
आज मार्केट में सन ग्लासेस के तरह-तरह के ब्रांड्स मौजूद हैं. हालांकि, जब कभी सन ग्लासेस की बात होती है तो सबसे पहले जो नाम ज्यादातर लोगों के दिमाग में आता है वो है 'Ray-Ban'. रे-बैन के चश्मे हम सबने कभी न कभी इस्तेमाल किए होंगे या किसी दूसरे को पहने हुए तो जरूर देखा होगा. पुलिस अधिकारी हों, फिल्मी हस्तियां, राजनेता या फिर आर्मी अफसर और एयरफोर्स पायलट्स, रे बैन के एविएटर (Aviator) चश्मे हर किसी की पहली पसंद हैं. हालांकि, आपने कभी सोचा है कि इस रे-बैन का मतलब क्या है? इस कंपनी का एक दिलचस्प इतिहास है. आज हम आपको रे-बैन नाम के पीछे की वजह और इस कंपनी की कामयाबी की कहानी बताएंगे.
कैसे हुई कंपनी की शुरुआत?
फिलहाल रे बैन ब्रांड का मालिकाना हक लग्जोटिका के पास है. बॉश एंड लॉम्ब ने 1999 में इसे लग्जोटिका ग्रुप को बेच दिया था. लग्जोटिका रे-बैन के अलावा डोल्चे गबाना, अरमानी, वरसाचे से लेकर वोग आइवियर मिलाकर कुल 32 ब्रांड्स के चश्में बेचती है. रे-बैन कंपनी की बात करें तो इसकी स्थापना साल 1937 में जॉन जैकब बॉश (John Jacob Bausch) और हेनरी लॉम्ब (Henry Lomb) ने की थी. रे-बैन एक अमेरिकी-इटैलियन ब्रांड है, यह ब्रांड अपने सनग्लासेस के वेफेयरर और एविएटर सीरीज़ के लिए मशहूर है. कंपनी की स्थापना करने वाले बॉश एंड लॉम्ब का चश्मा बनाने से रिश्ता साल 1863 से है. दरअसल, जॉन जैकब बॉश ने साल 1863 में न्यूयॉर्क की रेनॉल्ड्स आर्केड बिल्डिंग में ऑप्टिकल सामानों का एक छोटा सा बिजनेस शुरू किया. हेनरी लॉम्ब ने बॉश को बिजनेस स्टार्ट करने के लिए लोन के रूप में आर्थिक मदद की. इससे दोनों के बीच पार्टनरशिप हो गई.
इसके बाद, 1883 में बॉश एंड लॉम्ब ने एक छोटी सी ऑप्टिकल दुकान की स्थापना की. दोनों ने चश्मे और अन्य ऑप्टिकल उपकरणों जैसे माइक्रोस्कोप, दूरबीन का निर्माण और आयात भी शुरू किया. ऑप्टिकल उपकरणों की दुकान ने काफी तरक्की देखी. देखते ही देखते B&L ऑप्टिकल ग्लास बनाने वाली अमेरिका की पहली कंपनी बन गई. इसके बाद पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस कंपनी ने अमेरिकी सेना को बड़ी संख्या में टारपीडो संबंधित उपकरण, पेरिस्कोप और सर्चलाइट मिरर्स सहित कई ऑप्टिकल उपकरण बनाकर दिए. कंपनी ने इन जरूरतों को पूरा करने के लिए अपना उत्पादन बढ़ा दिया.
कैसे हुई रे-बैन की शुरुआत, क्या है इसका मतलब?
ऑप्टिकल उपकरण बनाने वाली कंपनी कैसे दुनिया की सबसे मशहूर आईवियर ब्रैंड बनी, इसके पीछे एक बहुत दिलचस्प कहानी है. इस कंपनी के मशहूर होने की कहानी बताने से पहले हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे इस कंपनी का नाम रे-बैन पड़ा. रे-बैन यानी सूरज की किरणों को रोकने (बैन) वाले चश्मे. Ray-Ban पहली ऐसी कंपनी थी जिसने सूरज की रोशनी को रोकने वाले चश्मे डिजाइन किए थे, जिन्हें एविएटर्स कहा गया था. इसी वजह से इस कंपनी ने अपना नाम रे-बैन रखा. हालांकि, बॉश और लॉम्ब को सूरज की किरणें रोकने वाले चश्मे बनाने का आइडिया कैसे आया?
दरअसल, रे-बैन कंपनी की शुरुआत तब हुई जब 1937 में अमेरिकी एयरफोर्स के एक पायलट ने इस कंपनी को धूप वाले चश्मे या एविएटर्स डिजाइन करने को कहा. दरअसल, एयरफोर्स पायलट्स को उड़ान के दौरान ज्यादा ऊंचाई पर सूरज की रोशनी की वजह से समस्याएं आती थीं. अमेरिकी वायु सेना में अफसर मैकरेडी ने जब विमान उड़ाया, तो उनके साथ भी यही समस्या हुई, इससे बचने के लिए मैकरेडी ने बॉश और लॉम्ब को ऐसे चश्मे बनाने के लिए कहा, जिनको लगाने के बाद पायलट्स को देखने में भी कोई समस्या न हो और सूरज की किरणों को भी आंखों में चुभने से रोका जा सके. अफसर के इस आइडिया के बाद ही रे-बैन ने एविएटर्स बनाए और यही घटना इस कंपनी की नींव बनी.
दुनिया भर की वायु सेना में मशहूर
आज, सिर्फ अमेरिकी एयरफोर्स ही नहीं बल्कि भारत देश समेत कई और देशों के पायलट्स भी एविएटर्स पहनते हैं. एविएटर्स न केवल सैन्य पायलटों द्वारा, बल्कि कॉमर्शियल पायलटों द्वारा भी पहने जाते हैं. एविएटर्स की यूवी सुरक्षा और एंटी-ग्लेयरिंग खूबियों के चलते सूरज की रोशनी पायलट्स की आंखों में नहीं चुभती और वो आराम से देख पाते हैं. यही वजह है कि दुनियाभर के पायलट्स की पहली पसंद एविएटर्स हैं. इंडियन एयरफोर्स पायलट्स के बीच भी ये बेहद लोकप्रिय हैं.

रे-बैन एविएटर्स इतने सफल हुए कि पायलट्स के साथ-साथ अन्य एयरफोर्स अधिकारियों द्वारा भी इन्हें पहना जाने लगा. देखते ही देखते रे-बैन एविएटर्स को ग्लैमरस जीवनशैली का पर्याय माना जाने लगा. कुछ सालों के अंदर हॉलिवुड में रे-बैन के एविटर्स से लेकर वेफेयरर डिजाइन के चश्मे बहुत पसंद किए जाने लगे. फेसम हॉलिवुड एक्टर टॉम क्रूज़ को रे बैन के चश्मे कई फिल्मों में पहने देखा जा सकता है. वहीं, बॉलिवुड के दिग्गज सितारों जैसे सलमान खान और शाहरुख खान को भी आप कई फिल्मों में रे-बैन के एविएटर्स पहने देख सकते हैं.