बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण को लेकर बीजेपी ने दलित और महादलित वोटों को साधने की विशेष रणनीति तैयार की है. पार्टी का लक्ष्य है कि उत्तर प्रदेश से सटी सीमावर्ती सीटों पर इस वोट बैंक को एकजुट कर जीत सुनिश्चित की जाए. बिहार में अनुसूचित जाति और महादलित समुदाय मिलाकर लगभग 18% मतदाता हैं. यह वह निर्णायक वोट बैंक है जो 100 से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर सीधा असर डालता है.
बीजेपी की रणनीति मुख्य रूप से पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, भोजपुर, बक्सर और कैमूर जिलों की सीटों पर केंद्रित है. ये जिले उत्तर प्रदेश के देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, गाजीपुर, चंदौली, बलिया और सोनभद्र से सटे हैं. इनमें से 15 सीटों पर पहले चरण में मतदान हो चुका है, जबकि शेष 5 सीटों पर दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे.
महादलित और पासवान वोटों पर फोकस
बीजेपी का आकलन है कि बिहार के कुल मतदाताओं में करीब 13% महादलित और 5% पासवान/दुसाध समुदाय के मतदाता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के अलग लड़ने से यह वोट बैंक बिखर गया था, लेकिन इस बार एनडीए इसे एकजुट रखने पर जोर दे रहा है. बीजेपी की गणना के मुताबिक जीतनराम मांझी के कारण करीब ढाई प्रतिशत मुशहर वोट एनडीए के साथ रहेगा, जबकि चिराग पासवान की मौजूदगी से करीब 5 प्रतिशत पासवान वोट म्जबूती से एनडीए के पाले में बने रहेंगे.
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बीएसपी पर भी टिकी नजर...
बीजेपी की नजर अब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) पर भी है. मायावती की पार्टी ने इस बार सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की थी, लेकिन नामांकन रद्द होने के बाद अब लगभग 190 उम्मीदवार ही मैदान में हैं. मायावती ने कैमूर जिले के भभुआ में चुनावी सभा कर रविदास समाज को साधने की कोशिश की थी. बीजेपी का मानना है कि बीएसपी को करीब 5 प्रतिशत रविदास समुदाय से जुड़े वोट मिल सकते हैं. पिछले चुनाव में बीएसपी ने 78 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 2.37% वोट हासिल किए थे. चैनपुर सीट पर उसने जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में उसका विधायक जेडीयू में शामिल हो गया था.
पश्चिम बिहार के कैमूर, रोहतास, आरा, बक्सर जैसे इलाकों में बीएसपी की पकड़ मजबूत मानी जाती है. ऐसे में इस बार बीएसपी का अकेले मैदान में उतरना एनडीए को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचा सकता है.
एनडीए का उम्मीदवार समीकरण
दलित वोट बैंक को मजबूती देने के लिए एनडीए ने अनुसूचित जाति वर्ग से कुल 39 उम्मीदवार उतारे हैं. टिकट वितरण में दलित और महादलित समुदायों के अंदरूनी जातीय संतुलन का भी ध्यान रखा गया है. रविदास, मुशहर, पासी, भुइया, धोबी, डोम, नट, भोगटा और कंजर जैसी जातियों को टिकट बंटवारे में प्राथमिकता दी गई है. बीजेपी का मकसद साफ है कि दलित और महादलित वोटों के बिखराव को रोककर उन्हें एकजुट कर एनडीए के पक्ष में मजबूती से लामबंद करना है.