलद्वीप ऐसा मुल्क है, जिसमें जिसका जो रूप है उसे वह वैसे ही नजर आता है. यह ऐसा धन्य द्वीप है जहां महिलाएं दीपक की तरह हैं, जहां खुद ईश्वर ने पद्मावती का अवतार कराया. सात द्वीपों का वर्णन किया जाता है, पर एक भी द्वीप की इससे तुलना नहीं की जा सकती. दिया द्वीप में वैसा उजाला नहीं है. सरन द्वीप भी सिंहल की बराबरी में कहीं नहीं ठहरता. और तो और जंबू द्वीप भी वैसा नहीं है. लंकाद्वीप उसकी परछाई के बराबर भी नहीं है. कुश स्थल द्वीप में जंगल है. और मरुस्थल द्वीप तो मनुष्यों के रहने के लायक ही नहीं. सभी द्वीपों में सिंहल द्वीप से उत्तम कोई द्वीप नहीं है.

Advertisement

पद्मावत को लेकर भड़की एक्ट्रेस, कहा- रेप, यौन शोषण और भ्रूण हत्या करो बैन

संसार के दूसरे इंद्र की तरह थे पद्मिनी के पिता

पद्मिनी गंधर्व सेन की बेटी हैं जो यहां के राजा हैं. जायसी लिखते हैं - 'लंका में जैसा रावण का राज्य सुना गया है, उससे भी बढ़कर गंधर्वसेन का साज सामान था. उनके पास 56 करोड़ सैनिकों से सज्जित दल था. घुड़साल में 16 सहस्त्र घोड़े थे. ये घोड़े तुषार देश से लाए गए थे, जो श्यामवर्णी घोड़ों के वंशज थे. गंधर्वसेन के पास स्वर्ग के ऐरावत हाथी जैसे बली सात हजार सिंहली हाथी थे. गंधर्वसेन की आभा संसार में दूसरे इंद्र की तरह थी.

अइस चक्कवे राजा चहुँ खंड मै होई, सबै आई सर नावहिं सरबरि करै न कोई.

गंधर्वसेन ऐसा चक्रवर्ती राजा था चारों खंड में जिसका लोग भय करते थे. कोई उनकी बराबरी नहीं करता था, उनके आगे अपना सिर झुकाते थे. जायसी के वर्णन में उस द्वीप की खूबसूरती कुछ ऐसी है कि उसके नजदीक मात्र जाकर लोगों को लगता था जैसे स्वर्ग के पास आ गए हों. ऐसा देश जहां जेठ जैसे भयंकर तपिश वाले मौसम में भी जाड़ा लगता है. बारिश के दौरान रात जैसा अंधेरा हो जाता ह. वहां के आमों की बगिया छहों ऋतुओं में फूलती है.

Advertisement

अस अम्बराउं सघन घन बरनि न पारौ अंत, फूलै फरै छंहू रितु जानहु सदा बसंत.

वहां का मौसम हमेशा बसंत ऋतू जैसा है. जायसी कहते हैं, 'वहां तमाम तरह के फल फूल और मेवे हैं, कई का वो नाम तक नहीं जानते. इन्हें जो भी चखता, लुभा जाता. वहां के पंछी माहौल को और रमणीय बना देते हैं. मानों अपनी-अपनी भाषा में देवताओं का नाम ले रहे हों. बस कौए के बोलने पर कोलाहल होता है.' पग-पग पर कुआँ बावड़ियाँ हैं. कुंड हैं. इनमें नीचे तक सीढ़ियां हैं.

कोई ब्रह्मचर्ज पंथ लागे, कोई दिगंबर आछहिं नांगे.

कोइ सुरसती सिद्ध कोई जोगी, कोइ निरास पंथ बैठ बियोगी.

इनके नाम तीर्थों पर रखें हैं. उनके किनारे मठ और मंडप हैं. जहां बड़े ऋषि संन्यासी उपवास कर रहे हैं. ये मामूली नहीं हैं, कोई नंग-धडंग दिगंबर है, किसी को सरस्वती सिद्ध हैं और कोई महेश्वर हैं. जैन साधु भी हैं.

पद्मावत: UP से गुजरात तक करणी सेना की 'महाभारत'

लंक दीप कई सिला अनाई, बांधा सरवर घाट बनाई.

उलथहिं सीप मोति उतिराहीं, चुगहिं हंस औ केलि कराहीं.

सिंहलद्वीप में मानसरोवर भी है जिसका जल समुद्र की तरह अगाध सुंदर दिखाई देता है. पानी तो मानो अमृत की तरह मोती जैसा निर्मल है. उसमें कर्पूर की सुगंध भी है. लंका द्वीप से लाए पत्थरों से इसके किनारों पर चार घाट बनाए गए हैं. उन पर पाल भी बांधा गया है. सरोवर में कमल दल भी हैं. सरोवर के हंस मोतियों को चुगते हुए पानी में खेल रहे हैं.

