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MPPSC SSE Exam: अभी नहीं होगी MPPSC SSE की मुख्य परीक्षा, हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए दी अगली तारीख

MPPSC SSE एग्जाम को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान जब पीएससी की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने विरोधाभासी दलीलें दीं, तो कोर्ट ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए आयोग को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई के समय वे अधिकारी मौजूद रहें जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, ताकि स्पष्ट रूप से सभी तथ्यों को सामने रखा जा सके.

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MP High Court Jabalpur
MP High Court Jabalpur

MPPSC मुख्य परीक्षा 2025 को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में फिर सुनवाई हुई है. कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि अगली सुनवाई में वे अधिकारी कोर्ट में प्रस्तुत होंगे जो आरक्षित वर्ग के मैरिटोरियस छात्रों को अनारक्षित वर्ग में ना चुनने के लिए जिम्मेदार हैं. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले पर राज्य सरकार से भी अपना पक्ष रखने को कहा है. कोर्ट का आदेश है कि अगर अगले 2 हफ्तों में जानकारी सामने नहीं आती तो सरकार पर 15 हजार का जुर्माना लगाया जाएगा. 

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6 मई को होगी अगली सुनवाई

कोर्ट ने यह भी कहा कि परीक्षा से जुड़े जितने भी डॉक्यूमेंट्स है उन्हें पब्लिक करना चाहिए क्योंकि उस सील बाद लिफाफे में कुछ भी गोपनीय नहीं है.इस मामले को लेकर अब अगली सुनवाई 6 मई को होनी है.  सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एमपीपीएससी 2025 परीक्षा पर लगाई रोक बरकरार रखी है.

कैटगरी वाइज मार्क्स जारी ना करने का आरोप

राजधानी भोपाल निवासी सुनीत यादव समेत अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पक्ष रखा . अधिवक्ताओं ने कोर्ट में तर्क दिया कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 5 मार्च 2025 को राज्य सेवा परीक्षा के लिए प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित किया था, जो कुल 158 पदों की भर्ती के लिए आयोजित की गई थी. हालांकि, इस बार आयोग ने पूर्व परंपरा से हटते हुए वर्गवार (कैटेगरी वाइज) कट-ऑफ मार्क्स जारी नहीं किए, जबकि पहले की सभी परीक्षाओं में यह जानकारी सार्वजनिक रूप से जारी की जाती रही है. 

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याचिका में यह भी कहा गया कि आयोग ने जानबूझकर कट-ऑफ मार्क्स न जारी कर पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. आरोप है कि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व में दिए गए स्पष्ट निर्णयों को दरकिनार करते हुए आरक्षित वर्ग के योग्य व मेरिट में आने वाले उम्मीदवारों को अनारक्षित पदों के लिए मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया.  याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि आयोग ने सभी अनारक्षित पदों को केवल सामान्य वर्ग (जनरल कैटेगरी) के लिए आरक्षित मानकर परिणाम घोषित कर दिया, जो न केवल असंवैधानिक है बल्कि प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों के साथ अन्याय भी है. 

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