जब-जब आपको लगता है कि बिहार को आप समझ गए हैं, तब-तब बिहार आपको झटका देता है....महारानी 2 का ये डायलॉग सिर्फ एक लाइन मात्र नहीं है, ये कोई वास्तविकता की दुनिया से दूर किसी दूसरी दुनिया का कथन भी नहीं, ये तो बिहार की राजनीति का मिजाज है, वो मिजाज जिसने सत्ता में आने और सत्ता से जाने का खेल कई बार रचा है. बिहार की रगों में एक ऐसी राजनीति दौड़ती है जहां पर सही मायनों में वोट के लिए रिश्ते टूटते हैं, रिश्ते बनते हैं और 'दाग' तो हमेशा से ही अच्छे रहे हैं. बिहार का यही अध्याय महारानी 2 के जरिए हमारे बीच आ गया है. पहले सीजन में घोटाले वाली राजनीति दिखाने वाली महारानी इस बार गुंडाराज, मंडल-कमंडल की राजनीति से रूबरू करवाने आई है.
सेकेंड सीजन की कहानी बताने से पहले थोड़ा सा फ्लैशबैक....भीमा भारती (सोहम शाह) बिहार का मुख्यमंत्री था. पिछड़ी जाति से आता है, इसलिए एक अलग ही जनाधार का धनी और राजनीति के हमेशा केंद्र में रहने वाला शख्स. राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हैं तो दुश्मनों की संख्या भी कुछ ज्यादा हो जाती है. वहीं दुश्मन भीमा पर हमला करवा देते हैं और जनाब को बिहार की गद्दी छोड़नी पड़ जाती है. अब गद्दी तो छोड़ते हैं लेकिन सत्ता की चाभी अपने पास रखते हैं, सीएम अपनी ही 'अनपढ़' बीवी रानी भारती (हुमा कुरैशी) को बना देते हैं. रानी शुरुआत में झिझकती है, बोलने में हिचकती है, लेकिन देखते ही देखते बिहार की राजनीति में चाय में चीनी की तरह घुल जाती है. फिर अपने ही पति की काली करतूतों से पर्दा उठाना, उसे जेल भेजना वाला अध्याय शुरू हो जाता है जिसे हम 'महारानी अध्याय' कह सकते हैं.
गुंडाराज...दागी राजनीति और धर्म की कहानी
अब यही से शुरू होता है सेकेंड सीजन...भीमा भारती जेल में कैद है, रानी भारती सीएम कुर्सी संभाल रही है. लेकिन गुंडाराज बढ़ता जा रहा है, अराजकता चरम पर पहुंच गई है. एक मशहूर मॉडल का बलात्कार हो जाता है, स्थानीय विधायक ही उसकी हत्या भी करवा देता है. इसी घटना के केंद्र में रहकर महारानी की ये वाली कहानी आगे बढ़ती है. कहने को ये सिर्फ एक जुर्म की दास्तां होती है, लेकिन इसी के इर्द-गिर्द बाकी कई दूसरी घटनाएं होती हैं. दागी राजनीति पर चोट, पुलिस और नेताओं के बीच होने वाली सांठगांठ और धर्म का एक अलग ही रंग.
इसके अलावा कहानी के और दूसरे केंद्र भी हैं...नवीन बाबू (अमित सियाल) 17 साल से बिहार का मुख्यमंत्री बनने का सपना लिए बैठे हैं, लेकिन हर बार उनके विरोधी उन्हें परास्त करते हैं. इस बार फिर चुनाव की घड़ी है, रानी भारती ने वर्मा कमिशन लागू कर पिछड़े समाज को आरक्षण देने का दांव चल दिया है. माहौल रानी के पक्ष में बन रहा है, लेकिन तभी जेल में बंद एक 'हिंदू बाबा' का मुद्दा उठता है और नवीन जमीन पर समीकरणों को बदल देता है. ये इस कहानी का दूसरा अध्याय है जिसे- मंडल बनाम कमंडल कहा जा सकता है.
इस सीजन का एक तीसरा अध्याय भी है...राजनीति के लिए बनते और बिगड़ते रिश्ते, ये वाला सेगमेंट भीमा भारती के इर्द-गिर्द ज्यादा घूमता है. उसकी जिंदगी में होती उठापठक उसके रिश्तों पर असर डालती है और बिहार की राजनीति में भी बड़े नाटकीय मोड़ आते हैं. अब क्योंकि कहानी के केंद्र में चुनाव है तो जीत-हार किसकी होती है, रानी बनाम भीमा में कौन किस पर भारी, 17 साल बाद नवीन सीएम या रानी का आरक्षण वाला दांव सफल? महारानी 2 के 10 एपिसोड के बाद सब सवालों के जवाब मिलेंगे.
