क्या आप जानते हैं कि दुनिया के कई हिस्सों में कुछ समुदाय ऐसे भी हैं, जो किसी की मौत पर रोने के लिए जाने जाते हैं.
हां, ये सच है! दुनिया के कई हिस्सों में कुछ समुदायों में ‘रोने’ को भी एक पेशा माना जाता है, और लोग इसके लिए पैसे लेते हैं.
आपको बता दें कि कुछ संस्कृतियों में मान्यता है कि किसी की मृत्यु पर जितना ज्यादा रोया जाएगा, उतनी ही अच्छी ‘विदाई’आत्मा को मिलेगी. इसलिए परिवार वाले मातम में रोने के लिए कुछ महिलाओं या पुरुषों को पैसे देकर बुलाते हैं, जो अंतिम संस्कार या शोक सभा में जोर-जोर से रोते, बिलखते और दुख जताते हैं.
राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर जैसे पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में रुदाली देखने को मिल जाएगी. यहां राजपूत और ठाकुर परिवारों में अब भी कुछ खास अवसरों पर रुदालियों को बुलाया जाता है, खासकर बड़े-बुजुर्गों की मृत्यु पर.
इसके अलावा बिहार के सीमावर्ती हिस्से, और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भी शोक सभा में मातम करने के लिए महिलाएं बुलाई जाती हैं, हालांकि वहां इन्हें “रुदाली” नहीं कहा जाता. रुदालियां पारंपरिक तरीके से विलाप करती हैं, रोती हैं, बाल बिखेरती हैं और छाती पीटती हैं, जिससे देखकर वहां का माहौल और अधिक शोकपूर्ण हो जाता है.
ये आमतौर पर दलित, पिछड़े या निम्न आर्थिक वर्ग की महिलाएं होती हैं, जो पैसे लेकर अमीर या उच्च जाति के परिवारों के मृत व्यक्तियों के लिए मातम करती हैं,1993 की फिल्म "रुदाली" में डिंपल कपाड़िया और राखी ने ऐसे ही किरदार निभाए थे.