एक व्यंग्य था, क्योंकि महज उससे एक साल पहले वे प्रथम श्रेणी क्रिकेट में तीन तिहरे शतक लगाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज बने थे और दरअसल यह उपलब्धि हासिल करके वे डॉन ब्रैडमैन, ब्रायन लारा, ग्राहम हिक और माइक हसी जैसे दिग्गजों की कतार में शामिल हो गए थे.
अब 26 वर्ष के हो चुके जडेजा ने ऐसे मजाक और अपमान को झटककर परे किया क्योंकि वे उन्हीं से लड़ते और जगह बनाते बड़े हुए थे. सौराष्ट्र इलाके के जामनगर में सरकारी सिविल अस्पताल में नर्स उनकी बड़ी बहन नयना जडेजा बताती हैं, ''जब वह तीसरी क्लास में था तो गलियों में क्रिकेट खेलने के बाद अक्सर रोते हुए घर लौटता था. ''
बड़े बच्चे हमेशा उससे फील्डिंग कराते थे, गेंदबाजी कराते थे लेकिन कभी उसे बल्लेबाजी करने का मौका नहीं देते थे. नयना ने बताया, ''वह इससे खासा अपमानित महसूस करता था और आंखों में आंसू भरे हुए घर लौटा करता था. इससे हम सबको भी खासी तकलीफ होती थी और एक दिन हमारे पिता अपने इकलौते बेटे के इस हर शाम के रोने से खासे परेशान हो गए. ''
रवींद्र के पिता प्राइवेट सुरक्षा एजेंसी के लिए वॉचमैन का काम करते थे. वे उसे सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के महेंद्र सिंह चौहान के क्रिकेट कोचिंग कैंप में लेकर गए. कोच ने उनके पिता से कहा कि वे रवींद्र का नाम लिखने से पहले उसे परखेंगे. पहले दिन उन्होंने उसे गेंदबाजी करने को, फिर फील्डिंग करने और अंत में बल्लेबाजी करने को कहा. अंत में उन्होंने पिता से कहा कि रवींद्र को ट्रेनिंग के लिए भेज दें.
एक बार वहां जगह बनाने के बाद, रवींद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे सवेरे 7 बजे स्कूल जाते थे और कभी शाम 7 बजे से पहले नहीं लौटते थे. स्कूल तो दोपहर 12.30 बजे खत्म हो जाता था लेकिन उसके बाद वे क्रिकेट मैदान की तरफ निकल जाते थे.
उसके बाद रवींद्र की ट्रेनिंग में सîलियत को ध्यान में रखते हुए उनके पिता ने एकेडमी के नजदीक ही घर किराए पर ले लिया. नयना बताती हैं, ''हमने रवींद्र के लिए कभी एक साइकिल तक नहीं खरीदी, वह रोज पैदल स्कूल जाता और वहां से क्रिकेट ग्राउंड लेकिन कभी उसने इसके लिए कुछ नहीं कहा. वह बड़ा शांत था और कभी परिवार से कुछ नहीं मांगता था. वह हर चीज को समभाव से लेता था. ''
रवींद्र अनिरुद्ध सिंह और लता जडेजा की संतानों में सबसे छोटे हैं. उनकी दो बड़ी बहनें हैं. नयना नर्सिंग के साथ राजकोट से बीएससी भी कर रही हैं. उनकी दूसरी बहन पद्मिनी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही हैं. अभी बेटे ने सफलता के पायदान चढऩा शुरू भी नहीं किया था, उसी दौरान 2005 में उनकी मम्मी का एक हादसे में निधन हो गया. लेकिन यही वह साल भी था जब वे 16 साल की उम्र में भारत की अंडर-19 टीम के लिए खेले.
जडेजा ने अपने प्रथम श्रेणी करियर की शुरुआत 2006-07 में पश्चिमी क्षेत्र के लिए दिलीप ट्रॉफी से की थी. रणजी ट्रॉफी में वे सौराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्हें टीम के उनके साथी खिलाड़ी प्यार से 'सर' बुलाते हैं और यह नाम उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का दिया हुआ है. 2012 में आइपीएल की खिलाडिय़ों की नीलामी में उन्हें चेन्नै सुपरकिंग्स ने 9.8 करोड़ रु. में खरीदा था, वे उस साल नीलामी के सबसे महंगे खिलाड़ी थे. आज वे करोड़ों में खेल रहे हैं. लेकिन एक ऐसा भी समय था जब उन्हें पूरा दिन सिर्फ 10 रु. के ऊपर गुजारना होता था. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर अपनी तकदीर बदल डाली.
जडेजा की फॉर्म को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा ही अपने आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब दिया है. फरवरी-मार्च 2013 की भारत में ऑस्ट्रेलिया के साथ खेली गई टेस्ट सीरीज उनके लिए काफी अहम थी. बेशक वे बल्ले से कमाल नहीं दिखा सके लेकिन उन्होंने अपनी गेंदबाजी के जरिए 24 खिलाडिय़ों को पैवेलियन पहुंचाया था.
इस सीरीज में भारत की 4-0 से जीत Þई थी. यही नहीं, 2013 की आइआइटी चैंपियंस ट्रॉफी में भी वे आखिरी मैच में अपना जलवा दिखा गए. उन्होंने 2 विकेट लिए और 33 रन बनाए, जिस वजह से भारत विजेता बना. उनका ऑलराउंड होना भारत के लिए फायदे का सौदा साबित होता है.
इंटरनेट पर उन्हें लेकर कप्तान धोनी जमकर जोक डालते हैं और साथी खिलाड़ी भी खूब मस्ती लेते हैं. जडेजा इस सब के बावजूद अपने खेल से ही प्यार करते हैं. अपने संघर्ष के जरिए आगे आने वाले जडेजा को घोड़ों से प्यार है और आज वे अपने उस शौक को बखूबी पूरा भी करते हैं. उन्होंने आइपीएल से शुरुआत की थी और राजस्थान रॉयल्स के उनके कप्तान शेन वॉर्न उन्हें रॉकस्टार के नाम से बुलाते थे. इसमें कोई शुबहा नहीं कि वे भारतीय क्रिकेट टीम के ही नहीं, पूरे देश के क्रिकेटप्रेमियों के रॉकस्टार बन चुके हैं.