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पठान-टाइगर के जलवों के बीच सैफ अली खान के लीजेंड जासूस 'एजेंट विनोद' को भी लौट आना चाहिए!

शाहरुख खान की फिल्म 'पठान' जनवरी में रिलीज हुई. स्पाई-यूनिवर्स की इस फिल्म में शाहरुख के एक्शन अवतार के साथ, सलमान के स्पाई अवतार 'टाइगर' का कैमियो भी बहुत चर्चा में रहा. जनता के दिलों पर राज कर रहे तमाम नए एजेंट्स के बीच बेहद कूल जासूस 'एजेंट विनोद' को भी वापस आ जाना चाहिए. आइए बताते हैं क्यों. 

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'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)
'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

'पठान' में शाहरुख खान के धमाकेदार एक्शन वाले स्पाई अवतार को जनता की मार्कशीट पर पूरे बटे पूरे नंबर मिले हैं. 'पठान' ऑफिशियली सबसे कमाऊ हिंदी फिल्म बन चुकी है. अकेले शाहरुख खान ने ही जनता के दिल पर कहर बरपाया ही, मगर उनके साथ सलमान का फिल्म में आना स्क्रीन पर आग लगाने वाला मामला हो गया. स्पाई-यूनिवर्स के पहले जासूस 'टाइगर' के रोल में सलमान को देखने के लिए वैसे भी जनता हमेशा एक्साइटेड रहती है. 

टाइगर और पठान की पॉपुलैरिटी उस फॉर्मूले के हिट होने का चरम है, जिसपर बॉलीवुड फिल्में पिछले कई साल से काम कर रही हैं. लेकिन इन दोनों हाई-एक्शन, सुपर-स्वैग वाले जासूसों का जलवा उस एक स्पेशल एजेंट के सामने फीका लगता है, जिसे लोग भूल तो कभी नहीं सकते. लेकिन आजकल बस उसे याद जरा कम किया जाता है. उसका नाम है 'एजेंट विनोद'. वैसे, अभी भी पूरी गारंटी से कोई नहीं कह सकता कि उसका नाम 'विनोद' ही है, लेकिन उसके सारे नामों में फिलहाल सबसे भरोसेमंद ऑप्शन यही है! 

बॉलीवुड के मॉडर्न जासूसों का आदिपुरुष- एजेंट विनोद 
70 और 80 के दशक में हिंदी फिल्मों में जासूसों की कहानी काफी पॉपुलर थी. 'फर्ज' 'आंखें' 'जॉनी मेरा नाम' 'द ग्रेट गैम्बलर' और 'ज्यूल थीफ' जैसी कई फिल्मों में ऐसे प्लॉट थे. बाद के सालों में बॉलीवुड एक्शन से लेकर रोमांस तक पर काफी फोकस करता रहा और जासूसी वाली कहानियां फिल्मों में आनी कम हो गईं. साल 2000 के बाद मिलिंद सोमन की '16 दिसंबर' (2002) और सनी देओल की 'द हीरो' (2003) जैसी फिल्मों ने स्पाई-थ्रिलर देखने वालों को कुछ मसाला दिया. बॉलीवुड के मॉडर्न स्पाई हीरो की शुरुआत देखनी हो तो साल 2012 बहुत महत्वपूर्ण साल है.  

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'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

इसी साल विद्या बालन की 'कहानी', सैफ अली खान की 'एजेंट विनोद' और सलमान खान की 'एक था टाइगर' रिलीज हुईं. शुरुआत 9 मार्च को 'कहानी' से हुई, जिसमें विशुद्ध जासूसी वाली कहानी थी और अंत तक कसा हुआ सस्पेंस था. लेकिन इसमें एक्शन नहीं था. स्पाई-यूनिवर्स का नींव रखने वाली, 'एक था टाइगर' 15 अगस्त को रिलीज हुई. इस एक्शन से भरपूर फिल्म में सलमान का किरदार खूब पॉपुलर हुआ और आज भी आइकॉनिक है. जल्द ही सलमान 'टाइगर 3' भी लेकर आ रहे हैं. लेकिन सलमान से पहले, 23 मार्च को रिलीज हुई 'एजेंट विनोद' में सैफ इस ट्रेडमार्क स्पाई-हीरो के रोल में नजर आए.

