महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव-2019 का ऐलान हो चुका है. सांगली जिले के 8 विधानसभा सीटों पर 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे. 2011 जनगणना के मुताबिक, सांगली की आबादी 28.22 लाख से अधिक है. यहां औसत साक्षरता 81.48 के करीब है. 2014 तक इस जिले में कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन मोदी लहर में इस जिले की एक विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में नहीं आई. बता दें कि 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के 122, शिवसेना के 63, कांग्रेस के 42 और एनसीपी के 41 सदस्य हैं.
ये विधानसभा सीटें हैं
मिराज (एससी), सांगली, इस्लामपुर, शिरला, केदगांव, खानपुर, तसगांव-कवठे महाकाल, जाठ
मिराज
वोटरों की संख्या- 303011 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- बीजेपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 61.17%
प्रत्याशियों की संख्या-18
सांगली
वोटरों की संख्या- 328663 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- बीजेपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 59.47%
प्रत्याशियों की संख्या- 20
इस्लामपुर
वोटरों की संख्या- 250066
2014 में किसे मिली जीत- एनसीपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 72.36%
प्रत्याशियों की संख्या- 14
शिरला
वोटरों की संख्या- 276659 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- बीजेपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 78.97%
प्रत्याशियों की संख्या- 10
केदगांव
वोटरों की संख्या- 254502 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- एनसीपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 81.96%
प्रत्याशियों की संख्या- 12
खानपुर
वोटरों की संख्या- 297271 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- शनिसेना
वोटिंग पर्सेंटेज- 73.31%
प्रत्याशियों की संख्या- 14
तसगांव-कवठे महाकाल
वोटरों की संख्या- 271273 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- एनसीपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 75.77%
प्रत्याशियों की संख्या- 15
जाठ
वोटरों की संख्या- 249286 से अधिक
2014 में किसे मिली जीत- एनसीपी
वोटिंग पर्सेंटेज- 75.77%
प्रत्याशियों की संख्या- 15
कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था सांगली जिला
सांगली शहर दक्षिण-पश्चिम भारत के पश्चिम एवं दक्षिण महाराष्ट्र राज्य में स्थित है. सांगली नगर पुणे-बंगलुरु रेलमार्ग पर कोल्हापुर के पूर्व में कृष्णा नदी के किनारे स्थित है. सांगली संस्थान के वर्तमान राजा विजय सिंह राजे पटवर्धन हैं. महाराष्ट्र की सांगली पहले मिरज सीट कहलाती थी लेकिन 1967 में इसका नाम सांगली लोकसभा सीट (सांगली लोकसभा मतदारसंघ) हो गया था. संभवत: सबसे लंबे समय तक यहां कांग्रेस ने लगातार शासन किया. 1962 से 2014 के बीच 52 सालों तक लगातार कांग्रेस का शासन रहा. यहां तक की आपातकाल के बाद जब कांग्रेस अपने बुरे दिनों में थी, तब भी यहां कांग्रेस का सांसद बना. कांग्रेस के तिलिस्म को मोदी लहर ने 2014 में तोड़ा था.