बॉलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर पहले अपने बढ़े हुए वजन को लेकर काफी परेशान रहे हैं. उन्होंने कई बार इसका जिक्र किया है कि वो डिप्रेशन से भी गुजर चुके हैं. बावजूद इसके कि वो बोनी कपूर के बेटे हैं और एक प्रेस्टीजियस फैमिली से आते हैं उन्हें स्ट्रगल और थेरेपी सेशन्स का एक लंबा दौर देखना पड़ा. इस बारे में उन्होंने हाल ही में बात की.
FICCI यंग लीडर्स समिट में अर्जुन ने अपने मानसिक स्वास्थ्य, मोटापे से संघर्ष और अचानक मिली पॉपुलैरिटी से हुए भावनात्मक असर के बारे में खुलकर बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि थेरेपी को नॉर्मल बनाना चाहिए और कमजोरी दिखाना असल में ताकत की निशानी है, न कि कमजोरी.
'थेरेपी ने मुझे फिर से खुद से मिलवाया'
अर्जुन ने बताया कि उनके जीवन का मोड़ कोविड महामारी के दौरान आया. उन्होंने कहा, “कोविड ने मुझे एहसास दिलाया कि मैं खुद का ख्याल नहीं रख रहा था. इसलिए मैंने थेरेपी शुरू की. लोग सोचते हैं कि जिन्हें सब कुछ ठीक लगता है, उन्हें मदद की जरूरत नहीं होती, लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार सबसे मजबूत दिखने वाले लोग भी अंदर से टूटे होते हैं.”
अर्जुन ने ये भी बताया कि 2012 में अपनी मां मोना शौरी कपूर के निधन के बाद उन्होंने खुद को काम में झोंक दिया. वो बोले,“मेरी मां मार्च 2012 में गुजर गईं और 45 दिन बाद मेरी पहली फिल्म इशकजादे रिलीज हुई. मैं एक तरफ मातम मना रहा था और दूसरी तरफ स्टार बन रहा था. लेकिन असल में मैं अपने दर्द से भाग रहा था.”
मोटापे से जंग और मानसिक संघर्ष
अर्जुन ने बताया कि मोटापा कम करना उनके लिए सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक लड़ाई भी थी. उन्होंने कहा,''मुझे 50 किलो वजन कम करने में 4 साल लगे. मैं खुशकिस्मत था कि मेरी मां ने पूरा साथ दिया. लेकिन हर किसी के पास वो भावनात्मक या आर्थिक सहारा नहीं होता.”
अर्जुन ने आगे कहा, “जब आप 25 साल की उम्र में अपनी रीढ़ (सपोर्ट सिस्टम) खो देते हैं, तो दुनिया आपको क्या डराएगी? मैंने इतना कुछ झेला है कि अब किसी चीज से डर नहीं लगता.” उन्होंने बताया कि उनकी बहन अंशुला कपूर ने उन्हें अपनी भावनात्मक जरूरतों को समझने में मदद की.