कार्यकाल के आखिरी पड़ाव पर खड़ी नरेंद्र मोदी सरकार से जहां आम आदमी से लेकर छोटी-बड़ी इंडस्ट्री आस लगाकर बैठी हैं वहीं चुनौतियों के दौर से गुजर रही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री भी उम्मीदों का पुलिंदा बांध रखा है. फिल्म इंडस्ट्री की कुछ मांगें लंबे वक्त से लंबित हैं. हालांकि सत्ता के शीर्ष पर इंडस्ट्री लीडर्स की प्रधानमंत्री मोदी से सीधी बात के बाद कई रियायतें मिलने की खबर भी सामने भी आई. मोदी सरकार ने हाल ही में फिल्म उद्योग के लिए जीएसटी को लेकर बड़ी राहत दी. लेकिन इंडस्ट्री की उम्मीदों का टाइटल अभी भी "दिल मांगे मोर" है.
जुलाई 2017 में देशभर में जीएसटी लागू होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री के लिए 100 रुपये से ऊपर के सभी टिकट्स को सर्वाधिक 28 फीसदी के टैक्स प्रावधान से बड़ा धक्का लगा. डिजिटल दौर में इंडस्ट्री पहले से ही डिमांड से जूझ रही थी, और टैक्स में हुए इजाफे की वजह से दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचना बेहद मुश्किल हो गया. देखा गया कि भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण राज्य तमिलनाडु में जीएसटी के अलावा सभी गैर-तमिल फिल्मों के टिकट पर 'लोकल बॉडी एंटरटेनमेंट टैक्स' के नाम पर 48 फीसदी ज्यादा टैक्स वसूलना शुरू कर दिया गया.
सिनेमाघरों के टिकट दरों पर लगने वाले जीएसटी में कटौती की मांग सरकार स्वीकार कर चुकी है. हाल के दिनों में प्रधानमंत्री मोदी कई मर्तबा फिल्म निर्माता और अभिनेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. मुंबई में भारतीय सिनेमा के संग्रहालय के उद्घाटन के दौरान भी मोदी ने फिल्म निर्माण से जुड़ी तमाम हस्तियों से बात की थी. इन मुलाकातों में बीजेपी की राजनीतिक लाभ हानि को भी देखा गया. कवायद को लेकर एक धड़े ने यह भी माना कि ये खास तौर पर आने वाले चुनाव में सितारों की भूमिका का इस्तेमाल कर वोट बटोरने की कोशिश भी है. उधर, इंडस्ट्री भी सत्ता के गलियारों तक पहुंच बनाकर अपना हित साधने की कोशिश करती दिख रही है. व्यावसायिक लिहाज से उसकी कई समस्याएं जायज भी हैं.
सिनेमा जगत की दिक्कतें
इस सबके बावजूद फिल्म निर्माण में जीएसटी के बाद बढ़ी लागत एक अहम मुद्दा है. जीएसटी का प्रभाव फिल्म निर्माण के प्रत्येक पक्ष पर पड़ा है. होटल बुकिंग, यातायात, संसाधन, लोकेशन्स, शूटिंग राइट्स जैसी अधिकांश सेवाएं अब फिल्म मेकिंग को महंगा कर रहा है. लिहाजा फिल्म निर्माताओं की मांग है कि सरकार फिल्म प्रोडक्शन के पक्ष को ध्यान में रखते हुए 2016 में निर्मित नेशनल आईपीआर पॉलिसी के प्रावधान को जल्द से जल्द लागू करे.
हालांकि फिल्म जगत को इंडस्ट्री का दर्जा पहले मिल चुका है अब उसे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के प्रावधानों से राहत की उम्मीद है. फिल्म जगत की मांग है कि किसी अन्य कारोबार की तर्ज पर फिल्म जगत के लिए भी फिल्म क्लियरेंस, ब्रॉडकास्टिंग परमिशन और शूटिंग और स्क्रीन बिल्डिंग के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस की सुविधा दी जाए.
View this post on Instagram
#Mumbai is home to a wonderful National Museum of Indian Cinema. Go visit it whenever you can!
View this post on Instagram
View this post on Instagram
Congratulations @priyankachopra and @nickjonas. Wishing you a happy married life.
सिनेमा जगत की चुनौतियां
इसके अलावा मौजूदा समय में जिस तरह से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को वैश्विक फिल्म इंडस्ट्री से चुनौती मिल रही है, कुछ फिल्म प्रोड्यूसर्स का मानना है कि सरकार भारत में ही फिल्म की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए कुछ छूट अथवा इंसेंटिव का प्रावधान कर सकती है. इससे विदेशी विदेशी प्रोडक्शन कंपनियों की तुलना में भारतीय कंपनियों का काम करने में सहूलियत मिलेगी.
फिल्म इंडस्ट्री को केंद्र सरकार से आस है कि वह एंटी पाइरेसी कानून को और मजबूत करे इसके साथ ही इंटरनेट और मोबाइल इंडस्ट्री भी फिल्म इंडस्ट्री के इस पक्ष पर साथ काम करे. गौरतलब है कि देश में फिल्म जगत के सामने पाइरेसी की बड़ी चुनौती है और इंटरनेट और मोबाइल के इस दौर में फिल्म रिलीज से पहले इन माध्यमों के जरिए दर्शकों तक पहुंच जाती है. वहीं इसी दिशा में सरकार को जल्द से जल्द केबल डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया को तेज रफ्तार से पूरा करना चाहिए.
साथ ही डिमांड बढ़ाने की दिशा में एक बार फिर इंडस्ट्री मांग कर रही है कि साल 2000 की तर्ज केंद्र सरकार सिनेमाघरों को राहत दे. गौरतलब है कि 2000 में मल्टीप्लेक्स और सिनेमाहाल निर्माण में सरकार ने 5 साल के टैक्स हॉलिडे का प्रावधान किया था. इंडस्ट्री का मानना है कि अब जब देश में बिजली, सड़क इत्यादि जैसी मूलभूत सुविधाओं में बड़ा सुधार हो रहा, उसे मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों के निर्माण के लिए राहत का प्रावधान करना चाहिए.