
बॉलीवुड के सबसे चर्चित कपल दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह अब माता-पिता बन गए हैं. दीपिका ने पिछले दिनों एक बच्ची को जन्म दिया. बेटी के जन्म से पहले दीपिका के प्रेग्नेंसी फोटोशूट की तस्वीरें वायरल रहीं जिनमें अभिनेत्री ने अपने बेबी बंप को फ्लॉन्ट किया. दीपिका से पहले तमाम अभिनेत्रियां ऐसा फोटोशूट कराती रही हैं. बॉलीवुड से शुरू हुआ ये चलन अब आम महिलाओं के बीच भी चर्चा का विषय है. एक समय जहां गर्भवती स्त्रियां प्रसव तक अपना पेट छुपाए रखने को मजबूर थीं वहां बदलाव दिख रहा है.
इस बदलाव को परखने-समझने के लिए हमने समाज के अलग-अलग वर्गों की महिलाओं से उनका नजरिया जाना. बातचीत में सामने आया कि बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों की छात्राओं से ज्यादा गरीब वर्ग की महिलाएं इस नए बदलाव को सराहती हैं. भले ही वो कम कपड़ों में फोटोशूट को सही न मानें लेकिन शहरी लाइफ में गर्भकाल में सजने-संवरने और प्रेग्नेंसी के दौरान पति-ससुराल के सपोर्टिव रवैये से वे बेहद खुश नजर आती हैं.
‘अब भी मजबूरी है पेट छिपाए रखना’
ग्रामीण अंचल में प्रेग्नेंसी हमेशा से महिलाओं की अनकही जिम्मेदारी रही. इनके गर्भवती होने की खबर परिवार से कभी बाहर नहीं गई, न इनका डाइट चार्ट बदला और न काम को लेकर कोई रवायत बदली. ये बिना मेटरनिटी लीव के बस काम करती रहीं. अगर घर में बड़ी-बूढ़ी औरतें होतीं तो इन्हें कुछ दिन भले आराम मिल जाता. इसके बाद फिर वही जिम्मेदारियां. प्रेग्नेंसी के दौर में यह जरूर होता था कि वो जितने दिन गुंजाइश हो, अपना पेट छिपाती थीं. इसके पीछे जादू-टोना, नजर लगना जैसी सोच रहती थी.

यूपी के एटा जिले की रहने वाली लता 30 साल की शादीशुदा जीवन में चार बच्चों की मां बन चुकी हैं. लता कहती हैं कि हमने प्रेग्नेंसी में फोटो तो दूर की बात, कभी एक्स रे-अल्ट्रा साउंड तक नहीं कराया. न कभी कोई दवा खाई और न कभी अस्पताल का मुंह देखा. चारों बच्चे घर में हो गए. सात महीने तक तो कोई जान ही नहीं पाता था कि मैं पेट से हूं. अब देख रहे हैं कि लड़कियां फोटो करा रही हैं और वायरल हो रही हैं.
'फोटो ठीक, लेकिन उसे सबको दिखाना नहीं चाहिए'
पेशे से कीर्तन मंडली संचालक पांच बच्चों की मां शिवानी कहती हैं कि -अरे हमने तो बहुत कामकाज करते हुए बच्चे पैदा किए. आज के समय में देखते हैं कि कैसे प्रेग्नेंट होने पर सब ख्याल रखते हैं. हमारे टाइम में ये शुरू हो गया होता तो हम एक फोटो तो जरूर कराते. ये तो बहुत अच्छी चीज है. बस, इसका ज्यादा प्रचार प्रसार न हो क्योंकि कई बार हाय लग जाती है. फोटो कराके घर में रखो वायरल न करो. हरदोई की रहने वाली लता कहती हैं कि हमें तो बड़ी शर्म सी लगती थी जब गर्भवती थे तब लेकिन आजकल देख रहे हैं कि महिलाएं खुले घूम रही हैं पार्क में, मॉल्स में.

कानपुर की रहने वाली ममता कहती हैं कि बच्चे होने के दौरान औरतें एक कमरे में पड़ी रहें, कोई काम न करे. इससे अच्छा है कि वो फोटो कराएं, फैशन करें. होम मेकर भावना कहती हैं कि आजकल अगर महिलाएं प्रसव काल को खुलकर जी रही हैं. फोटो शूट करा रही हैं या बेबी बंप को फ्लांट कर रही हैं, आम महिलाएं भी प्रेग्नेंसी के दौर की फोटो सोशल मीडिया पर डाल पा रही हैं तो इसके पीछे उनके पार्टनर्स का बड़ा रोल है. पहले तो पति प्रेग्नेंसी के दौर में औरतों से हाल तक बामुश्किल पूछते थे. आज पत्नी के साथ पति खुद भी बेबी शावर, प्रेग्नेंसी फोटोशूट जैसे इवेंट्स का हिस्सा बनते हैं.