Advertisement

सिंहलद्वीप की औरतें पद्मिनी जैसी सुंदर हैं -

आंवाहिं झुंड सो पांतिहि पांती, गवन सोहाइ सो भांतिहि भाती

जासौं वै हेरहिं चख नारा, बांक नैन जनु हनहिं कटारी.

सरवर पर पानी भरने आने वाली महिलाएं पद्मिनी जाति जैसी सुंदर हैं. उनका शरीर कमल की गंध से महकता है. वो इतनी खूबसूरत हैं कि चलने के दौरान तरह-तरह से सुंदर लगती हैं. महिलाएं प्रसन्नता और कौतुक से सरोवर तक आती-जाती हैं. वो जिसकी ओर देखती हैं मानों अपने बांके कटाक्षों से उसे कटारी मारती हैं.   

नगर की बसावट -

सिंघल नगर देखु पुनि बसा, धनि राजा असि जाकर दशा

ऊंची पंवरी ऊँच अवासा, जनु कबिलास इंद्र कर बासा

सिंहल नगर की बसावट के बारे में जायसी कहते हैं- वह राजा धन्य है जिसकी ऐसी स्थिति है. सिंहलद्वीप में ऊंचे द्वार और ऊंचे आवास है. मानो स्वर्ग में इंद्र का भवन हो. इस राज्य में राजा रंक सब सुखी हैं. जिसे देखो वही हंसता हुआ नजर आता है. इस देश में बैठने के चबूतरे भी चंदन के बनाए गए हैं. चौपालों के खम्बे भी चंदन के हैं. ये सब कुछ इन्द्रासन की नगरी अमरावती में दिखाई पड़ता है. लोगों के बातचीत की भाषा शुद्ध संस्कृत है. घर-घर में पद्मिनी स्त्रियां रूप के दर्शन से मोहित करती हैं. नगरी के बाजार भी देखने योग्य हैं. बाजार में माणक, मोती और हीरों के ढेर लगे हुए हैं. कस्तूरी चंदन का भंडार लगा हुआ है.

Advertisement

गढ़ पर बसहिं चार गढ़पति, असुपति, गजपति औ नरपती.

सब क धौरहर सोनै साजा, औ अपने अपने घर राजा.

पुनि चलि देखा राज दुआरू, महिं घूंबिअ पाइअ नहिं बारू.

हस्ति सिंघली बांधे बार, जनु सजीव सब ठाढ़ पहारा.

सिंहल में गढ़ के ऊपर चार लोग बसते हैं. गढ़पति अश्वपति, गजपति और नरपति. सबके महल सोने से सजे हैं. सब अपने घरों के राजा हैं. उनकी देहरी में पारस पत्थर लगे हैं. किसी ने जीवन में दुख या चिंता को नहीं जाना है. खड्ग दान में कोई उनकी बराबरी नहीं करता.

सोलह सहस पदुमिनी रानी, एक एक ते रूप बखानीं.

अति सुरूप औ अति सुकुवार, पानि फूल के रहहिं अधारा.

तिन्ह ऊपर चंपावती रानी, महा सुरूप पाट परधानी.

राजद्वार पर सिंहली हाथी बंधे हैं. ये इतने ताकतवर हैं कि धरती से उनका वजन सहा नहीं जाता. धरती हिल जाती है. राजा के नीले समंद घोड़ों की क्या बखान. पूरा संसार उनकी चाल को जानता है. ये ऐसे घोड़े हैं जो इशारे पाए तो समुद्र पर भी दौड़ सकते हैं. गंधर्वसेन की राजसभा इस प्रकार बैठती नजर आती है जैसे इंद्र की सभा हो. जिस आसन पर राजा बैठते हैं उसका छत्र आसमान को छूटा नजर आता है. राजा का रूप ऐसा है जैसे सूर्य तप रहा हो. राजमंदिर के रनिवास में पद्मिनी जाति की सोलह सहस्त्र स्त्रियां हैं. सबकी सब अति सुंदर और अति सुकुमारी. ये केवल पान फूल खाकर जिंदा रहती हैं. इन सबके ऊपर रानी चंपावती हैं. वो महारूपशालिनी और पट्टमहादेवी के पड़ की अधिकारिनी हैं. सब रानियां उन्हें प्रणाम करती हैं. वह रोज अलग-अलग साज-सज्जा में सुंदर दिखाई पड़ती हैं.

Advertisement

जायसी की पद्मावत में स्तुतिखंड और सिंहलद्वीप वर्णन खंड के बाद जन्मखंड शुरू होता है. इसी खंड में रानी पद्मिनी के जन्म की कहानी है.

Advertisement
Advertisement