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ये हैं भारत की पहली 'ट्रांस क्वीन', लड़की से होने वाली थी शादी

ये हैं भारत की पहली 'ट्रांस क्वीन', लड़की से होने वाली थी शादी
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इस साल पहली बार देश में आयोजित ट्रांसजेंडर्स कॉन्टेस्ट मिस ट्रांसक्वीन इंडिया 2017 की विनर रहीं निताशा बिस्वास. मिस ट्रांस क्वीन बनने के बाद निताशा बिस्वास अपने लुक्स और तस्वीरें को लेकर खूब चर्चा में हैं. कोलकाता की रहने वाली निताशा बिस्वास को देखकर एक बार के लिए भी ऐसा नहीं लगता कि वह ट्रांसजेंडर हैं. यही वजह है कि अब साल 2018 में आयोजित होने वाले मिस इंटरनेशनल ट्रांसक्वीन थाइलैंड में वे भारत को रिप्रजेंट करने जा रही हैं. आइए जानें निताशा का लड़के से लड़की बनने और फिर बतौर मिस ट्रांस क्वीन अपनी पहचान बनाने का सफर कैसा रहा:
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निताशा कोलकाता की रहने वाली हैं और 26 साल की हैं. वो कोलकाता से ही बिजनेस मैनेजमेंट में मास्टर्स कर रही हैं. बीबीसी के मुताबिक 3 साल की उम्र में निताशा को इस बात का पता चल गया था कि उनका शरीर तो लड़कों का है लेकिन वो अंदर से एक लड़की की तरह हैं.
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नि‍ताशा ने बताया था कि माता- पिता की इजाजत के बिना लड़की बनने का फैसला लेना उनके लिए आसान नहीं था. उन्हें इसके लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. यहां तक कि उनके परिवारवालों ने अभी तक उन्हें पूरी तरह अपनाया भी नहीं है. निताशा ने एक इंटरव्यू में ये भी कहा था कि जब उन्होंने जेंडर चेंज करवाने का फैसला किया तो उनके परिवार के अलावा कई दोस्तों और करीबीयों ने भी उनसे किनारा कर लि‍या.
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निताशा कोलकाता से दिल्ली आ गईं और यहां आकर उन्होंने जेंडर चेंज के लिए HRT यानी हारमोनल रिप्लेसमेंट थैरेपी का सहारा लिया. निताशा के इस सेक्स चेज प्रोसेस को करीब तीन से चार साल का वक्त लगा. इस दौरान वह लगातार साइकोलॉजिस्ट से भी संपर्क में रहीं क्योंकि ये उनकी जिंदगी का बहुत बड़ा बदलाव था जिसके लिए उन्हें मानसिक रूप से भी तैयार रहने की जरूरत थी.
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निताशा ने बताया कि उनके पिता उन्हें कभी लड़की के रूप में नहीं देखना चाहते थे. एक अखबार को दिए गए इंटरव्यू में निताशा ने कहा कि ट्रांजिशन प्रोसेस से पहले उनके पिता ने उन्हें शादी करने के लिए मनाने की कोशि‍श की. निताशा ने कहा, मेरे पिता ने मुझे कहा कि वो मेरे लिए एक बंगाली लड़की ढ़ूंढ रहे हैं लेकिन मैंने जवाब में उन्हें साफ कहा, लेकिन मैं अपने लिए बंगाली लड़का चाहती हूं.'
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निताशा का मानना है समाज के भेदभाव के चलते 70% प्रतिशत ट्रांसजेंडर्स डिप्रेशन का शि‍कार हैं. ना ही उनकी कोई आर्थ‍िक सहायता करने में आगे आता है और ना ही उनके पास कोई जॉब सपोर्ट है. इसी के चलते ज्यादातर ट्रांसजेंडर सेक्स ट्रेड का हिस्सा बन जाते हैं.
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निताशा ने ट्रांसजेंडर के हितों के लिए बात करते हुए कहा कि हम लोगों को भी समाज का हिस्सा मानें, हमारे लिए भी रोजगार संबंधी प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए. दुनिया की बहुत सी एयरलाइन्स में ट्रांसजेंडर एयर हॉस्टेस हैं. इंडियन एयरलाइन्स में इस तरह के अवसर क्यों नहीं है?. ट्रांसजेंडर वि‍मेन की पढ़ाई के लिए बोर्ड्स की नियुक्ति‍ की जानी चाहिए, खासकर ग्रामीण इलाकों में. यहां तक कि निताशा ने इस बात की भी मांग रखी कि संसद में ट्रांसजेंडर MP की भी एक सीट होनी आवश्यक है क्योंकि एक ट्रांसजेंडर MP ही ट्रांसजेंडर समाज से जुड़ी समस्याओं को समझ सकता है.
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जल्द ही निताशा पर अलका वासुदेवा एक किताब जारी करने जा रही हैं जिसका टाइटल है, Nitasha: The voice of many
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