ओटीटी पर पिछले कुछ वक्त से एक ट्रेंड चला है, जिसे अब हिट होने या फिर यूं कहें कि वायरल होने का रास्ता मान लिया जा रहा है. वो ट्रेंड है कि कस्बे या गांव की कहानी दिखाओ, उसमें देसी तड़का लाओ और हो सके तो कुछ बाहुबली डाल दो और राइवलरी के दम पर चीज़ें आगे बढ़ा दो. इसी ट्रेंड का पालन एक और नई वेब सीरीज में हुआ है, जो हाल ही में रिलीज हुई है जिसका नाम है 'बिंदिया के बाहुबली'.
OTT पर रिलीज हुई सीरीज 'बिंदिया के बाहुबली' छोटे कस्बों की राजनीति, माफिया की दुनिया और पारिवारिक ड्रामे को एक साथ पिरोती है. डायरेक्टर राज अमित कुमार ने इसे इस अंदाज में पेश किया है कि कहानी के बीच-बीच में ह्यूमर और व्यंग्य भी देखने को मिलता है, जो दर्शकों को हल्के-फुल्के अंदाज में बांधे रखता है. लेकिन इसे देखने के लिए वॉर्निंग ये है कि आप देखें तो अकेले में या हेडफोन लगाकर, क्यूंकि सीरीज में ये समझिए कि डायलॉग कम हैं और गाली ज्यादा.
ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे कुछ वक्त पहले एक फिल्म 'सात उचक्के' आई थी, जिसके प्रमोशन के वीडियो वायरल होते हैं जहां संवाद गालियों से ही हो रहा होता है. बस यहां लगता है कि किरदार बदल दिए गए हैं, मसलन इस सीरीज़ का उदाहरण लेंगे तो रणवीर शौरी का किरदार शुरुआत में शायद अपने अधिकतम स्क्रीन टाइम में गालियों का ही संवाद कर रहा है, जो पहले ही एपिसोड में ये साफ कर देता है कि सीरीज़ का फ्लो किस तरह आगे बढ़ने वाला है.
कहानी में क्या है?
सीरीज की कहानी बिंदिया नाम के एक काल्पनिक कस्बे के इर्द-गिर्द घूमती है. यहां के बाहुबली नेता (सौरभ शुक्ला) जेल में हैं और उनका बेटा (रणवीर शौरी) सत्ता हथियाने की कोशिश में लगा है. इस राजनीतिक रस्साकशी में परिवार, रिश्ते, धोखा और लोकल पावर गेम्स की दिलचस्प परतें खुलती हैं. इस राजनीतिक खींचतान में परिवार, रिश्ते, धोखा और लोकल पावर गेम्स की दिलचस्प परतें खुलती हैं. कहानी का प्लॉट साधारण नहीं है, बल्कि इसमें कई मोड़ और ट्विस्ट हैं, जो दर्शकों को अंत तक बाँधे रखते हैं. अब इससे ज्यादा चीजें बताएंगे तो फिर देखने के लिए बचेगा क्या?
सीरीज़ की कास्ट है उसकी जान
इस सीरीज़ को देखने का पहला कारण इसकी कास्ट ही बन जाती है. अब जिस किसी फिल्म या सीरीज में सौरभ शुक्ला, रणवीर शौरी, सुशांत सिंह, सीमा बिस्वास और शीबा चड्ढा जैसे कमाल के एक्टर रहेंगे तो आप देखना क्यूं नहीं चाहेंगे. हर किसी ने देसीपन दिखाने में कोई कमी नहीं दिखाई, लेकिन कुछ कमियां भी हैं.
जैसे सौरभ शुक्ला का किरदार थोड़ा क्लीशे लगता है, वो इसलिए कि कुछ ऐसा ही अंदाज वो अजय देवगन की फिल्म रेड में दिखा चुके हैं, बस वहां गालियां कम थीं. बाकी पुलिसवाले की भूमिका में सुशांत सिंह बढ़िया लगे हैं, और बाकी कोई जो है वो कहानी के हिसाब से आया और गया है. हालांकि, कुछ सहायक कलाकार अपनी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाते, फिर भी मुख्य कलाकारों का प्रदर्शन इसे देखने लायक बनाता है.
इस सीरीज को लिखने, गढ़ने और डायरेक्ट करने वाले राज अमित कुमार ने कहानी को इस तरह से गढ़ा है कि गंभीर राजनीतिक और माफिया प्लॉट के बीच भी हल्के-फुल्के पल आते रहते हैं. हालांकि, कुछ जगहों पर रफ्तार धीमी पड़ती है और एपिसोड का इम्पैक्ट उतना गहरा नहीं बैठता. लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि गाली-गलौज को कम करके और कहानी में थोड़ा दम और भी लगाया जाता तो बेहतर रहता है, लेकिन लगता है कि कूल बनने और मीम बनाने के चक्कर में ये सब करना पड़ा. लेकिन इन सबके बावजूद मजा तो सीरीज़ में आ ही रहा है.