जहां सलमान की 'एक था टाइगर' ब्लॉकबस्टर थी, वहीं 'एजेंट विनोद' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही. शायद यही वजह है कि सैफ की फिल्म का नाम लोगों को आज अचानक नहीं याद आता, मगर उनका ये स्पाई अवतार अपने आप में एक लेजेंड जासूस था. उसका स्वैग इतना सॉलिड था, जिसकी बराबरी करने वाला जासूस अभी तक पर्दे पर नहीं आया है. 

सौ टका शुद्ध एजेंट 
'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान के किरदार ने जितने नाम इस्तेमाल किए, उतने अलग-अलग नाम पिछली पांच बॉलीवुड स्पाई फिल्मों में कुल मिलाकर नहीं इस्तेमाल हुए होंगे. फिल्म में सैफ के नाम देखिए- जुगल किशोर, फ्रेडी खम्बाटा, मिस्टर शास्त्री, कपिल देव, विनोद खन्ना और महेंद्र संधू. इस किरदार के नामों का रिकॉर्ड देखने के बाद ये भी पक्का नहीं कहा जा सकता कि उसका रियल नाम विनोद है या नहीं. बल्कि 'एजेंट विनोद' उसका कोडनेम भी हो सकता है, जैसे 'टाइगर' का रियल नाम अविनाश सिंह राठौर है.  

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चतुर, चालाक, चौकस 
'एजेंट विनोद' का पहला सीक्वेंस ही आपको बता देता है कि सैफ का किरदार कैसा है. वो अफगानिस्तान की तालिबानी जेल में है और इंटेरोगेशन चल रही है. कुछ आतंकी इस जेल में आ रहे हैं उनमें रवि किशन भी हैं, जो कैमरे के सामने दिखाते हैं कि उनके हाथ में मौजूद म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट हार्मोनिका में एक चाकू है. वो आते ही जेल की बिजली के साथ कुछ छेड़खानी करते दिखते हैं. आप समझ जाते हैं कि ये बंदा, एजेंट विनोद को बचाने आया है. लेकिन अगले ही सीन में विनोद, आई एस आई के ऑफिशियल कर्नल हुजेफा को बता देता है कि जेल में एक और रॉ एजेंट है जिसका नाम मेजर राजन है, और उसके कंधे पर गोली लगने के दो निशान हैं. रवि किशन पकड़े जाते हैं. आपको लगता है कि ये एजेंट तो गद्दार है, इसने अपने ही साथी को पकड़वा दिया. 

'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

अब विनोद कहता है कि कर्नल हुजेफा के बॉडीगार्ड्स में से पांचवां भी एक रॉ एजेंट है और उसके पिछवाड़े पर गोली का निशान है. कर्नल और उसके बॉडीगार्ड्स अब उस पांचवे बॉडीगार्ड की पैंट उतरवा कर, गोली का निशान चेक करने में लगे हैं. इधर एजेंट विनोद एक पलटी मारता है और अब उसके हाथों में एक गन है, जिसके निशाने पर कर्नल है और वो जेल से निकलने को रेडी है. मतलब उसने आई एस आई एजेंट्स को लिटरली एक आदमी का पिछवाड़ा दिखाकर चकमा दिया है. तो हजरात.. ये हैं एजेंट विनोद!     

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फिल्म में एक और ऐसा ही सीन है, जब एक शादी में हुजेफा के साथ आए पाकिस्तानी फौजियों ने करीना कपूर को पकड़ लिया है. उन्हें पता चला है कि एक जासूस और है. लेकिन सरप्राइज ये है कि अपना एजेंट विनोद, पाकिस्तानी फौजियों की ही वर्दी में है! जैसे ही वायरलेस पर जासूस को खोजने की अनाउन्समेंट होती है, ये भाईसाहब एक बाराती को पकड़ के जवाब दे देते हैं- 'मिल गया'. वो बाराती भी घबराया हुआ है क्योंकि उसने पान खाकर, सजावट के लिए रखे एक गमले में थूका था. उसका गला ये सोचकर सूखा पड़ा है कि पान थूकना इतनी बड़ी गलती है कि पाकिस्तानी फौजी उसे बंदूकों के निशाने पर लिए खड़े हैं!

