रेटिंगः 1.5 स्टार
डायरेक्टरः करन अंशुमान
कलाकारः रितेश देशमुख, पुलकित सम्राट, जैक्लिन फर्नांडिज और चंदन रॉय सान्याल
बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी भी बना दी जाती हैं जिन्हें देखकर लगता है कि आखिर सधा हुआ डायरेक्शन नहीं था तो फिल्म बनाने की क्या जरूरत थी? फिर यह काम कोई बड़ा प्रोडक्शन हाउस करे तो जोर का झटका जोर से ही लगता है. ऐसा ही फरहान अख्तर के प्रोडक्शन हाउस की ब्रोमांस फिल्म 'बंगिस्तान' के बारे में भी कह सकते हैं. फिल्म को आतंकवाद आधारित कॉमेडी बनाने की कोशिश की गई लेकिन आधे अधूरे प्रयासों की वजह से फिल्म कहीं भी असर नहीं डालती है और एकदम फ्लैट हो जाती है. कमजोर डायरेक्शन हर जगह दिखता है और फिल्म लगती ही नहीं है कि उस प्रोडक्शन हाउस की है जिसने 'दिल चाहता है', 'डॉन', 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' और 'रॉक ऑन' जैसी फिल्में बनाई हैं.
कहानी में कितना दम
कहानी एक काल्पनिक देश की है. दो युवक हैं रितेश देशमुख और पुलकित सम्राट. एक मुस्लिम है तो दूसरा हिंदू. दोनों अलग-अलग लुक अख्तियार करते हैं और आतंकी घटना के लिए पोलैंड जाते हैं. दोनों का एक ही मिशन है और वह है आतंक फैलाना. अपने इस सफर में उन्हें आजाद ख्याल जैकलीन फर्नांडिज भी मिलती है. यानी कुल मिलाकर आतंकवाद जैसे विषय को बहुत ही हल्के अंदाज में पेश करने की कोशिश की गई जो कमजोर स्क्रिप्टिंग की वजह से सफल नहीं हो पाती है. फिल्म के कुछ डायलॉग गुदगुदाते हैं तो पुलकित के कई डायलॉग समझ से ही परे हैं. टॉपिक अच्छा था लेकिन ट्रीटमेंट ने जायका बिगाड़ डाला.
स्टार अपील
फ्लैट फिल्म की वजह से रितेश देशमुख के पास ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं रह गया था फिर भी वे भरपूर कोशिश करते हैं कि बात पटरी पर ही रहे. लेकिन पुलकित सम्राट बहुत ही निराश करते हैं. 'फुकरे' में जो उनका अंदाज या ऐक्टिंग थी वह मिसिंग नजर आती है. चंदन रॉय सान्याल ठीक हैं और जैकलीन को जितना रोल मिला है वह अच्छा ही करती हैं.
कमाई की बात
फिल्म का संगीत राम संपत ने दिया है और बहुत पॉपुलर नहीं हुआ है. कमजोर डायरेक्शन फिल्म की सबसे बड़ी खामी हैं. फिल्म मिड बजट है. इसे देखने के बाद यह उम्मीद बहुत ही कम है कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर लंबी छलांग लगा सकेगी.