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ऐश्वर्या के एक बेचारे आशिक की आत्मकथा

ये बात मेरे जेहन में तब से है जब मैं कम उम्र का था और ऐश्वर्या कमसिन हुआ करती थी, और आज आपके सामने इसे बयां कर रहा हूं. मिस वर्ल्ड क्या होता है जानता भी न था बस हमारे कस्बाई शहरों में हर रिक्शे, टैम्पो, साइकिलों पर दो आखें चस्पा हो गई थीं. बेइंतहां खूबसूरत आंखें. जिस उम्र में हमसे कार्टून देखने और नादानी बरतने की उम्मीद होती है अपन रंगीन सपने लिए इन दो आंखों का पीछा किया करते थे. नाजुक से तन में फौलाद सा इरादा, अम्मा की बहुरिया

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ऐश्वर्या राय
ऐश्वर्या राय

ये बात मेरे जेहन में तब से है जब मैं कम उम्र का था और ऐश्वर्या कमसिन हुआ करती थी, और आज आपके सामने इसे बयां कर रहा हूं. मिस वर्ल्ड क्या होता है जानता भी न था बस हमारे कस्बाई शहरों में हर रिक्शे, टैम्पो, साइकिलों पर दो आखें चस्पा हो गई थीं. बेइंतहां खूबसूरत आंखें. जिस उम्र में हमसे कार्टून देखने और नादानी बरतने की उम्मीद होती है अपन रंगीन सपने लिए इन दो आंखों का पीछा किया करते थे. नाजुक से तन में फौलाद सा इरादा, अम्मा की बहुरिया बनेगी यही छोकरिया.


थोड़ा बड़ा हुआ तो एक दिन दूरदर्शन पर इन्हीं नीली आंखों की मालकिन ऐश्वर्या राय को देखा, अपनी खूबसूरत आंखों को दान करने की अपील करते हुए. झेपु स्वभाव और पिटने का डर न होता तो दुनिया के सबसे बड़े लाउडस्पीकर पर मुनादी करवा देता कि हमको हमारी 'आंखें' मिल गई हैं उसपर कोई और आंख न उठावे. बहरहाल वक्त महीने के आखिर में बचे पैसों की तरह होता है जो कब खर्च हुआ पता ही नहीं चलता. हमारे जवान होने का इंतजार करने के बजाए ऐश्वर्या सल्लू के प्रेम में पड़ गई. साबू का तो पता नहीं हमारे गुस्से से सैंकड़ों ज्वालामुखी फटे होंगे. जहां प्यार की रिमझिम होनी थी वहां बेवफाई का हुदहुद आ गया. खैर हमने भाई की बाइसेप्स में मचलती मछलियां और पेट पर उभरती पसलियां देखीं और उसे माफ कर दिया. इस गम से उबरने को दसवीं में दो बार और 12वीं में एक बार लटका. जी नहीं लगा तो ग्रेस नंबरों से पास हो दिल्ली आ गया. छोटे शहर से आए जवान लौंडे के लिए दिल्ली वैसी ही है जैसे एनडी तिवारी को चिरयौवन माने ताउम्र जवां हसी मर्द बनने की दवाई मिल जाए. लेकिन ऊपरवाला जब तसल्लीबक्श काम करता है तो फिर नकल की गुंजाइश नहीं रहती. ये बात हमको तो तभी और सलमान को स्नेहा उलाल की 'लकी' के मनहुसियत भरे कलेक्शन से पता चल गया. ऐश्वर्या एक ही थी जो न हमारे पास थी न सल्लू के पास.

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जब विवेक से ऐश्वर्या का नाम जुड़ा तो मुझे वाकई उसके विवेक पर शक हुआ. लेकिन इन दोनों का साथ उतना ही रहा जितना ओबेरॉय साहब की फिल्में चलती हैं. इधर विवेक को जबान लड़ाते ही फिल्मों के लाले पड़े उधर हम भी भारत के सबसे बड़े स्कैम के शिकार हुए. असली किताब न मिले तो इंसा जेरोक्स पढ़ कर पास हो जाता है. इसी कॉन्सेप्ट पर एक नीली आंखों वाली मोहतरमा मिलीं, हम थोड़े रीझे लेकिन जल्द ही खीजे भी जब ये राज बेपर्दा हुआ कि वो नीली आंखें दरअसल कॉनटेक्ट लेंस थे. हमने भी तल्खी में कह दिया डोंट कॉन्टेक्ट मी नाउ. इधर जल्द ही देश में बहुत भारी त्रासदी हुई. एक साथ करीब 60-70 करोड़ दिलों की कैजुअल्टि हुई जब मीडिया ने दिखाया कि बच्चन साहब के लौंडे के साथ ऐश्वर्या ने शादी मना ली. मैं तो सोचता था बच्चन साहब की कंपनी एबीसीएल से ज्यादा बड़ा घाटा उन्हें अभिषेक में इन्वेस्ट करके हुआ है. लेकिन उनके पुत्तर के उत्तर से सब निरुत्तर हो गए. तो बस इतनी सी थी एक आशिक की आत्मकथा. गोया आशिक हम अब भी हैं पर क्या है कि हैं थोड़े संस्कारी, दूसरे की अमानत में खयानत का ख्याल नहीं लाते. अब इस दुनिया-ए-फानी से कल्टी का वक्त आया है तो सोचा आत्मव्यथा, मुआफी आत्मकथा चिपका जाएं.

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हमारी कुछ अंतिम इच्छाएं हैं...
1. ऐश्वर्या की बिटिया कभी हमको मामू न पुकारे
2. आशिकों में हमारा दर्जा विवेक ओबेरॉय से ऊपर माना जाए
3. हमारी आत्मकथा की समीक्षा किसी सूरत में केआरके को न करने दी जाए

सप्रेम जो रहा बिना प्रेम
आजीवन अध्यक्ष
ऐश्वर्या आशिक संगठन

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