वरिष्ठ अभिनेता और निर्देशक शेखर सुमन ने दुख जताया कि टीवी शोज में कॉमेडी के नाम पर आज कल जो दिखाया या सुनाया जा रहा है वह ह्यूमर नहीं है. आज के वक्त में ह्यूमर के लिए स्पेस ही नहीं बचा है. उन्होंने कहा, "ह्यूमर खौफ में छिपा पड़ा है. हम कहें तो किससे कहें. क्योंकि लोगों ने हर चीज का बुरा मानना शुरू कर दिया.
सुमन ने कहा, "हमारे समाज में असहनशीलता अब इतनी ज्यादा हावी है कि कुछ भी कहना-सुनना मुश्किल हो रहा है. मेरे ख्याल से ह्यूमर, जैसा नाम में ही है ह्यू मर; कहीं मर गया है. लेकिन उन्होंने कहा कि तलाश जारी है, ह्यूमर वापस आएगा."
सुमन ने कहा, "अगर इसका पोस्टमार्टम हो तो देखेंगे कि जब आप जिंदगी में सेंसिटिव हो जाते हैं या बहुत डिफेंसिव हो जाते हैं तो कहीं न कहीं आप जिंदगी को नकार रहे होते हैं. पहले एक ज़माना था, जब हम लोग राम और हनुमान पर भी कटाक्ष करते थे. समाज सहनशील था. वो जानता था कि वो फूहड़ नहीं है. लेकिन अब लोग कहते हैं कि आपने फला चीज के बारे में ये कैसे कह दिया. वो क्यों कह दिया.
मंगलवार को आजतक के मुंबई मंथन 2018 में 'कहां गया सेन्स ऑफ ह्यूमर' में शेखर सुमन ने ये बातें कही. इस सत्र का संचालन निधि अस्थाना ने किया. इस दौरान महशूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव भी मौजूद रहे.
कॉमेडी शोज का स्तर बिगड़ता जा रहा है
सुमन ने कहा, "ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यहां सोच इन्वॉल्व नहीं है. और जहां सोच या अध्यात्म नहीं इन्वॉल्व हो रहा है, ऐसी जगहों पर ह्यूमर फूहड़ हो ही जाएगा. यही वजह है कि कई लोग आज व्यापार के लिए इसका (ह्यूमर) इस्तेमाल कर रहे हैं. ये फूहड़ दौर है."
सुमन ने कहा, "पहले समाज ज्यादा पढ़ा लिखा था. सभ्य थे. ऐसा था इसीलिए शरद जोशीजी, हरिशंकर परसाई जी या इन जैसे लेखकों ने लिखा. लोगों ने सराहा. आज के दिन वो शायद लिखते तो कोर्ट में केसेस लड़ रहे होते. कि आपने मजहब या तमाम दूसरी चीजों के बारे में ये क्यों कह दिया. तो कहीं न कही जेहिनियत समाज से गायब हो जाती है तो फूहड़ता आती है. अनपढ़ समझ नहीं पाते क्या बात हो रही है. और फिर विरोध के बाद ह्यूमर की जगह ही ख़त्म हो जाती है."