गुजरात के आणंद जिले को मिल्क सिटी यानी दूध के शहर के नाम से जाना जाता है. यह शहर श्वेत क्रांति के गढ़ के रूप में भी अपनी पहचान रखता है. अमूल डेयरी के कुशल और सफल प्रबंधन के कारण, आनंद ने डेयरी उद्योग के केंद्र के रूप में दुनिया में अच्छी प्रतिष्ठा हासिल की है. अमूल डेयरी की स्थापना 1955 से हुई है, जो पूरे देश में हुई श्वेत क्रांति की शुरुआत है.
आणंद मूल रूप से खेड़ा जिले का हिस्सा था. 1997 में आनंद अस्तित्व में आया. यह पूरा क्षेत्र समृद्ध और उत्पादकता से भरा हुआ है, खंभात तालुका और तारापुर तालुका के कुछ हिस्सों को "भाल" क्षेत्र कहा जाता है, जहां खाड़ी भूमि और समुद्री तट प्रभाव के कारण कृषि उत्पादकता की समस्या है. हालांकि भाल क्षेत्र का गेहूं अपनी श्रेष्ठ गुणवत्ता के कारण बहुत प्रसिद्ध है.
मध्य गुजरात में स्थित आणंद के उत्तर में महिसागर जिला, दक्षिण में खंभात की खाड़ी (खंभात), पूर्व में पंचमहल, दक्षिण पूर्व में वडोदरा जिला और पश्चिम में खेड़ा जिला है.
यहां साक्षरता दर 85.79 फीसदी है. पेटलाद तालुका का धर्मज गांव को गुजरात का सबसे आर्थिक रूप से समृद्ध गांव माना जाता है. इस गांव के हर घर का एक व्यक्ति विदेश में बस गया है जिससे इस गांव को मिनी पेरिस भी कहा जाता है.
आणंद जिले में विधानसभा की 7 सीटें
आणंद जिले में विधानसभा की 7 सीटें हैं. इस क्षेत्र में जहां बीते चुनाव (2017) में सिर्फ दो सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी वहीं 5 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था.
108 खंभात विधानसभा: बीजेपी
109 बोरसद विधानसभा: कांग्रेस
110 आंकलाव विधानसभा: कांग्रेस
111 उमरेठ विधानसभा: बीजेपी
112 आणंद विधानसभा: कांग्रेस
113 पेटलाद विधानसभा: कांग्रेस
114 सोजित्रा विधानसभा: कांग्रेस
अमूल के बाद मेहसाणा का दूधसागर, सूरत का सुमुल, साबरकांठा का साबर और अहमदाबाद की आबाद डेयरी की वजह से गुजरात डेयरी उद्योग में देश में पहले स्थान पर है. उपलब्ध जानकारी के अनुसार गुजराक में 7,913 डेरियां हैं और इसके 11,50,000 सदस्य हैं. आणंद राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का मुख्यालय भी है. सालाना लगभग 38 लाख मीट्रिक टन दूध का यहां उत्पादन होता है.
आणंद सिर्फ मिल्क सिटी के नाम से ही नहीं बल्कि प्रसिद्ध बिजनेस स्कूल-आईआरएमए और आनंद कृषि विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है. आणंद को सरोगेसी हब के रूप में भी लोग जानते हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
आणंद सीट पर अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं जिसमें 2014 का उपचुनाव भी शामिल है. पहली बार यहां 1962 में चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी भाईलाल भाई पटेल जीते थे. 1990 तक यहा पर कांग्रेस भारी अंतर से चुनाव जीतती रही लेकिन अयोध्या राम मंदिर की लहर ने आणंद को बिजेपी की झोली में डाल दिया.
साल 1994 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने भारी मतों से जीत दर्ज की थी. उसके बाद इस सीट पर बीजेपी का कब्जा लगातार बना रहा हालांकि वोटों का अंतर घटता रहा.
2017 में बीजेपी ने कांग्रेस से आए योगेश भाई पटेल को टिकट दे दी जिसके चलते संगठन में काफी नाराजगी थी. इसका खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा और ये सीट बीजेपी के हाथों से निकल गई.
सामाजिक ताना-बाना
आणंद में हिन्दुत्व का काफी प्रभाव देखने को मिलता है. यही वजह है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान बीजेपी ने कांग्रेस के किले में यहां सेंध लगा दी.
हालांकि यहां मुस्लिम ओर क्रिश्चियन मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं. यहां पर ओबीसी ओर पटेल मतदाता भी है जिन्हें बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. आणंद के करमसद ,आणंद ओर वल्लभ विध्यानगर पालिका में भाजपा का दबदबा है.
मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह ने 2017 चुनाव मे आणंद विधानसभा क्षेत्र के करसमद से जो सरदार पटेल का घर है, वहां से गौरव यात्रा की शुरूआत की थी. तब सभा के दौरान पाटीदारों ने जोरदार हंगामा किया था.
वोटरों की संख्या ( 2021)
पुरुष मतदाता: 1,60,612
महिला मतदाता: 1,55,458
अन्य : 4
कुल : 3,16,074
2017 का जनादेश
2017 में आणंद सीट पर 68.86% मतदान हुआ था. इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिभाई सोढापरमार ने जीत दर्ज की थी. कांतिभाई सोढापरमार को 98,168 वोट मिले थे. वहीं बीजेपी उम्मीदवार योगेश पटेल को 92,882 प्राप्त हुए थे जबकि 2646 लोगों ने नोटा को विकल्प चुना था.
विधायक रिपोर्ट कार्ड
नाम : कांतिभाई मणीभाई सोढापरमार
उम्र : 61 साल
शिक्षा: डिप्लोमा इन को-ओपरेटिव संस्था
व्यवसाय: खेती
परिवार: पत्नी, तीन पुत्र ओर एक पुत्रवधु
संपत्ति : कुल 4 करोड 36 लाख रुपये ( 2017के मुताबिक)
जिले की समस्या
वैसे आणंद में काफी विकास हुआ है लेकिन अभी भी कई ऐसे गांव और इलाके के हैं जिसका विकास नहीं हुआ है. रोड , पानी, रोजगार , उद्योग जैसी प्राथमिक सुविधाओं का अभाव है. (आनंद से हेताली शाह की रिपोर्ट)
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