टीन एज यानी किशोरावस्था, वो उम्र जब बच्चे अपने बचपने से युवावस्था की ओर बढ़ रहे होते हैं. जीवनशैली और सोच से लेकर उनके शरीर में भी कई तरह के हार्मोनल बदलाव हो रहे होते हैं. इस उम्र में पढ़ाई, दोस्ती, परिवार सबका रोल चेंज हो रहा होता है. अक्सर ये देखने में आता है कि इस उम्र के बच्चों के अभिभावक बच्चों में गुस्से की प्रवृत्ति को समझ नहीं पाते. न ही उन्हें बच्चों के गुस्से को मैनेज करना ही ठीक से आता है. ऐसे में अक्सर बड़ों और बच्चों के बीच संवाद का स्तर घट जाता है. आइए विशेषज्ञ से समझते हैं कि कैसे टीनएज के गुस्से को समझें और क्या होता है इसे कंट्रोल करने का तरीका...
बाल मनोविज्ञान एक व्यापक विषय है जिसमें बच्चों में आने वाले मनोविकारों का अध्ययन किया गया है. किशोरों में होने वाले डिसरप्टिव बिहैवियर डिसआर्डर्स से लेकर अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टविटी डिसऑर्डर्स (ADHD, चिल्ड्रेन विद एंजाइटी डिसऑर्डर ऐसे विकार हैं जिससे किशोरों और बच्चों का एक बड़ा वर्ग प्रभावित है. ये वो विकार हैं जो बच्चों में क्रोध, चिड़चिड़ापन और आक्रामता के लिए जिम्मेदार है.
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ विधि पिलनिया कहती हैं कि इस उम्र में जो हार्मोनल चेंज होते हैं, उसे किशोर हो रहे बच्चे स्वीकार करने में झिझकते हैं. उन्हें घर के लोग इस उम्र में न बच्चों में गिन रहे होते हैं और न ही पूरी तरह युवा और समझदार व्यक्ति के तौर पर, ऐसे में उनके सामने अपने व्यक्तित्व की स्वीकारोक्ति को लेकर प्रतिक्रिया नाराजगी और चिड़चिड़ाहट की एक वजह बनता है.
डॉ विधि कहती हैं कि ये वो उम्र होती है जब लाइफ के माइल स्टोन सामने होते हैं. घर के लोग स्पोटर्स या पढ़ाई या किसी भी एक्टिविटी में बेस्ट प्रदर्शन की डिमांड करते हैं, जब बच्चा ये ये मेजर गोल नहीं कर पाता तो उनमें एंगर जन्म लेता है. इसके अलावा इस उम्र में बच्चे
सेल्फ इमेज को लेकर बहुत चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं, क्योंकि इसी उम्र में सबसे ज्यादा लैंगिक भेद सामने आता है. मसलन यदि वो किसी पर आकर्षित होते हैं और अपनी बात कह नहीं पाते तो चिड़चिड़ापन जन्म लेता है.
दोस्त बन जाते हैं खास
इस उम्र में बच्चों में पियर प्रेशर सबसे ज्यादा होता है. इस उम्र में बच्चों में एक अलग तरह का सामाजिक बदलाव नजर आता है. ये वो उम्र होती है जब कई बच्चों के लिए उनके दोस्त उनके टीचर और माता पिता से ज्यादा खास बन जाते हैं. बच्चे अपने टीचर और माता पिता से बहस कर देते हैं, वो बड़ों के सिखाने पर उनसे बहस भी करते हैं.
पेरेंटिंग भी है जिम्मेदार
आपने टीन एज तक आते आते बच्चे की पेरेंटिंग कैसी की है, उससे भी बच्चे का नेचर डिसाइड होता है. यदि पेरेंट्स बच्चों के साथ दोस्ताना संबंध रखते हैं तो बच्चों में एंगर मैनेज करना आसान होता है. इसके अलावा इस उम्र में बच्चों के दोस्त से लेकर वो सोशल मीडिया पर क्या देखते हैं. उनके आदर्श कैसे लोग हैं, वो किस तरह की फिल्में पसंद करते हैं, इन सब सवालों के जवाब भी बच्चे के माता पिता के लिए जानना जरूरी होता है.
कैसे होता है एंगर मैनेजमेंट
डॉ विधि कहती हैं कि यदि किसी टीन एज के माता पिता ये शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे का गुस्सा नियंत्रण से बाहर हो जाता है. वो घर पर या तो उदास रहता है या कभी कभी आउट बर्स्ट हो जाता है, वो इतना ज्यादा नाराज हो जाता है कि सामान की तोड़फोड़ करता है, या पेरेंट्स के साथ बहुत अभद्र व्यवहार करता है. ऐसे मामलों में हम अच्छे रिजल्ट के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया अपनाते हैं. इसमें विशेष रूप से पेरेंट्स मैनेजमेंट ट्रेनिंग (पीएमटी) और कॉग्निटिव बिहैवियर थेरेपी (सीबीटी) शामिल करते हैं. क्योंकि साल 2004 से 2009 के बीच हुए कई अध्ययनों में देखा गया है कि ऐसे मामलों में ये थेरेपीज काफी कारगर साबित हुई हैं.
टीन एज बच्चे को आता है गुस्सा तो अपनाएं ये टिप्स