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12 फ‍िल्में हुईं बंद, करियर के पीक पर देखी बर्बादी, अब काम मांंगने को भी हूं राजी, बोले अध्ययन सुमन

एक्टर अध्ययन सुमन इन दिनों अपनी सीरीज इंस्पेक्टर अविनाश को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म में विलेन के रूप में अध्ययन लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे हैं. उनका किरदार फैंस पसंद कर रहे हैं.

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अध्ययन सुमन
अध्ययन सुमन

अध्ययन सुमन इन दिनों डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं. आश्रम के बाद वो इंस्पेक्टर अविनाश में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा रहे हैं. अध्ययन हमसे अपनी जर्नी और करियर पर हुए अप्स एंड डाउन पर ढेर सारी बातचीत करते हैं. 

डिजिटल माध्यम में इन दिनों कॉप ड्रामा कॉफी इनकैश किए जा रहे हैं. इसमें इंस्पेक्टर अविनाश कैसे अलग साबित होगा? 
-यह शो तो एक असल पुलिस की जिंदगी पर आधारित है. उनकी कहानी को नीरज सर ने दिखाने की कोशिश की है कि कैसे उन्होंने इतने एनकाउंटर किए हैं. कैसे यूपी में क्राइम को संभाला है. यह बाकी कॉप ड्रामा से ये कितना अलग है, यह तो दर्शक तय करेंगे. वो देखकर हमें बता पाएंगे कि उन्हें क्या अलहदा लगा है. एक एक्टर के तौर पर तो मैं यही कहूंगा कि हां, भई अलग है, तब जाकर इसमें हिस्सा बना. ये तो ऑडियंस को तय करना है कि यह देखकर उन्हें मजा आया या नहीं. हालांकि हमारी कोशिश है कि यह क्लास तक न सीमित होकर मास तक पहुंचे. बहुत मेहनत लगी है. 

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मेहनत की बात हुई है, तो आपने अपने किरदार के लिए सुना है 9 किलो बढ़ाया है? 
-मैं मानता हूं कि एक एक्टर के लिए यह रिस्क लेना बहुत जरूरी है. हां, पता है कि एक्टर पर तमाम तरह के प्रेशर होते हैं, उन्हें गुड लुकिंग बने रहना होता है. मेरा किरदार शशि भूषण ठाकुर ऐसा आदमी है, जो दिन रात ड्रग्स लेता है, अल्कोहल पीता है, ठीक से सोता नहीं है. अब इस किरदार को आप हीरो की तरह कैसे दिखा पाओगे. जब तक उसके डार्क सर्कल न दिखे, वजन बढ़ा न हो, तो कैसे कन्विंस कर पाएंगे. मैंने इसलिए ओरिजनल रखने के लिए वजन बढ़ाया था. वर्ना इस किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाता. कितने घंटों मेकअप से गुजरना पड़ता था. हालांकि एक्टर के लिए फिजिकल ट्रांसफोर्मेशन से गुजरना भी एक बड़ा टास्क होता है. आपको वेट बढ़ाने में उतनी दिक्कत नहीं होती है, जितना शेप पर आने में होता है. अभी भी वजह कम करने के प्रॉसेस में ही हूं. 

रणदीप हुड्डा जो वजन कम करने में माहिर हैं. उनसे कोई टिप ली है? 
-अरे उनका जुनून तो पागलपन वाला है. सरबजीत में वो डेडिकेशन देख चुके हैं. मुझे लगता है कि एक्टर का यूं पागल होना जरूरी भी है. तभी आपको तारीफ भी ऐसी ही मिलती है. वो कमाल के एक्टर हैं. मुझे लगता है कि अब एक्टर्स के लिए वक्त बदल रहा है. पहले तो एक्टर्स के सिक्स पैक होने चाहिए, हेयर मेकअप परफेक्ट हों. वहीं आप हॉलीवुड में देखें, एक्टर्स रिंकल्स, फ्रीकल्स को छुपाते नहीं हैं. अब यहां भी ऐसे अनकन्वेंशनल एक्टर्स को पसंद किया जा रहा है. हमारे यहां एक्टर्स अपनी कमियां दिखाने से हिचकते हैं, वो इमेज को लेकर काफी सजग होते हैं. अगर किसी ने इमेज से बाहर निकलने की कोशिश भी की है, तो फेल हुए हैं. यहां ऑडियंस को वो एक्सेप्टेंस लाने की जरूरत है. उनपर दबाव बनाने के बजाए उन्हें नए रूप में अपनाएंगे, तो एक्टर्स के अंदर भी वो एक्सपेरिमेंट करने का कॉन्फिडेंस आएगा. 

