ज्ञान का गढ़ जेएनयू बीते कुछ समय से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोप तो कभी हिंसक प्रदर्शन-बवाल आदि को लेकर चर्चा में है. लेकिन ये इस कैंपस का इकलौता सच नहीं है. नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी से लेकर वर्तमान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सहित तमाम हस्तियां जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय कैंपस की देन हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासनिक सेवा, राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक हर क्षेत्र में यहां के पूर्व छात्रों का बोलबाला है. जेएनयू के बारे में ये तीन बातें आपके सोचने का पूरा नजरिया बदल देंगी. पढ़ें-
देश की टॉप यूनिवर्सिटी
ह्यूमैनिटी, सोशल साइंस, साइंस, इंटरनेशन स्टडीज जैसे विषयों में जेएनयू देश की सबसे टॉप यूनिवर्सिटी मानी जाती है. जेएनयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) ने जुलाई 2012 में किये गए सर्वे में भारत का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय माना है. एनआईआरएफ (National Institute Ranking Framework) में बीते साल 2019 में जेएनयू यूनिवर्सिटी श्रेणी में दूसरे नंबर पर था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना साल 1969 में हुई थी. इससे पहले जेएनयू अधिनियम 1966 (1966 का 53) को भारतीय संसद द्वारा 22 दिसम्बर 1966 में पास किया गया था.
स्कूल और सेंटर
जेएनयू में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड ऐस्थेटिक्स, बायो टेक्नोलॉजी, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंस सहित कुल 13 स्कूल हैं, वहीं सेंटर की बात करें तो इनकी संख्या सात है. ये है सेंटरों की लिस्ट
Centre for the Study of Law and Governance
Special Centre for Disaster Research
Special Centre for E-Learning
Special Centre for Molecular Medicine
Special Centre for Nanoscience
Special Centre for National Security Studies
Special Centre for the Study of North East India
ताकतवर स्टूडेंट यूनियन
जेएनयू की प्रगतिशील परंपरा और शैक्षिक माहौल के लिए यहां के छात्रसंघ को सालोंसाल से आदर्श माना जाता है. यहां के कई छात्र संघ सदस्यों ने आगे चलकर राजनीति और सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई है. जेएनयू से निकलने वाले प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, डी. पी. त्रिपाठी, आनंद कुमार, चंद्रशेखर प्रसाद आदि नाम प्रमुख हैं.
जेएनयू छात्र राजनीति पर शुरू से ही वामपंथी छात्र संगठनों ऑल इंडिया स्टडेंट्स एसोसिएशन(आइसा), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.एफ.आई.) आदि का वर्चस्व रहा है. वर्तमान में केन्द्रीय पैनल के चारों सदस्य अलग अलग वाम छात्र संगठन के हैं. यहां का जेएनयू शिक्षक संघ भी शुरू से बदलाव की राजनीति के साथ प्रभावी भूमिका में रहा है.
तीन साल पहले इसलिए चर्चा में आया
तीन साल पहले 9 फरबरी 2016 को जेएनयू की देश भर में अलग ही छवि बनकर उभरी. लोगों के बीच अचानक से ये चर्चा होने लगी कि जेएनयू में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां हो रही हैं. कैंपस में तथाकथित रूप से देश को तोड़ने वाले नारे लगने से जेएनयू की छवि को बड़ा धक्का लगा. हालांकि इस छवि को लेकर जेएनयू के पक्ष में भी देश भर के हजारों लोग आ गए.
क्या हुआ था उस दिन
9 फरवरी 2016 को 2001 भारतीय संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम का नाम कश्मीरी कवि आगा शाहिद अली के काव्य संग्रह 'द कंट्री विदाउट पोस्ट ऑफिस' था. ये काव्य संग्रह जम्मू कश्मीर के एक हिंसक समय पर आधारित है.
उस दौरान मीडिया ने दिखाया था कि कार्यक्रम के स्टूडेंट आर्गनाइजर्स ने कैंपस में विवादास्पद पोस्टर लगाए थे. इनमें लिखा था कि सभी 9 फरबरी, मंगलवार को साबरमती ढाबे में ब्राह्मणवादी विचारधारा के विरुद्ध, अफज़ल गुरु और मकबूल भट्ट की न्यायिक हत्या (आयोजकों के अनुसार) के खिलाफ, 'कश्मीरी लोगों के आत्मनिर्णय के लोकतांत्रिक अधिकार के लिए संघर्ष के समर्थन में' 'कवियों, कलाकारों, गायकों, लेखकों, विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के साथ सांस्कृतिक संध्या, और कला और फ़ोटो प्रदर्शनी' पर आमंत्रित हैं.
इस कार्यक्रम में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाए गए. इसके बाद कैंपस छात्र नजीब के लापता होने से लेकर फीस वृद्धि पर आंदोलन और अब हिंसक घटना को लेकर कैंपस चर्चा में है. बीते कभी दो माह से कैंपस में पढ़ाई-लिखाई का माहौल बिगड़ा हुआ है.