आंध्र प्रदेश में चिरंजीवी का वही मतलब है जो बॉलीवुड में शाहरुख खान का. मुख्यमंत्री की कुर्सी के इस नवीनतम दावेदार के चुनावी मैदान में कूदने के बाद से ही उनकी रैलियों में भारी उन्मादी भीड़ उमड़ रही है. असल में दक्षिण भारत में राजनैतिक भूमिकाओं के लिए फिल्मी कलाकारों को जबरदस्त समर्थन देने का इतिहास रहा है. इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडु के ससुर एन.टी. रामराव का है. चिरू के नाम से बेहतर जाने जाने वाले चिरंजीवी खुद को पिछड़े वर्गों के पैरोकार के रूप में पेश करते रहे हैं और वंचित वर्गों के बच्चों को छात्रवृत्ति देने का वादा करते हैं.
साथ ही रियायती दर पर शिक्षा और 5,000 करोड़ रु. का कोष जिससे राज्य पिछड़ा वर्ग वित्त निगम लड़कियों को अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए ऋण दे सकता है. उन्होंने पद ग्रहण करने के 1,000 दिन के भीतर युवाओं के लिए 10 लाख नौकरियों का सृजन करने का वादा किया है. और गरीब लोगों के लिए मासिक राशन कोटा जिसमें 25 किलो चावल, एक-एक किलो चीनी, तेल और दाल तथा आधा किलो इमली देने का वादा किया है. इसकी कीमत होगी सिर्फ 100 रु. असल में उनका चुनावी मंत्र गरीबों के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय का है, जो एक समृद्ध और संतुष्ट राज्य का आधार बनेगा.
अब एक बुरी खबर. उनके प्रतिद्वंद्वी द्वय- नायडु और वर्तमान मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी ने भी अपनी लोकलुभावन पेशकश की हैं. इससे भी बढ़कर यह कि चिरंजीवी के राजनैतिक नौसिखुएपन की वजह से उनके विरोधियों की संख्या बढ़ रही है. इनका आरोप है कि चिरू ने पीआरपी को एक फिल्म कंपनी की तरह चलाए जाने की छूट दे दी है. ये आरोप भी उछाले जा रहे हैं कि उम्मीदवारों के पीआरपी का टिकट पाने से पहले करोड़ों रु. का लेनदेन हुआ. इसके अलावा उनके बहनोई अलु अरविंद पर भी पीछे से डोर खींचने के आरोप हैं. दूसरे कई प्रकरणों के कारण भी पार्टी में असंतोष, मतभेद यहां तक कि पीआरपी पदाधिकारियों के पार्टी छोड़ जाने के मामले हुए हैं. इससे परदे के अलावा परदे के पीछ भी लोगों का भला करने की इस स्टार की छवि को नुक्सान पहुंचा है. अब ऐसे हाल में पार्टी की चुनावी संभावना की बात तो की ही नहीं जानी चाहिए.
{mospagebreak}इसका यह मतलब हुआ कि पीआरपी की असली चुनावी ताकत एक अनजाना तत्व बन गई है हालांकि यह स्पष्ट हो चुका है कि शुरुआती उन्माद मंदा पड़ गया है और चिरू के रेल इंजन की भाप निकल गई है. फिलहाल उन्होंने भी लगता है, किंग बनने की बजाए किंग मेकर की भूमिका से ही संतुष्ट रहने की मानसिकता बना ली है. रेड्डी और नायडु दोनों को ही स्पष्ट बहुमत से थोड़ी कम सीटें मिलने की संभावना के चलते उन्हें पीआरपी के समर्थन की जरूरत होगी. इसका यह अर्थ हुआ कि चिरू फैक्टर वोटों की गिनती के बाद भी महत्पवूर्ण भूमिका निभा सकता है. यदि ऐसा होता है तो वे अपनी लोकलुभावन नीतियों को लागू करने के लिए जोर दे सकते हैं. इसका यह अर्थ भी हुआ कि यादव नेताओं द्वारा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झरखंड और बिहार में बनाए गए एक बहु-दलीय गठबंधन में पीआरपी के भाग लेने की वजह से उनका प्रभाव हैदराबाद से परे भी पहुंच सकता है.
इस संदर्भ में देखें तो पीआरपी अधिक ताकत हासिल करने के लिए आंध्र प्रदेश में कांग्रेस सरकार को समर्थन दे सकती है और बदले में दिल्ली में गठबंधन सरकार का हिस्सा बनने के लिए सौदा भी कर सकती है. इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो उनके राजनैतिक अवतार की पटकथा लिखी जा चुकी है और कैमरा बस शुरू होने को ही है.
साभार: इंडिया टुडे