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प्यार और शादी के बीच के फासले को असल और दिलचस्प ढंग से नापती है फिल्म टू स्टेट्स

फिल्म टू स्टेट्स सिर्फ युवाओं के लिए या मल्टीप्लेक्स ऑडियंस के लिए ही नहीं है. इसे मम्मी-पापा लोगों को भी जरूर देखना चाहिए. ये एक बढ़िया टूल साबित हो सकता है उनके लिए, अपने बाद की पीढ़ी की आकांक्षाओं को समझने का.

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फिल्‍म 2 स्‍टेट्स का पोस्‍टर
फिल्‍म 2 स्‍टेट्स का पोस्‍टर

फिल्म रिव्यू 2 स्टेट्स
एक्टरः अर्जुन कपूर, आलिया भट्ट, अमृता सिंह, रोनित रॉय, रेवथी, शिव कुमार सुब्रमण्यम
डायरेक्टरः अभिषेक वर्मन
ड्यूरेशनः 2 घंटा 29 मिनट
स्टारः 5 में 4

एक लड़का. नाम है कृष. दिल्ली का पंजाबी है. आईआईटी दिल्ली से बीटेक किया है. अब आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने पहुंचा है.एक लड़की है. नाम अनन्या. चेन्नई से है. ये भी आईआईएम में पढ़ती है. एक दिन मैडम मेस के हेड शेफ को सांभर की क्वालिटी पर लताड़ रही होती हैं. तभी प्रकट होते हैं कृष. कन्या को देते हैं अपने हिस्से का रसगुल्ला और फिर चाशनी पसरनी शुरू हो जाती है, उन दोनों के बीच. अनन्या दोस्त बन जाती है और कृष दोस्ती का नाटक करता है क्योंकि असल में प्यार करता है.

फिर प्यार भी हो ही जाता है. मगर दिक्कत ये है कि प्यार के बाद शादी है. शादी, जिसके लिए दोनों के परिवारों का मिलना और राजी होना जरूरी है. एक तरफ हैं पंजाबी. दूसरी तरफ उन पंजाबियों के ही शब्दों में कहें तो मदरासी. दोनों अपने प्यारे बच्चों की शादी अपने अरमानों के मुताबिक करना चाहते हैं. भारत के संदर्भ में इसका अर्थ होता है, अपने ही समाज और जाति में. मगर ये दो प्यार के पंछी तो कोई और ही परवाज भरने को तैयार हैं. साथ में दोनों ने ये भी तय कर रखा है कि भागकर शादी नहीं करेंगे. ऐसे में शुरू होता है जतन. पहले कृष अनन्या के परिवार का प्यार पाने के लिए चेन्नई में पोस्टिंग लेता है. फिर किला फतह होने के बाद अनन्या आती है दिल्ली. यहां और ही किस्म की दिक्कतें हैं.

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इन सबके बीच कृष का अतीत भी है. उसका अपने पिता से अहम का विकट टकराव है. मां प्यार करती है, मगर ये कभी कभी दम लेने पर उतारू हो जाता है. उसे लगता है कि मेरे भोले बेटे को फंसा लिया गया. इस फंसा की जब फांस निकलती है, तो सब ठीक हो जाता है.

इस कहानी को आपने चेतन भगत के उपन्यास टू स्टेट्स में भी पढ़ा होगा. फिल्म उसी नाम और नॉवेल पर आधारित है. कहानी भारतीय समाज के कई कर्व नापती है. जाति, धर्म और क्षेत्र के बंधन. मां-बाप की बच्चों से उम्मीदें, जो ज्यादातर उनकी शादी और अच्छे बहू-दामाद का अर्थ लिए होती हैं. इसके अलावा करने का कुछ और मन है, कर कुछ और रहे हैं वाली अखिल भारतीय करियर समस्या भी मुंह बाए खड़ी रहती है. चेतन भगत ने इन सभी को बिना बोरिंग हुए समेटा है.

फिल्म में अर्जुन कपूर ने एक तरफ प्यार, एक तरफ परिवार और दोनों को एक साथ पा लेने की जद्दोजहद को अपनी देहभाषा और जबान से बखूबी निभाया है. मगर अपने पिता यानी रोनित रॉय के सामने कुछ फ्रेम्स में वह कमजोर पड़ जाते हैं. कोई बात नहीं. अभी तो लड़के की बोहनी ही हुई है.

आलिया भट्ट भी अनन्या के रोल में खूबसूरत और संवेदनशील नजर आती हैं. हालांकि किरदार के लिहाज से कुछ जगहों पर वह कुछ कच्ची नजर आती हैं. वैसे वह लगातार अच्छे रोल चुन रही हैं और इसलिए उनके प्रति उम्मीदों का पारा भी लगातार चढ़ रहा है. इसके अलावा फिल्म में अमृता सिंह और रोनित रॉय ने कृष के मां-पिता के रोल बहुत गहराई के साथ निभाए हैं. रेवथी भी कम बोलकर और चेहरे के सहारे भाव निभाकर अपनी एक्टिंग रेंज का बेमिसाल सबूत देती हैं.

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फिल्म के गाने अच्छे हैं और फिल्म में खूब रंग घोलते हैं. वैसे तो लोचा ए उल्फत और ओफ्फो खूब पॉपुलर हो रहे हैं, मगर मेरे फेवरिट हैं मन मस्त मगन और चांदनिया. इसके बोल भी गहरा अर्थ लिए हैं और मेलोडी भी खूब है. पंजाबी शादी वाले नंबर से बचा जा सकता था.

डायरेक्टर अभिषेक वर्मन ने अपने काम को तसल्ली से अंजाम दिया है. फिल्म कहीं भी अपनी रफ्तार नहीं खोती. इसमें शेड्स खूब हैं और सब अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

चेतन भगत ने फिल्म का स्क्रीन प्ले लिखने में उपन्यास की आत्मा को बखूबी बचाया है. मगर एक शिकायत भी है मुझे. थ्री ईडियट्स से उन्हें कुछ प्रेरणा लेनी चाहिए थी. उपन्यास के मूल भाव को लेकर कहानी में कुछ विस्तार और बदलाव होते, तो उम्मीदों के पंखों को और भी ठिकाने मिलते.

फिल्म टू स्टेट्स सिर्फ युवाओं के लिए या मल्टीप्लेक्स ऑडियंस के लिए ही नहीं है. इसे मम्मी-पापा लोगों को भी जरूर देखना चाहिए. ये एक बढ़िया टूल साबित हो सकता है उनके लिए, अपने बाद की पीढ़ी की आकांक्षाओं को समझने का. फिल्म भारतीय समाज की पेचीदगियों को भी सामने लाती है. लड़के की मां है तो अकड़ ही रहेगी या लड़की है तो उसे खाना बनाना आना ही चाहिए, जैसे स्थापित रिवाजों को फिल्म पूरी तरलता और पैनेपन के साथ आंख दिखाती है.

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