कोई रीकैप का स्कोप नहीं, दिमाग पर ज्यादा जोर
एक बात गौर की...हमने इस बार आपको पहले फ्लैशबैक बताया...दूसरे सीजन की कहानी बताने से पहले पुराने पहलू ताजा करवाए. कारण ये क्योंकि सेकेंड सीजन में मेकर्स ने ऐसा करने की जहमत नहीं दिखाई. इंसानी दिमाग है, कोई कंप्यूटर नहीं कि पहले सीजन में दिखाया सब कुछ याद रह जाए. ये मेकर्स की एक चूक है क्योंकि महारानी जैसी सीरीज में किरदार अनेक हैं, उनकी अपनी एक कहानी है और वे अलग तरह से उस पर असर भी डालते हैं. ऐसे में दूसरा सीजन देखते समय कुछ किरदार जाने-पहचाने तो लगे लेकिन ये सोचना पड़ा कि पहले सीजन में उनकी क्या भूमिका थी.
कहानी असरदार, असल राजनीति के दर्शन
खैर इस सब से आगे बढ़ें तो एक बढ़िया बात है. पिछले सीजन की तरह इस बार भी कहानी को बहुत शानदार ढंग से बुना गया है. जिन मुद्दों को लेकर ये सीरीज चली थी, वो दिखाने में कामयाब रही है. गुंडाराज की बात हुई, दागी राजनीति पर भी बहस रही और धर्म पॉलिटिक्स ने भी दर्शन दिए. प्लस प्वाइंट ये भी है कि हर पहलू को सीरीज में निखरने का पूरा मौका मिला, जल्दबाजी नहीं की गई. ये भी मजेदार लगता है कि सीरीज कई वास्तविक घटनाओं से प्रेरणा लेती है, हमे समझ भी आता है, लेकिन वो कही भी ऐसा दावा नहीं करती. लेकिन जो राजनीति पर पकड़ रखते हैं, वो उन तमाम पहलुओं को आसानी से समझ जाएंगे.
कलाकारों का पूरा सहयोग
एक्टिंग की बात...हुमा कुरैशी गजब की लगी हैं. पहले सीजन में गांव की एक अनपढ़ महिला से सीएम कुर्सी तक का सफर तय किया, दूसरे सीजन में उसी किरदार को एक नया कलेवर दिया गया है. इस बार हुमा के किरदार के साथ सत्ता का नशा है, रिश्तों को तांक पर रखने वाली फितरत है और विरोधियों को परास्त करने की ललक. हुमा ने अपने चेहरे पर कोई ज्यादा हाव-भाव आने नहीं दिए हैं, कम एक्टिंग कर ही उन्होंने अपनी एक्टिंग का ग्राफ बढ़ाया है. भीमा भारती बने सोहम शाह भी फुल फॉर्म में हैं. इस बार मूछों की जगह दाढ़ी ने ले ली है, किरदार को थोड़ा और इंटेंस लुक देने में ये कारगर रहा. बाकी काम तो उनका पहले सीजन में भी गदर मचाने वाला था और इस बार भी. नवीन बाबू वाले रोल में अमित सियाल तो टिपिकल नेता लगे हैं. भाषण देने का अंदाज, आंखों में एक अलग चमक, सबकुछ वैसा ही जो आप किसी नेता में देखते हैं या देखने की उम्मीद करते हैं.
दूसरे सीजन में एक काद नया किरदार भी जोड़ा गया है, एक तो थोड़ा-थोड़ा प्रशांत किशोर टाइप का भी लगा, उसके बारे में यहां ज्यादा कुछ नहीं बता रहे, सीरीज देख खुद समझ जाएंगे. बाकी सहकलाकारों में प्रमोद पाठक, अतुल तिवारी और अन्य लोगों का काम भी सही है.
डायरेक्टर बदला, शिकायतें भी बढ़ीं
महारानी 2 में एक और बड़ा बदलाव हुआ है. इस बार डायरेक्शन की कुर्सी पर करण वर्मा नहीं रवींद्र गौतम बैठे हैं. क्रिएटर अभी भी अपने सुभाष कपूर ही हैं, इसलिए मूल स्वरूप से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की गई. लेकिन इस बार कुछ शिकायतें हैं....पहली- मेलो ड्रामा ज्यादा दिखाया गया, दूसरी- क्लाइमेक्स वाले आखिरी के दो एपिसोड काफी धीमी रफ्तार से आगे बढ़े, तीसरी-पहले सीजन में कबीर के जो दोहे पूरी कहानी को आगे गढ़ने का काम करते थे, दूसरे सीजन से वो एलीमेंट ही गायब कर दिया गया.
अब जिसने महारानी का पहला सीजन देखा है, उसे दूसरा सीजन देखना तो चाहिए, लेकिन अपनी उम्मीदों के ग्राफ को थोड़ा गिराना पड़ेगा. वहीं जिन्होंने पहला सीजन नहीं देखा, टाइम वेस्ट मत कीजिए देख डालिए क्योंकि आपको लंबी यात्रा तय करनी है...तीसरा सीजन भी जल्द आने वाला है!