वक्त और मौके की नजाकत को समझर खेलने का अंदाज बदल लेने वाले को ही खिलाड़ी कहते हैं. बॉलीवुड में तरह-तरह के खेल खेल चुके अक्षय कुमार कुछ वक्त पहले निर्माता बनने की बातों को सुनकर ऐसे खिल्ली उड़ाते थे, गोया दुनिया में इससे बुरा कोई मजाक नहीं है.
पर अब वे विजेता की तरह हंसते हुए निर्माता की हैसियत से अपनी आगामी फिल्मों की चर्चा करने में हिचकते नहीं हैं. हर दूसरी फिल्म में पार्टनरशिप का फार्मूला लागू करने को वह वक्त की जरूरत मानते हैं. पुरानी बातें (''मैं कभी निर्माता नहीं बनूंगा'') याद दिलाने पर वे कहते हैं कि वक्त बदला, तो मैं भी बदल गया, इसमें बुरा क्या है.
खैर, अक्षय अब निर्माता बनकर खुश हैं. प्रोडक्शन की जिम्मेदारी से बचकर मुनाफे में साझेदारी का फॉर्मूला कोई इस खिलाड़ी से सीखे. अपनी प्रोडक्शन कंपनी में काफी कुछ गंवाने वाले सुनील शेट्टी को तो इस खिलाड़ी का शागिर्द बन जाना चाहिए.