सेम-सेम लेकिन डिफरेंट
'एजेंट विनोद' एक ऐसे जासूस की कहानी है जो न्यूक्लियर बम की गुत्थी सुलझाने निकला है. दुनिया भर के लगभग आधा दर्जन शहरों से होते हुए वो पाकिस्तान जा पहुंचा है. ये इंडिया-पाकिस्तान वाले मैटर में सेट जासूसों की कहानी आपको कई फिल्मों में मिल जाएगी. लेकिन एजेंट विनोद जैसा किरदार नहीं मिलेगा. पिछले लगभग एक दशक में बनी स्पाई थ्रिलर फिल्मों में आपको लीड किरदार कम से कम एक बार देशभक्ति वाले मोनोलॉग देता स्क्रीन पर नजर आ जाएगा. लेकिन एजेंट विनोद का ये डिपार्टमेंट बहुत खराब है. उसे अपना काम अच्छे से आता है और वो इसे एन्जॉय करता है, पूरे स्वैग के साथ. 

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'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

वापस अफगानिस्तान की तालिबानी जेल में चलिए, जेल से भागते हुए वो पहले अपने साथी मेजर राजन (रवि किशन) को छुड़ाता है. जब राजन कहता है कि कर्नल अगर सच में उसे मार देता तो? विनोद अपने ट्रेडमार्क नो-टेंशन स्टाइल में जवाब देता है- 'तुझे मैडल मिलता और तेरी बीवी को पेट्रोल पंप.' आप डायलॉग सुनकर मुस्कुराते हुए सोचते हैं कि ये कैसा इंसान है! 

वो रॉ के ऑफिस में एंटर होते हुए, बिना किसी मतलब, रिसेप्शनिस्ट को जापानी भाषा में कुछ बोल जाता है. वो मतलब पूछती है तो कहता है- 'मतलब बताऊंगा तो तुम गाली दोगी'. रशियन गुंडों से बचने के लिए, शादी करने जा रही लड़की को कब्जे में लेना और हवा में गोली चलाते हुए- 'सदा सुहागन रहो' कहना, एजेंट विनोद ही कर सकता है. 

कोई इमोशनल बैकस्टोरी नहीं 
स्पाई फिल्मों में अक्सर हीरो के स्पेशल सर्विस या रॉ में आने की वजह, बचपन की कोई इमोशनल कहानी होती है. जैसे 'पठान' को ही बचपन में उसके मां-बाप सिनेमा हॉल में छोड़कर चले गए थे. 'टाइगर' के मां-बाप बचपन में गुजर गए थे. लेकिन एजेंट विनोद के साथ ऐसा नहीं है. वो 15 साल का था, जब रोपवे में ट्रेवल कर रहा था और उस रोपवे का एक केबल टूट गया था. उसने केबिन के ऊपर चढ़कर टूटा केबल अटकाया था और अपने साथी यात्रियों की जान बचाई थी. इसके लिए उसे राष्ट्रपति वेंकटरमण से मैडल मिला था और यहीं से वो रॉ की नजरों में आया.

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ये बताते हुए एजेंट विनोद बहुत शातिर तरीके से अपनी उम्र भी बता जाता है. स्वर्गीय रामस्वामी वेंकटरमण 1987 से लेकर 1992 तक भारत के राष्ट्रपति थे. विनोद को अवार्ड 15 साल की उम्र में मिला था यानी वो 1973 से 1977 के बीच पैदा हुआ था. इस डिटेल को ध्यान में रखकर अब ये सोचिए कि पठान, या टाइगर, या फिर कबीर और बाकियों की उम्र आप क्लियर बता सकते हैं?

धांसू डायलॉगबाजी 
'एजेंट विनोद' की सबसे बड़ी खासियतों में से एक है इसकी डायलॉगबाजी. ऊपर इस बात के दो उदाहरण तो हैं ही, लेकिन पूरी फिल्म में न सिर्फ विनोद बल्कि बाकी किरदारों के डायलॉग भी बहुत मजेदार थे. फिल्म का एक विलेन तैमूर पाशा (गुलशन ग्रोवर), आई एस आई के कर्नल हुजेफा से पूछ रहा है कि इस बार क्या नया है? जवाब मिलता है कि दिल्ली में न्यूक्लियर बम ब्लास्ट करने का प्लान है. 'बॉर्डर' के फैन्स को एक पाकिस्तानी ऑफिसर का डायलॉग याद होगा- 'सुबह का नाश्ता दिल्ली में'. यानी भारत की राजधानी तक घुस आने का सपना लिए पाकिस्तानी ऑफिसर्स की साजिश वाला एंगल फिल्मों में बहुत पुराना है.
 
