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Film Review: इमोशनलेस और कमजोर कहानी है 'कट्टी बट्टी'

निखिल आडवाणी जिनकी पिछले हफ्ते रिलीज फिल्म 'हीरो' को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. खासतौर से उस फिल्म के डायरेक्शन के लिए अब एक बार फिर से नई कहानी सुनाने के लिए तैयार हैं.

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फिल्म 'कट्टी-बट्टी' का पोस्टर
फिल्म 'कट्टी-बट्टी' का पोस्टर

फिल्म का नाम: कट्टी बट्टी
डायरेक्टर: निखिल आडवाणी
स्टार कास्ट: इमरान खान, कंगना रनोट ,मनस्वी ममगाई
अवधि: 138 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार

निखिल आडवाणी जिनकी पिछले हफ्ते रिलीज फिल्म 'हीरो' को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. खासतौर से उस फिल्म के डायरेक्शन के लिए अब एक बार फिर से नई कहानी सुनाने के लिए तैयार हैं. 'क्वीन' और 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' के बाद कंगना की यह फिल्म रिलीज हो रही है और इमरान खान को भी एक हिट फिल्म की तलाश कई सालों से हैं, अब क्या कंगना रनोट का साथ इमरान और निखिल के लिए लकी साबित होगा ? आइये समीक्षा करते हैं.

कहानी
यह कहानी है आर्किटेक्ट माधव काबरा उर्फ मैडी (इमरान खान) की जो पायल (कंगना रनोट) से प्यार करता है. मैडी को पायल का जिंदगी के प्रति एटीट्यूड काफी पसंद है. दोनों एक साथ पांच साल से लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं लेकिन किन्ही कारणों से पायल झटके से मैडी को छोड़कर चली जाती है और वहीं से फिल्म की शुरुआत होती है. मैडी के चारो ओर कभी बहन कोयल, दोस्त विनय, तो कभी देविका जैसी फ्रेंड्स भी कहानी को आगे बढ़ाने में साथ देते हैं. दिल्ली ,मुंबई और अहमदाबाद के बीच पूरी कहानी चलती रहती है. अब क्या मैडी को फिर से पायल का साथ मिलता है? इस बात का पता आपको फिल्म देखकर ही चलेगा.

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स्क्रिप्ट
'कट्टी बट्टी' की स्क्रिप्ट ही इस फिल्म की विलेन है. बहुत ही कमजोर और घीसी पिटी सी कहानी है. कभी आपको 'आनंद' तो कभी 'कल हो ना हो' से प्रेरित दिखती है. संवाद बोले जा रहे हैं लेकिन उनका अंदाज ए बयान कुछ और ही है. जबरदस्ती का इमोशन आप जब भी भरने की कोशिश करते हैं, नाकामी ही हाथ लगती है. फिल्म की स्क्रिप्ट बड़ी ढीली और वर्तमान एवं भूत में ही फंसी रहती है. कभी कभी फ्लैश बैक अच्छा होता है, लेकिन इस फिल्म का फ्लैशबैक भी जबरदस्ती का लग रहा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था की आपको भावुक करने के लिए मैं कुछ भी करूंगा. कभी कभी 'वन लाइनर' अच्छा होता है लेकिन फिल्म गड़बड़ हो जाती है.

अभिनय
कंगना रनोट ने अच्छा अभिनय किया है और उनके कई रूप इस फिल्म में दिखाई देते हैं कभी बेबाक लड़की तो कभी इमोशनल साथी, कंगना को देखकर लगता है की उन्होंने अपने लुक के ऊपर काफी रिसर्च भी किया है. वहीं फिल्म में इमरान की बहन कोयल ने अच्छा काम किया है.

इमरान खान ने ठीक ठाक ही एक्टिंग की है क्योंकि कभी-कभी अपने इमोशंस बयान कर पाने में वो फिर से नाकामयाब रहे हैं. उन्हें अपने मामू आमिर खान से प्रेरणा लेने की सख्त आवश्यकता है, जिस तरह से आमिर एक एक रोल पर महीनों वक्त देते हैं, जिससे की वो स्क्रीन पर निखर कर आये, वैसा कुछ प्रयास करने की बेहद जरूरत है.

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संगीत
फिल्म का संगीत अच्छा है लेकिन कभी-कभी हम गानों के मोह में उन्हें फिल्म में जबरदस्ती इन्सर्ट करने लगते हैं जिसकी वजह से फिल्म की रफ्तार खराब होती है और ऐसा ही इस फिल्म के दौरान भी हुआ है. 'लिप टू लिप' किस्सियां गीत सही है लेकिन उसके बाद के गीतों को ज्यादा ही तूल दिया गया, जिसे स्वादानुसार परोसा जाता तो सही होता. उदाहरण के तौर पर जब आप भावुक हो रहे थे उसी पल 'जागो मोहन प्यारे' गीत आकर आपकी भावनाओं को मिटा देता है.

कमजोर कड़ी
एक फिल्म में बारम्बार इमोशन की पुनरावृत्ति होती है तो आप बोर होने लगते हैं, जब भी भावुक पल आते हैं उसके बाद वही इंसान कुछ ऐसा कर जाता है जिससे ये प्रतीत ही नहीं होता की उसे किसी बात का दुख है, बहुत ही हल्की, कमजोर और घीसी पीटी कहानी है. यह फिल्म देखकर लगता ही नहीं की यह वही निर्देशक हैं जिन्होंने 'कल हो ना हो' और 'डी डे' जैसी फिल्म बनाई थी, निखिल आडवाणी को बेसिक कहानी पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

क्यों देखें
अगर आप कंगना, इमरान खान, या निखिल आडवाणी के तगड़े फैन हैं तो ही इस फिल्म को देखें अन्यथा अगर आप 'क्वीन', 'तनु वेड्स मनु', 'कल हो ना हो' या 'डी डे' जैसी फिल्म की अपेक्षा कर रहे हैं तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी.

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