उन्होंने कार मकेनिक के तौर पर काम करने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में बिमल राय की फिल्म बंदिनी (1963) के साथ दस्तक दी. अब तक पद्म भूषण, साहित्य अकादेमी, राष्ट्रीय पुरस्कार, एकेडमी अवार्ड और ग्रैमी अवार्ड (दोनों ही स्लमडॉग मिलेनेयर के गीत जय हो के लिए) सरीखे न जाने कितने सम्मान पाने वाले 79 वर्षीय फिल्ममेकर और शायर संपूर्ण सिंह कालरा को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 2013 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया है. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंशः
देश और विदेश के बड़े सम्मानों के बाद दादा साहेब फाल्के सम्मान मिलने पर कैसा लग रहा है?
जब भी कोई सम्मान मिलता है तो अच्छा लगता है. यानी जो काम कर रहा हूं, उसके लिए सराहा जा रहा है. इससे पता चल है कि जिस पर चल रहा हूं, वह सही रास्ता है.
पांच दशक पहले शुरू हुआ करियर 2014 तक बदस्तूर जारी है, ऐसा कैसे?
जिस तरह समाज बदलता है, फिल्में बदलती हैं और उसके साथ हम भी बदलते हैं. बस इसी तरह सफर चला आ रहा है.
बतौर शायर और लेखक आप ने किस तरह खुद को नए दौर के लिए तैयार किया?
मैंने कहा न कि बदलते दौर के साथ चलना होता है. पीढ़ी बदलती है तो फिल्में भी बदलीं. आपकी जनरेशन आई तो उसकी जुबान भी साथ ही आई. बस, जो आता गया उसके साथ होते गए और सब अपने आप से होता चला गया.
रचनात्मकता के नजरिये से जो आपको मिला, उससे खुश हैं?
काम को पहचान मिलना, रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े किसी भी इनसान के लिए सुकून देने वाली बात है. आगे भी काम करते रहना है.
कभी कोई ऐसा मौका आया जब फिल्म बनाते समय या लिखते समय आपने खुद को थोड़ा मुश्किल में पाया हो?
नहीं...नहीं...ऐसा नहीं हुआ. मैं वही काम हाथ में लेता हूं जिसे करने की मेरी कूव्वत है. सिर्फ वही करता हूं, जो मुझे आता है.
शायरी, डायरेक्शन, टीवी सीरियल और किताबें, इतना सब कैसे कर पाते हैं?
देखिए, सब नेचुरली है. काम करते जाने से ही राह निकलती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.
पचास साल से इंडस्ट्री में टिके हैं और बेहतरीन काम कर रहे हैं. आपकी सफलता का कोई मंत्र है?
देखिए, मंत्र तो मदारी लोगों के पास होते हैं. हम तो सिर्फ काम और मेहनत करते हैं.
फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गजों के साथ काम किया है, कुछ खास नाम?
बिमल राय, एस.डी. बर्मन...