'लंबा फोटोशूट बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है'
दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट खुशी प्रजापति साफतौर पर कहती हैं कि हमारी संस्कृति में तो इसे छुपाकर चलते हैं. बॉलीवुड में प्रचलन है कि वो एक्सपोज करते हैं. मेरे कंफर्ट जोन से तो ये बाहर होगा कि 8 या 9 महीने में एक्सपोज कर पाऊं. सबसे बड़ी बात यह है कि फोटोशूट का लंबा समय, कैमरे की लाइट्स वगैरह गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
लखनऊ यूनिवर्सिटी की छात्रा अनुकृति बाजपेई कहती हैं कि लोग अपनी यादों को संजोने के लिए प्रेग्नेंसी फोटो शूट कराते हैं. मां बनने का अहसास बहुत खास होता है, लेकिन उसका सोशल मीडिया में शो ऑफ करना अच्छी चीज नहीं है. मेरी समझ से फोटोज तो मैं भी कराऊंगी, लेकिन वो हमारी पर्सनल मेमरी होगी. सेलिब्रिटीज के फैन्स ही उनकी फैमिली होते हैं तो उन्हें ये सब शेयर करना बनता है, लेकिन हमारे मामलों में ये जरूरी नहीं है.

लखनऊ की शिप्रा मिश्रा एम कॉम की छात्रा हैं. वो कहती हैं कि मुझे तो बस ये डर रहता है कि कहीं फोटोशूट के दौरान कोई चोट वगैरह न लग जाए. इसमें बुराई तो कोई नहीं है, लेकिन अभी भी यूपी-बिहार जैसे हिंदीभाषी क्षेत्रों में परिवार इतने मॉडर्न नहीं हुए हैं कि बहुओं को बिकनी में शूट करने की इजाजत दें.
'फोटो खिंचाया लेकिन परिवार को भी नहीं दिखाया'
दिल्ली की रहने वाली अर्जमंद शाहीन वर्तमान में दुबई में रहती हैं. वो कहती हैं कि वैसे मैं लोगों को जज नहीं करूंगी, लेकिन मैं अपने लिए नहीं कराना चाहती. मैंने अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान की फोटोज इंडिया में अपने परिवार को भी नहीं भेजी. मेरे हसबैंड ने हॉस्पिटल जाने से पहले एक ही फोटो ली थी. अगर कोई इसमें कंफर्टेबल है तो ठीक है लेकिन, ये नया कल्चर मुझे ठीक नहीं लगता. कभी कभी लगता है कि बच्चे देखेंगे तो क्या सोचेंगे. आप बिकनी में फोटो शूट करा रही हैं तो गलत है. आज लोग मदरहुड को अहमियत दे रहे हैं तो ये अच्छा है. ऐसा नहीं है कि इस दौरान आप तैयार नहीं हो सकते, अच्छे कपड़े नहीं पहन सकते. वो दौर जा चुका है जब बड़ा सा दुपट्टा ओढ़कर प्रेग्नेंसी को छुपाकर रखते थे. अब इस चीज से सोसाइटी बाहर निकल रही हैं.

