अपने अलग अंदाज, शांति और अपूर्व शिक्षा पद्धति को लेकर शांतिनिकेतन की अपनी पहचान है. साल 1901 में बांग्ला के मशहूर कवि और विचारक रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसकी नींव रखी थी. उन्होंने सिर्फ 5 स्टूडेंट्स लेकर ये स्कूल खोला जो 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया. आज इसका नाम भी बदल गया है, आइए इसकी पूरी यात्रा को जानें.
आज शांति निकेतन का नाम विश्वभारती हैं, जहां लगभग 6000 छात्र पढ़ते हैं. ये जगह कोलकाता से 180 किमी उत्तर की ओर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है. कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. शायद इसीलिए ये जगह पूरी दुनिया में मशहूर हो गई. आज भी विश्व-भारती विश्वविद्यालय दुनिया में कई विश्वविद्यालयों से हर मायने में अलग और अनोखा है.
ये हैं विशेषताएं
- शांतिनिकेतन के आस-पास कई सारी जगहें हैं जो घूमी जा सकती हैं. रवीन्द्रनाथ के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 में 7 एकड़ जमीन पर एक
- आश्रम की स्थापना की थी. वहीं आज विश्वभारती है. इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुसार दुनियाभर की किताबें पढ़ाई जाती हैं.
- भारत की पुरानी आश्रम शिक्षा पद्धति लागू है, जिसके अनुसार पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ाई होती है. रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति का सानिध्य काफी पसंद था. उनका मानना था कि छात्रों को प्रकृति के सानिध्य में शिक्षा हासिल करनी चाहिए. अपने इसी सोच को ध्यान में रख कर उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी. जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां कलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही.
- शांतिनिकेतन का अर्थ होता है- शांति से भरा हुआ घर. इसके आस-पास की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है. देश-दुनिया के पर्यटक इस जगह को घूमने जाते रहते हैं. शांतिनिकेतन सिर्फ पढ़ाई ही नहीं अपनी कला अभिव्यक्ति के लिए भी मशहूर है. कलाप्रेमियों को भी शांतिनिकेतन बहुत पसंद है क्योंकि ये जगह डांस, म्यूजिक, ड्रामा जैसी सांस्कृतिक कलाओं का हब है. तरह-तरह के भारतीय त्योहार भी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं. हर वर्ष होली मनाने के लिए हजारों लोग शांतिनिकेतन जाते हैं.
अपने खाने की पहचान से भी है खास
- शांतिनिकेतन में मछली की डिश फिश करी का कोई जवाब नहीं है. बंगाली खानपान के शौकीन लोगों के लिए तो ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं है.
- यहां दीक्षांत समारोह में ग्रेजुएट होने वाले हर छात्र को सप्तपर्णी वृक्ष की पत्तियां दी जाती हैं.
- विश्वविद्यालय का नाम संस्कृत भाषा में है, जिसका अर्थ स्पष्ट है: सात पत्तों के गुच्छे होते हैं इसमे और फूल इन्हीं के बीच उगते हैं. पत्तियां एक गोल
- समूह में सात-सात के क्रम में लगी होती हैं और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है. बांग्ला भाषा में इसे छातिम कहते हैं. कविगुरु टैगोर ने गीतांजलि के कुछ अंश सप्तपर्णी वृक्ष के नीचे ही लिखे थे. गुरुदेव टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर सप्तपर्णी या छातिम के नीचे अक्सर ध्यान करते थे.