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तो यहां फ्लॉप होती फिल्मों की जिम्मेदार केवल ऑडियंस हैं? 
- नहीं ऐसा नहीं है. कई मेकर्स हैं, जिनके पास कहने को कोई अच्छी कहानियां नहीं हैं. स्क्रिप्ट कमजोर होने की वजह से ही तो इतनी बड़े एक्टर्स और उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होती जा रही हैं. अगर कोई अच्छा राइटर कहानी लेकर जाता भी है, तो उसे नकार दिया जाता है कि ये फॉर्मूला में फिट नहीं बैठती है, नहीं चलेगी. वहीं दूसरी ओर केरला स्टोरी बनाने वाले भी मेकर्स हैं, जिन्होंने हिम्मत दिखाई है और रियल कहानियों को लोगों के सामने परोसा है. आज देखें, वो कितना अच्छा बिजनेस कर रही हैं. दोनों तरफ से ही बदलाव की जबरदस्त जरूरत है. 

आश्रम और अब इंस्पेक्टर अविनाश, यह कह सकते हैं कि अध्ययन अब दोबारा गेम में वापस आ गए हैं? 
-मैंने अपने बारे में कुछ खबरें सुनी कि अध्ययन सुमन री-लॉन्च हो रहे हैं. डिजिटल में डेब्यू कर रहे हैं. मैं उसे ऐसे नहीं देखता हूं. मैं कहीं गया ही नहीं था न. मैं तो काम के लिए इंतजार कर रहा था. री-लॉन्च या कमबैक उनका होता है, जो कहीं ब्रेक से आते हैं. मैं तो काम मांग रहा था. बीच में जब एक्टर के रूप में काम नहीं मिल रहा था, तो उस वक्त मैं खुद को बिजी रखने के लिए गाने बना रहा था. मैं पिछले तीन साल से डायरेक्शन का प्लान कर रहा हूं, इसके लिए मैंने कहानी भी लिखी हैं. मैंने काम करना बंद नहीं किया था. मैंने विवेक ओबरॉय संग एक वीडियो एल्बम शूट किया है, जिसे मैंने डायरेक्ट किया था. वो मेरे काम को लेकर काफी खुश थे. उन्होंने कहा कि तुममें जो जिद्दीपन है, उसे दुनिया एक दिन जरूर देखेगी. बस काम में लगे रहो. 

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अपनी गलतियों से क्या सीखा आपने? 
- मैं अब सोचता हूं, तो लगता है कि अगर वो गलतियां नहीं की होती, तो शायद आज यहां नहीं होता. मैंने अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा है. एक आर्टिस्ट्स के तौर पर मेरा जो ग्रोथ रहा है, उसका सबसे बड़ा कारण यही रहा है कि मैं नीचे गिरा, फेल्यॉर देखा. एक ऐसा वक्त भी था, जब चीजें मेरे मां-बाप के हाथ से भी निकल गई थी. वो भी हेल्पलेस हो चुके थे. वो बस यही दुआ करते थे कि बस मेरा बच्चा ठीक हो जाए. बहुत डिस्टर्बिंग फेज था. मुश्किल होता है, जब कई सारे ओपिनियन, जजमेंट को नजरअंदाज करते हुए खुद को समेटकर ऊपर उठना. खासकर करियर के एकदम शुरुआत में ही आपके साथ ये सब हो जाए, तो समझ नहीं आता क्या करें. मुझे याद है कि मेरी फिल्म राज सक्सेसफुल रही थी. जश्न में मैं सोलो हीरो रहा था. सोचें, मेरे पास सबकुछ था लेकिन फिर कुछ भी नहीं रहा. लोग तो कहते थे कि अरे आपको करियर तो अच्छा चल रहा था फिर 2010 के बाद 12 फिल्में बंद हो गई. मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था. अब जो हो चुका है, वो बीत गया. बस यही कोशिश है कि वैसी गलतियों को दोबारा न दोहराऊं. 

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उस वक्त इंडस्ट्री के कौन से लोग थे, जिन्होंने सपोर्ट किया ? 
-कुछ गिने चुके लोग हैं, जिन्होंने मेरे अंदर के टैलेंट को समझते हुए मौका दिया है. प्रकाश झा, इंस्पेक्टर अविनाश के डायरेक्टर नीरज जी, इन्होंने मुझे उस वक्त मौका दिया, जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी. मैं तो आज भी लोगों को कॉल लगाकर काम मांगता रहता हूं. अभी भी लोग फोन नहीं उठाते हैं, लेकिन मैं उनपर फोकस कर रहा हूं, जो फोन कर काम दे रहे हैं. मैं तो आज भी ऑडिशन देने के लिए तैयार हूं. मेरा कोई ईगो नहीं है, मैं तो दरवाजा खटखटा कर बोल सकता हूं कि मुझे काम दे दो. 

 

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