ओडिशा के भद्रक जिले की एक 57 वर्षीय आशा कार्यकर्ता ने बार-बार प्रयास करने के बाद इस साल वार्षिक मैट्रिक परीक्षा पास करके यह साबित कर दिया है कि शिक्षा की कोई आयु सीमा नहीं होती है. भद्रक के भंडारीपोखरी ब्लाक के कांटी गांव की रहने वाली स्वर्णलता पति सातवीं कक्षा तक पढ़ी थी और शुरू में गांव के स्कूल में रसोइया का काम करती थी.
फिर 27 साल की उम्र में अपने पति को खोने के बाद एक अकेली मां के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही थीं. अपनी स्कूली शिक्षा से वंचित होने के बावजूद, उन्होंने अपने बच्चों को पोस्ट-ग्रेजुएट स्तर तक शिक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत की. फिर साल 2005 में स्वर्णलता को गांव में आशाकर्मी के तौर पर नियुक्त किया गया. अपनी मेहनत और लगन के कारण उन्हें जिला स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं. लेकिन तभी एक झटका उन्हें लगा जब उनसे कहा गया कि आशा की अनिवार्य न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के रूप में मैट्रिक कर दी गई है.
यह जानकार उन्होंने आशाकर्मी की नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया था लेकिन उनके बेटे ने उन्हें प्रोत्साहित किया. स्वर्णलता ने अपने बेटे द्वारा प्रोत्साहित किए जाने के बाद ओडिशा ओपन स्कूल में अपनी पढ़ाई की. लेकिन कोरोना के दौर में जब दसवीं की परीक्षा कैंसिल हो गई तब भी रिजल्ट के लिए बने फार्मूले में 10वीं की मिडटर्म को शामिल किया गया था. इसमें अच्छा ये रहा कि स्वर्णलता ने दिसंबर में मिड टर्म की परीक्षा पास की थी. सरकार द्वारा इस साल कोविड महामारी के कारण परीक्षा रद्द करने के बाद, उसने सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार कक्षा 10 पास की.
बता दें कि इस साल दसवीं कक्षा की परीक्षा रद्द कराने को लेकर छात्रों ने राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आवास के सामने धरान प्रदर्शन किया था. छात्रों के इस प्रदर्शन के बाद सरकार ने दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा रद्द करने का फैसला लिया था. फिर छात्रों को आंतरिक मूल्यांकन के जरिए नंबर देने का निर्णय लिया गया.