जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को चुनाव संपन्न होंगे. नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे. आगामी विधानसभा चुनाव से पहले 'पंचायत आजतक' का मंच सज गया है. इस कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के तमाम राजनीतिक दल और उनके नेता शिरकत कर रहे हैं और केंद्र शासित प्रदेश से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं. इसी कड़ी में जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे कश्मीरी पंडित समुदाय के तीन नेता भी पंचायत आजतक के मंच पर उपस्थित हुए.
जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कश्मीरी पंडितों के लिए चीजें कितनी बदली हैं, उनके जीवन में क्या बदलाव आए हैं, इसको लेकर आरपीआई की डेजी रैना, आरएलजेपी के संजय सर्राफ और भाजपा के वीर सर्राफ ने पंचायत आजतक के मंच पर अपने विचार रखे. बता दें कि डेजी रैना पुलवामा से इस बार आरपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. संजय सर्राफ अनंतनाग और हबाकदल सीटों से आरएलजेपी प्रत्याशी हैं. वीर सर्राफ अनंतनाग से भाजपा प्रत्याशी हैं.
"कश्मीरी पंडित और मुसलमानों में कभी दुश्मनी थी नहीं, जो भी हुआ सब राजनीतिक दलों और नेताओं की वजह से हुआ है" : @LjpSaraf (कश्मीरी पंडित / RLJP उम्मीदवार) #PanchayatAajTakJK #PanchayatAajTak | @PoojaShali pic.twitter.com/CUICcz0EaP
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अब वैसे हालात नहीं जैसा 20-30 साल पहले था: वीर सर्राफ
वीर सर्राफ ने कहा कि ज्यादातर कश्मीरी पंडित अभी विस्थापन की ही जिंदगी बिता रहे हैं. यहां कुछ लोग ही आए हैं, जिन्होंने सोचा कि हमें बहुसंख्यकों के साथ फिर से एकजुट होकर रहना होगा. बदलाव बहुत हुआ है. पिछले कुछ वर्षों में भले ही कश्मीरी पंडितों की टारगेटेड किलिंग्स हुई हैं, लेकिन वैसे हालात नहीं हैं जैसा 20-30 साल पहले था. अब वैसा डर नहीं है कश्मीरी पंडितों के मन में.
देश के लिए काम करना है तो डर किस बात का: डेजी रैना
डेजी रैना ने कहा कि देश के लिए काम करना है तो डर किस बात का. उन्होंने कहा कि मैं दिल्ली से 2020 में यहां आई और पिछले 4 साल से पुलवामा में काम कर रही हूं. मैं 1990 में दिल्ली चली गई थी. मैं कोई बड़ी राजनीतिज्ञ नहीं थी. मैंने सरपंच बनकर काम किया है. बिना सुरक्षा के घूमी. मैंने यहां अपनी कम्युनिटी और मुसलमानों के लिए भी मेहनत की है, काम किया है.
"NC-PDP हमारी ए टीम और बी टीम हैं", बोले @veersaraf (बीजेपी उम्मीदवार)
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कोई बच्चा पत्थर-बंदूक लेकर नहीं पैदा हुआ: संजय सर्राफ
संजय सर्राफ ने कहा जब जम्मू कश्मीर में चुनाव की बात आती है तो मैं अपने दिमाग में यह नहीं सोचता कि मैं कश्मीरी पंडित के रूप में चुनाव लड़ रहा हूं. कश्मीरी पंडित और कश्मीरी मुसलमान में आपस में कभी दुश्मनी नहीं थी. यहां जो भी हुआ वह राजनीतिज्ञों के चलते हुआ. कोई बच्चा यहां पत्थर और बंदूक लेकर नहीं पैदा हुआ था, ये तो ऐसा वातावरण बनाया गया. मैं ग्राउंड जीरो पर काम कर रहा हूं. मुस्लिम भाइयों की मदद से मैंने दशहरा और जन्माष्टमी मनाया. मुझे हमेशा महसूस हुआ कि यहां लोगों के बीच भाइचारा है. जो हुआ उसके पीछे राजनीतिक कारण थे.
