अनुसंधान के क्षेत्र में आईआईटी भिलाई की टीम ने Controlled Insulin delivery system प्रणाली विकसित कर ली है. ये प्रणाली हाई ब्लड शुगर को घटाने के लिए उसी के अनुरूप जरूरी मात्रा में इंसुलिन रिलीज करती है. यह प्रणाली इंसुलिन पर निर्भर डाइबिटीज के उपचार में मददगार होगी. साथ ही ये इंसुलिन मैनेजमेंट का नया सुरक्षित तरीका देती है.
आईआईटी भिलाई के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक कई संस्थाओं की टीम, जिसमें शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, दिल्ली, एनसीआर और श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक शामिल हैं. इन वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक एक नया इंसुलिन-डिलीवरी प्लेटफॉर्म तैयार किया है.
क्यों है खास
यह हाइड्रोजेल-आधारित दवा वितरण प्रणाली हाई ब्लड शुगर के लेवल के बचाव में नियंत्रित तरीके से इंसुलिन जारी करने की क्षमता रखती है. ये हेल्दी पेनक्रियाज सेल्स की प्राकृतिक इंसुलिन स्राव प्रक्रिया की एक तरह से नकल करती है. आईआईटी भिलाई के केमेस्ट्रीट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुचेतन पाल के नेतृत्व में किया गया अध्ययन इंसुलिन पर निर्भर मधुमेह रोगियों को इंसुलिन की आपूर्ति करने की एक सुरक्षित और कुशल विधि का वादा करता है.
वर्तमान इंसुलिन इंजेक्शन विधियों की सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर डॉ. सुचेतन पाल ने कहा कि वर्तमान में इंसुलिन देने की इंजेक्शन विधियों की कुछ सीमाएं हैं. वे शरीर की प्राकृतिक प्रणाली की तरह काम नहीं करते हैं और कई बार घातक हो सकते हैं. वर्तमान इंसुलिन इंजेक्शन के तरीके भी ब्लड शुगर के स्तर को खतरनाक रूप से कम कर सकते हैं, यह हाइपोग्लैसिमिया की स्थिति होती हे. इसके मामले में रोगियों को हमेशा के लिए इंसुलिन पर निर्भर रहने की भी मजबूरी है.
क्या है हाइड्रोजेल, जिस पर हुआ अध्ययन
इंसुलिन डिलीवरी के बेहतर तरीकों में आईआईटी भिलाई के शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजेल के अभिनव अनुप्रयोग का पता लगाया. हाइड्रोजेल बायोकंपैटिबल पॉलिमर हैं जिनमें पानी की मात्रा अधिक होती है और कार्डियोलॉजी, ऑन्कोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, घाव भरने और दर्द प्रबंधन सहित विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में नियंत्रित दवा रिलीज के लिए इसका अध्ययन किया जा रहा है.
शोधकर्ताओं ने इंसुलिन को विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए हाइड्रोजेल में समाहित किया है जिसे सीधे इंसुलिन इंजेक्शन के बजाय इस्तेमाल किया जा सकता है.
चूहे के मॉडल में हुए परीक्षण
ग्लूकोज द्वारा शुरू की गई शरीर की प्राकृतिक इंसुलिन स्राव प्रक्रिया से प्रेरणा लेते हुए, टीम ने हाइड्रोजेल को इस तरह डिजाइन किया कि ग्लूकोज का स्तर ऊंचा होने पर वे इंसुलिन जारी करेंगे. यह पॉलीविनाइल अल्कोहल को चिटोसन के छोटे कणों के साथ क्रॉसलिंक करके हासिल किया गया था, जो शेलफिश और केकड़ों के बाहरी कंकाल से प्राप्त एक घटक है. क्रॉसलिंकर, फॉर्माइलफेनिलबोरोनिक एसिड (एफपीबीए), ग्लूकोज के स्तर पर प्रतिक्रिया करता है और हाइड्रोजेल के अंदर मौजूद इंसुलिन को रिलीज करता है.
छोटे-अणु दवा एनालॉग्स और मैक्रोमोलेक्यूलर इंसुलिन से जुड़े व्यापक प्रयोगों के माध्यम से, टीम ने प्रदर्शित किया कि हाइड्रोजेल मुख्य रूप से टाइप वन हाइपरग्लाइसेमिक (उच्च ग्लूकोज) स्थितियों के तहत इंसुलिन जारी करते हैं. चूहे के मॉडल में परीक्षणों के माध्यम से इंसुलिन-लोडेड हाइड्रोजेल की सुरक्षा और मधुमेह विरोधी प्रभावकारिता की पुष्टि की गई.
माइक्रो नीडिल्स या ओरल हो सकते हैं यूज
डॉ. पाल ने कहा कि ये मॉड्यूलर हाइड्रोजेल माइक्रो नीडिल्स या मौखिक फॉर्मूलेशन में तैयार हो सकते हैं. अकबर अली, सरोज, सुनीता साहा, संजय कुमार गुप्ता, डॉ तातिनी रक्षित और डॉ सुचेतन पाल के एक ज्वाइंट पेपर में, इस अभूतपूर्व शोध के निष्कर्ष अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल, एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित किए गए हैं.
यह स्टडी भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
यह अध्ययन और इसकी खोजें भारत के लिए महत्व रखती हैं, एक ऐसा देश जिसे अक्सर मधुमेह का वैश्विक केंद्र कहा जाता है. द लांसेट में छपे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के हालिया अध्ययन से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं जिसके अनुसार लगभग 101 मिलियन भारतीय वर्तमान में मधुमेह से जूझ रहे हैं.