पाशा से कर्नल को जवाब मिलता है- 'बोर नहीं होते तुम लोग!' ये इस प्लॉट पॉइंट पर एक जोक है कि इसे कितनी बार फिल्मों में घिसा जा चुका है. हालांकि, कर्नल अपनी साजिश में बहुत हद तक कामयाब हुआ और ये न्यूक्लियर बम दिल्ली में एक्टिवेट हो गया. तबाही कम से कम हो, इसलिए हेलिकॉप्टर में बम लिए एजेंट विनोद दिल्ली से बाहर किसी खाली जगह पर बम को ठिकाने लगाने निकला है. एक्टिव बम के साथ बैठा एजेंट, लीड फीमेल किरदार से कॉल पर बात करते हुए कहता है- 'बस एक मिनट बचा है, प्लीज कुछ जबरदस्त सा बोल दो.' 

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'एजेंट विनोद' में सैफ अली खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

क्लासिक हिंदी फिल्मों को ट्रिब्यूट
'अंधाधुन' 'जॉनी गद्दार' जैसी बेहतरीन फिल्में बनाने वाले श्रीराम राघवन 'एजेंट विनोद' के भी राइटर-डायरेक्टर हैं. हिंदी फिल्मों के लिए उनका प्यार आपको पूरी 'एजेंट विनोद' में भरपूर नजर आता है. एजेंट विनोद के कई झूठे नामों में से एक जुगल किशोर, एक कम याद किए जाने वाले डायरेक्टर को ट्रिब्यूट लगता है. डायरेक्टर जुगल किशोर ने 60 और 70 के दशक में 'लाल बंगला' 'फरेब' 'अपराधी' जैसी सस्पेंस थ्रिलर टाइप फिल्में बनाई थीं. 

फिल्म में जब सैफ, करीना को धोखेबाज बताने के अंदाज में कहते हैं- 'शायद तुम्हें मेरे जूते पसंद नहीं आए'; ये अमिताभ बच्चन की क्लासिक 'डॉन' का रेफरेंस है. याद कीजिए यही कहकर डॉन (अमिताभ) ने अपनी गैंग के एक मेंबर राजेश को शूट कर दिया था और बताया था कि वो पुलिस का एजेंट है. रशियन माफिया से घिरने पर रूबी उर्फ इरम परवीन बिलाल (करीना) विनोद से कहती है- 'एक गोली से तीन आदमी कैसे मारोगे?' ये 'शोले' के गब्बर वाले मशहूर सीन का रेफरेंस है. इसी तरह एक डायलॉग में, मसाला बॉलीवुड फिल्मों की नींव रखने वाली 'यादों की बारात' (1973) का रेफरेंस है. 

'एजेंट विनोद' के बैकग्राउंड म्यूजिक पर 70s और 80s के स्टाइल का बहुत तगड़ा असर है. ऊपर से कई पुरानी क्लासिक फिल्मों के गाने इसमें यूज किए गए हैं. जैसे- 'द ट्रेन' का 'ओ मेरी जां मैंने कहा', राज कपूर की क्लासिक 'फिर सुबह होगी' से 'आसमां पे है खुदा और जमीं पे हम'. 'कश्मीर की कली' से 'तारीफ़ करूं क्या उसकी' को यूज करते हुए सैफ फिल्म में करीना की तारीफ करते दिखते हैं, वहीं पाकिस्तान में चल रही शादी में बैंड वाले 'सुहाग' फिल्म का गाना 'तेरी रब ने बना दी जोड़ी' बजा रहे हैं. 