JKNC और कांग्रेस की वहज से मिलीटेंसी आई: वीर सर्राफ
जम्मू कश्मीर चुनाव में कश्मीर घाटी में भाजपा का प्रभाव दिखेगा? इसके जवाब में वीर सर्राफ ने कहा जो मेरा कैम्पेन है, मैं यूथ को संबोधित करता हूं. हम कश्मीरियों में दिक्कत है कि हम अपने बच्चों को सच्चाई से दूर रखते हैं. कश्मीरी मुसलमान नहीं बताता अपने बच्चों को कि कश्मीरी पंडित घाटी में क्यूं नहीं हैं और कश्मीरी पंडित अपने बच्चों को नहीं बताता कि जम्मू में घाटी के मुसलमान क्यों नहीं हैं. इसलिए मैं इन मुद्दों को एड्रेस करता हूं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर यहां मिलीटेंसी क्रिएट की और बेगुनाहों को मरवाया.
पढ़ा-लिखा कश्मीरी समझ रहा गड़बड़ी कहां है: वीर सर्राफ
वीर सर्राफ ने कहा कि मासूम कश्मीरियों के हाथों में बंदूकें दी गईं, पैसे देकर उनसे पत्थर फिंकवाए गए. आम कश्मीरी ने ये बातें अपने बच्चों को नहीं बताईं. मैं जब गया कश्मीर घाटी के ग्रामीण इलाकों में तो वहां बच्चों और युवाओं को इतिहास नहीं पता कि यहां मिलीटेंसी ने कैसे जन्म लिया. सबको लगता है कि कश्मीरी पंडित विलेन है. वे नए हैं इस दुनिया में. आप इस चुनाव के नतीजों से आश्चर्यचकित होंगी. युवाओं के अंदर एक जागरूकता आई है. वे पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की कुर्सी की लड़ाई को समझ गए हैं. पढ़ा-लिखा कश्मीरी समझ रहा है कि गड़बड़ी कहां है.
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सरकार ने एक माहौल बनाया, दूरियां मिटी हैं: संजय सर्राफ
जम्मू-कश्मीर में आए बदलाव के बारे में बात करते हुए संजय सर्राफ ने कहा- 'मैं बीजेपी का प्रवक्ता नहीं हूं न ही उससे जुड़ा हूं, लेकिन मैं यह मानता हूं कि मौजूदा सरकार के प्रयासों से यहां बदलाव आए हैं. आज जब कोई कश्मीरी मुसलमान यहां से दिल्ली जाता है, भले ही वह 5 स्टार या 7 स्टार होटल अफोर्ड कर सकता है, लेकिन वह अपने उसी पुराने पड़ोसी और साथी को कॉल करके पूछता है भाई तुम कहां हो और उसी के यहां रुकता है. वैसे ही जब कोई कश्मीरी पंडित दिल्ली से जम्मू-कश्मीर आता है, वह यहां अच्छे होटल में रुकने में सक्षम होता है, लेकिन वह अपने पुराने दोस्त या पड़ोसी को कॉल करता है और वह अपने पुराने मोहल्ले में जाकर उसके वहां रहता है. तो इसमें कोई शक नहीं है कि दूरियां खत्म हुई हैं. वर्तमान सरकार ने एक माहौल बना दिया है, जिसकी वजह से आज जुमे के दिन मस्जिद शरीफ में लोग नमाज अदा करते हैं और उन्हें डर नहीं होता कि बाहर जाने के बाद पथराव होगा और मैं अपने घर नहीं जा पाऊंगा. कोई बच्चा जब स्कूल से लौटता है तो उसे डर नहीं होता कि कोई पुलिस वाला पकड़ेगा या गोली आ जाएगी.'