डीयू से बीए प्रोग्राम की छात्रा साक्षी मिश्रा कहती हैं कि इस सबको पर्सनली मैं सपोर्ट नहीं करती. मुझे लगता है कि इसमें मेडिकल और स्प्रिचुअल कॉन्सीक्वेंसेस होते हैं. ये देखना होगा कि आप एक्सपोजर वाले कपड़े पहन रहे हैं, फोटो शूट के दौरान स्पाईन की प्लेसमेंट कम या ज्यादा होने पर यूट्रस और बच्चे पर कितना असर पड़ रहा है. ब्लड सर्कुलेशन पर क्या असर पड़ रहा है, हील्स पहनना, सन एक्सपोजर या पोज बनाना कुर्सी पर बैठकर ये सब इस दौरान बहुत सेफ नहीं होता.
'फोटो पर उलटे कमेंट निगेटिविटी देंगे'
पुराने जमाने में कहते थे कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां जितना शांत रहेगी उसका बच्चे पर भी असर पड़ेगा. मैंने देखा है कि आजकल जो बच्चे पैदा हो रहे हैं वो बहुत नाजुक हैं. अगर स्प्रिचुअल चेंज की बात करें तो दादा दादी कहते थे कि नजर लग जाती है, तो अब आप फोटो शूट की फोटोज के नीचे कमेंट देख लीजिए. कितनी उल्टी सीधी बातें मां पढ़ती है तो बच्चे को नेगेटिव चार्ज मिलता है.
साक्षी कहती हैं कि ये बहुत इंटीमेट चीजें हैं. ये सुख खुद फील कर सकती हैं. कंपनियां प्रेग्नेंसी के लिए मॉडर्न ड्रेसेज बना रही हैं, लेकिन वो काफी महंगी होती हैं. अब मिडिल या लोअर क्लास की महिलाएं हो या शहरी महिलाएं, सब बॉलीवुड की हिरोइन को कॉपी करती हैं. वो उनकी तरह दिखने के लिए किस फैब्रिक से बने कपड़े पहन रही हैं, ये उन्हें पता नहीं है. हिरोइंस या सोशल मीडिया सेलिब्रिटीज जब ये स्टंट करती हैं, तो उनकी बड़ी टीम होती है. डिजाइनर्स, पीआर से लेकर पूरा कैमरा क्रू उनका फोटो शूट करता है. उनको कॉपी करना ठीक नहीं है.

'धीरे-धीरे समाज कर रहा है स्वीकार'
मिरांडा हाउस में मैथ ऑनर्स की छात्रा प्रेरणा ठाकुर कहती हैं कि मुझे लगता है कि महिला टू महिला यह डिफर करता है. प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ लोग इतने ज्यादा तनाव में आ जाते हैं कि वो फोटोशूट या मॉडर्न दिखने को लेकर सहज नहीं हो पाते. लेकिन जो लोग अपनी मर्जी से फोटो शूट करा रही हैं, तो ये बहुत अच्छी चीज है. ऐसे लोग इन फोटोज को अपनी मेमरी के तौर पर रख रहे हैं. ये अपमान वाली बात नहीं बल्कि उत्सव है. सोचिए न, फोटो हम कब खींचते हैं. जब हम उत्सव मना रहे होते हैं.
प्रेरणा का कहना है कि अब धीरे-धीरे समाज ये एक्सेप्ट कर रहा है. लोग समझने लगे हैं कि मां बनने की इतनी पेनफुल यात्रा में उसे ऐसे सेलिब्रेट करने से मां को खुशी ही होगी. मां की मनोस्थिति का असर बच्चे पर भी पड़ता है, उसको अच्छा फील कराना बहुत जरूरी होता है. वैसे भी प्रेग्नेंसी दुनिया का एक वरदान है जब औरत अपनी जान को दांव पर लगाकर एक दूसरे जीव को धरती पर ला रही होती हैं. इसलिए बेबी बंप को देखकर अश्लीलता या कोई गंदी सोच रखने वाले को मानसिकता बदलनी चाहिए. औरतों को देवी की तरह ट्रीटमेंट मिलना चाहिए.
क्या कहती हैं विशेषज्ञ डॉक्टर
लेडी हार्डिंग अस्पताल दिल्ली की वरिष्ठ स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मंजू पुरी कहती हैं कि आज के दौर में बहुत से बदलाव हुए हैं, लेकिन ये सुपरफिशियल है. ये मार्केट की देन है. असल बदलाव अभी आना बाकी है. यह बदलाव तब आएगा जब पुरुष फोटो शूट के साथ-साथ बच्चे की परवरिश में स्त्री के बराबर नजर आएंगे.
डॉक्टर पुरी कहती हैं कि मैं तीस साल से इस पेशे में हूं, मैंने ये बदलाव 90 के दौर से देखा है. जब महिलाओं में पढ़ाई करके करियर बनाने का चलन बढ़ा था. वो औरतें मां बनने की जिम्मेदारी निभाते हुए काम करती थीं. साथ ही मेडिकली बहुत अवेयर थीं. अपने पतियों और फिर अपनी संतानों को संवेदनशील बनाने का क्रेडिट भी इन्हीं मांओं पर जाता है. जिनके बच्चे आज की पीढ़ी के साथ कंधे से कंधा मिलाने की कोशिश कर रहे हैं. अभी भी कई बदलावों की जरूरत है.