सदियों पहले जन्म लेने वाली लिबरल आर्ट्स को शुरू में ऐसे सब्जेक्ट्स का मिश्रण माना जाता था जो किसी भी इंसान को 'नॉलेजेबल' बनाने का काम करते हैं. लिबरल एजुकेशन सबसे पहले ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में शुरू हुई थी. इसका उद्देश्य कोर्सेज से जुड़ी सभी तरह की सीमाओं को खत्म करना था.
एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन कॉलेज एंड यूनिवर्सिटीज के मुताबिक लिबरल एजुकेशन की परिभाषा इस तरह है, 'एजुकेशन की ऐसी फिलॉसफी जो किसी व्यक्ति को नॉलेज और ट्रांसफरेबल स्किल और वैल्यूज, एथिक्स और सिविक मैनेजमेंट की मजबूत समझ से लैस करती है. इसकी खासियत अहम मुद्दों का चुनौतीपूर्ण तरीके से सामना करना है और यह किसी खास कोर्स या स्टडी से इतर स्टडी की अलग राह है.'
लिबरल एजुकेशन से स्टूडेंट विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ पाते हैं और इससे वे व्यापक द़ृष्टिकोण से लैस हो सकते हैं. भारत में जहां एक सब्जेक्ट में डिग्री लेना पॉपुलर है, वहां लिबरल एजुकेशन अब धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही है.
अकसर ऐसा तर्क दिया जाता है कि विभिन्न सब्जेक्ट्स को थोड़ा-थोड़ा जानने से बेहतर है कि एक सब्जेक्ट को गहराई से समझा जा सकें. लेकिन लिबरल एजुकेशन का मतलब यह नहीं है कि अन्य डिग्री कोर्सेज के मुकाबले स्टडी कम मेहनत वाली या कम केंद्रित होती है. अंतर बस इतना है कि इसमें ऐसे वैल्यू एडिशन की पहचान की जाती है जो विभिन्न विषयों को एकसाथ जोड़कर हासिल किया जा सकता है.
भारत में लिबरल एजुकेशन
लिबरल आर्टस को लेकर भारत में अकसर कंफ्यूजन रहता है. शाब्दिक अर्थों में लिबरल एजुकेशन के मायने एजुकेशन से 'आजादी' है और लिबरल आर्टस को सोशल साइंसेज और ह्यूमैनिटीज की स्टडी के रूप में देखा जाता है. लेकिन, लिबरल एजुकेशन का कॉन्सेप्ट हमारी विरासत का एक हिस्सा रहा है. सदियों पहले देशभर में इसी सिद्धांत के आधार पर गुरुकुलों की स्थापना की गई थी.
आज इंटरनेशनल बैकलॉरिएट और आइजीसीएसई जैसे इंटरनेशनल बोर्ड के लोकप्रिय होने के साथ ही लिबरल एजुकेशन फिर से लौट रही है और कॉलेज भी मल्टी-डिसिप्लिनरी स्टडीज को बढ़ावा देने के लिए खुद को बदल रहे हैं. शिक्षा के इस नए स्टाइल से बढ़ता परिचय भारत में लिबरल एजुकेशन और लिबरल आर्टस कॉलेजों की मौजूदगी को मजबूत बनाने की दिशा में पहला कदम है.
कोर्स का विवरण:
ज्यादातर लिबरल एजुकेशन कोर्सेज चार साल के लिए तैयार किए गए होते हैं. पहले दो साल फाउंडेशन ईयर्स होते हैं और अगले दो साल में स्टूडेंट के चयन के मुताबिक माइनर सब्जेक्ट्स के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. इस तरह स्टूडेंट्स को कोर्स का व्यापक अनुभव मिलता है. उन्हें इस बात का मौका मिलता है कि वे अपनी दिलचस्पी का पता लगा सकें और इस बात का मौका मिलता है कि वे अपनी दिलचस्पी का पता लगा सकें और इस बात की नॉलेज के फायदे भी उठा सकते हैं कि विभिन्न डिसिप्लिन को एक-दूसरे से कैसे जोड़ा जाए.
लिब्रल आर्ट्स का स्कोप
एक लिब्रल आर्ट्स के स्टूडेंट के पास बहुत सारे स्कोप हैं. इस कोर्स को करने के बाद स्टूडेंट बहुत सारे जॉब पा सकता सकते हैं. इनमें प्रोफेसर, लेक्चरर, एक्टिविटीज असिस्टेंट, एक्टिविटीज डायरेक्टर, एडमिनिस्ट्रेटर, केस मैनेजर, चर्च पैस्टर, कम्यूनिटी एडवोकेट, पब्लिक वेलफेयर सोशल वर्कर और मीडिया इंस्ट्रक्टर हैं.
कौन कर सकता है यह कोर्स
12वीं पास स्टूडेंट इस कोर्स को करने के लिए योग्य हैं. इसके अलावा लिब्रल आर्ट्स में ग्रेजुएट स्टूडेंट्स देश-विदेश के कॉलेज से इसमें पीजी कोर्स कर सकते हैं.
भारत में कहां कर सकते हैं इसकी पढ़ाई
1. सिम्बायोसिस स्कूल ऑफ लिब्रल आर्ट्स
2. जिंदल स्कूल ऑफ लिब्रल आर्टस एंड ह्यूमैनिटीज
3. एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी
4. पंडित दीनदयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी
5. फाउंडेशन फॉर लिब्रल एंड मैनेजमेंट एजुकेशन
6. आईआईएम इंदौर
7. ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी
8. अशोका यूनिवर्सिटी
विदेश में कहां कर सकते हैं इसकी पढ़ाई
1. विलियम्स कॉलेज, मैसाचुसैट्स
2. वेलेस्ली कॉलेज, मैसाचुसैट्स
3. एमहर्स्ट कॉलेज, मैसाचुसैट्स
4. कारलेटन कॉलेज, मिनेसोटा
5. हेवरफोर्ड कॉलेज, पेनसिलवेनिया
6. स्वार्दमोर कॉलेज, फिलाडेल्फिया
7. पोमोना कॉलेज, कैलिफोर्निया
8. मिडलबरी कॉलेज, वरमोंट
9. बोडोइन कॉलेज, मेन
10. क्लेयरमोंट मैकेना कॉलेज, कैलिफोर्निया.