तो फिर क्यों फ्लॉप हुई 'एजेंट विनोद'?
श्रीराम राघवन का सिनेमा बॉलीवुड की यादें, क्लासिक्स के रेफरेंस और स्टाइलिश स्टोरीटेलिंग से हमेशा भरा होता है. लेकिन ये पूरा सेटअप एक उलझे हुए जोक की तरह यूज होता है. ऐसे उलझे, लंबे जोक्स के साथ दिक्कत ये होती है कि एन्जॉय वही कर सकता है, जो शुरू से जोक पकड़ ले. ऊपर से 'एजेंट विनोद' एक ढाई घंटे लंबे चेज सीक्वेंस की तरह थी, जो रशिया, जर्मनी, इंग्लैंड, मोरक्को, सोमालिया, पाकिस्तान जैसे आधा दर्जन से ज्यादा देशों के, दर्जन भर से ज्यादा शहरों में जारी रहता है. 

 

ऊपर से फिल्म का लॉजिक कई जगह जवाब दे जाता है. आजकल बॉलीवुड की स्पाई-थ्रिलर फिल्मों से लोगों को एक शिकायत रहती है कि कंटेंट कम रहता है और एक्शन ही एक्शन भरा होता है. पहले हाफ में कहानी की पेस ठीक रहती है मगर सेकंड हाफ में स्लो पड़ जाती है. हालांकि, 'एजेंट विनोद' का सीन बिल्कुल अलग था. इस फिल्म का फर्स्ट हाफ तो फास्ट है ही, और ये काफी चीजों से भरा है. मगर सेकंड हाफ में फिल्म का असली मूड सेट होता है और कई रिव्यू में तो यहां तक कहा गया था कि 'एजेंट विनोद' का सेकंड हाफ ब्रिलियंट है.

सैफ का ब्रिलियंट काम

श्रीराम राघवन ने जितने विस्फोटक कूल-फैक्टर के साथ एजेंट विनोद का किरदार लिखा था, उसमें सैफ के अलावा किसी और एक्टर को सोच पाना भी मुश्किल लगता है. आप ये सोच ही नहीं सकते कि कोई एजेंट पकड़े जाने के बाद 'आखिरी ख्वाहिश' पूछने पर ठंडी बियर मांग सकता है... और सैफ इसे जितने परफेक्शन के साथ करते हैं वो अद्भुत है. इन्वेस्टिगेशन के लिए आए ऑफिसर्स को 'आप कतार में हैं' सैफ ही परफेक्ट कूल अंदाज के साथ बोल सकते हैं. हाईट से जंप करने के बाद उनकी लैंडिंग एकदम पिक्चर-परफेक्ट थी और जेम्स बॉन्ड जैसा स्टाइलिश अंदाज उनपे कमाल का सूट कर रहा था.

यही वजह है कि 'पठान' और 'टाइगर' जैसे धमाकेदार स्पेशल एजेंट्स के सीक्वल बढ़ने के बीच, एजेंट विनोद को वापस लाना चाहिए. सैफ ने 'एजेंट विनोद' के अलावा ' एक था टाइगर' बनाने वाले कबीर खान की स्पाई-थ्रिलर 'फैंटम' में भी काम किया था. उस फिल्म में भी सैफ का काम, और जासूस के किरदार में उनका पूरा काम देखने लायक है. भले वो फिल्म भी फ्लॉप रही हो. यश राज फिल्म्स का सैफ के साथ रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है और दोनों ने साथ में 'हम तुम' और 'ता रा रम पम' जैसी हिट दी हैं.

अब, जब यश राज अपना स्पाई-यूनिवर्स बढ़ा रहा है और नए किरदार जोड़े जा रहे हैं तो सैफ को 'एजेंट विनोद' जैसे एक अल्ट्रा-कूल स्पाई के किरदार में देखना बहुत दिलचस्प हो सकता है. हमने अपना केस पूरी मजबूती से पेश कर दिया है. 'एजेंट विनोद' ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर अवेलेबल है. अगर आपने ये फिल्म पहले देखी है और बाद में 'पठान' 'टाइगर जिंदा है' देख चुके हैं, तो अब दोबारा देखिए. अगर आपने 'एजेंट विनोद' नहीं देखी है तो अब जरूर देखिए और बताइए कि क्या आप भी सैफ को ऐसे मजेदार जासूस के रोल में देखना चाहेंगे?

 

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