बॉलीवुड में सिक्किम की मौजूदगी दर्शाने वाले कलाकार डैनी डेंग्जोंप्पा ने खलनायक की क्रूरता दिखाने के लिए अपनी आंखों का शानदार इस्तेमाल किया और उस दौर में अपनी जगह बनाई जब हर फिल्म में खलनायक की भूमिका लगभग मिलती जुलती होती थी.
फिल्म समीक्षक अनिरुद्व शर्मा कहते हैं, ‘‘आम तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों के कलाकार वहीं की फिल्मों तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन डैनी को इस मामले में अपवाद कहा जा सकता है. वह सिक्किम के रहने वाले हैं और बॉलीवुड में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.’’
वे कहते हैं, ‘‘ज्यादातर फिल्मों में डैनी ने खलनायक की भूमिका निभाई. इस रोल में जान डालने में उनकी आंखों का सबसे अहम योगदान रहा. खलनायक की क्रूरता को उन्होंने अपनी आंखों से जाहिर करने में कोई कमी नहीं की.’’
{mospagebreak}एक अन्य फिल्म समीक्षक माया गुप्ता कहती हैं, ‘‘उस दौर में डैनी ने अपनी जगह बनाई, जब फिल्मों में खलनायक की भूमिका लगभग मिलती-जुलती होती थी. तब प्रौद्योगिकी भी अधिक विकसित नहीं हुई थी, लेकिन सिक्किम के इस कलाकार ने खुद को दूसरे समकालीन खलनायकों से 21 साबित किया.’’
वह कहती हैं, ‘‘डैनी की खासियत यह है कि उन्होंने किसी की नकल नहीं की. अपनी खुद की शैली विकसित की जिसमें कहीं भी अतिशयोक्ति का अहसास नहीं होता.’’ गाने के शौकीन डैनी ने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और आशा भोंसले के साथ भी गीत गाए हैं. इसके अलावा वह चित्रकारी में भी खासी दिलचस्पी रखते हैं.
'नया दौर', 'देवता', 'लहू के दो रंग', 'बुलंदी', 'द बर्निंग ट्रेन', 'बंदिश', 'काली घटा', 'खुदा गवाह', 'साया' से लेकर 'एसिड फैक्ट्री' और 'एंथीरन' जैसी फिल्मों में डैनी ने अपने अभिनय के जौहर दिखाए.
उन्होंने कुछ अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएं भी शुरू कीं, जिनमें ‘सेवेन ईयर्स इन ताइबेट’ प्रमुख है. इसमें उन्होंने हॉलीवुड के कलाकार ब्रैड पिट के साथ काम किया. फिल्म जगत में योगदान के लिए वर्ष 2003 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.