दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट प्रवेश प्रक्रिया के समापन से कुछ ही दिन पहले, यूनिवर्सिटी ने तय स्ट्रेन्थ से अधिक "कॉलेज-यूनिवर्सिटी" की सीटों पर एडमिशन शुरू किए हैं जिसका टीचर्स और छात्र समूहों द्वारा विरोध किया जा रहा है. यूनिवर्सिटी की अकादमिक काउंसिल (AC) के चार सदस्यों ने दावा किया कि सुपरन्यूमरेरी सीटें (Supernumerary Seats) मैनेजमेंट कोटा की तरह होंगी क्योंकि उम्मीदवारों का चयन करने की शक्ति केवल प्राचार्यों और विश्वविद्यालय के पास ही है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों के प्राचार्यों और निर्वाचित कार्यकारी परिषद के सदस्यों के अनुरोध पर, यूजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कुछ अतिरिक्त सीटें जोड़ने के लिए एक समिति का गठन किया गया था. समिति ने कहा है कि Covid 19 महामारी के मद्देनज़र कॉलेजों को कुछ अन्य सीटें दी जा सकती हैं.
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने सोमवार को जारी एक परिपत्र में कहा, "विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सत्र 2020-21 में कॉलेज-यूनिवर्सिटी कोटा के तहत प्रवेशों के लिए समिति की सिफारिश को मंजूरी दे दी है". यह कहा गया कि कॉलेज के प्रिंसिपल को यूजी पाठ्यक्रमों में पांच प्रवेश (जिनमें से दो विश्वविद्यालय द्वारा सुझाए जाएंगी) की अनुमति दी जाएगी.
AC के चार सदस्यों ने कार्यवाहक कुलपति पीसी जोशी को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि चूंकि DU के कॉलेजों में प्रवेश के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है, इसलिए इस तरह का कदम "न केवल पूरी तरह से अनैतिक है, बल्कि यह गैरकानूनी भी है. यह कदम COVID-19 महामारी के नाम पर इस तरह की अपारदर्शी प्रथाओं को शुरू करने का एक प्रयास है."
पत्र में यह भी कहा गया कि जब यूनिवर्सिटी ने महामारी के कारण फीस कम करने की सिफारिश नज़रअंदाज की है तो एडमिशन में कोटा देने की सिफारिश कैसे मंजूर की जा सकती है. अकादमिक काउंसिल के सदस्यों के पत्र में आगे दावा किया गया है कि यह नीति प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता को खत्म कर देगी. कम कट-ऑफ वाले उम्मीदवारों को विभिन्न स्तरों पर व्यवस्थापकों द्वारा एडमिशन मिल जाएगा. काउंसिल के सदस्यों ने यह भी दावा किया कि परिषद के समक्ष मुद्दा रखे बिना कोटा को मंजूरी दे दी गई है.