पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीयों के लिए एक दिल तोड़ने वाली खबर सामने आई है. महिला रेसलिंग के फाइनल में प्रवेश कर अपना सिल्वर मेडल पक्का कर चुकीं विनेश फोगाट को अयोग्य करार दिया गया है. इसके साथ ही उनका ओलंपिक मेडल का सपना भी टूट गया. हालांकि, रेसलिंग में भारत की उम्मीदें अभी भी बरकरार हैं.
क्या है रेसलर्स के कानों का रहस्य
मैच के इतर, हम आपको रेसलर्स के बारे में एक ऐसा तथ्य बताने जा रहे हैं जो आपने नोटिस तो किया होगा, लेकिन इसका कारण नहीं जानते होंगे. आपने कई रेसलरों और बॉक्सरों के कानों में एक अजीब बनावट देखी होगी.इन करीबी-संपर्क खेलों के एथलीटों के कानों को ढकने वाली अतिरिक्त त्वचा बार-बार के प्रहारों और चोटों का नतीजा है.
ज्यादातर रेसलर्स के कान टेढ़े-मेढ़े और सूजे हुए होते हैं. साइंटिफिक टर्म में इसे "कॉलीफ्लॉवर ईयर" कहा जाता है. आइए, इसके पीछे की वजह जानते हैं.
मेडिसीनेट नामक मेडिकल रिसर्च पब्लिशर ने इसके बारे में एक स्टडी पेपर पब्लिश किया है. इसमें बताया गया है कि पहलवानों के कान की हड्डी टूटी या फिर टेढ़ी-मेढ़ी खुद से नहीं, बल्कि यह एक प्रोसेस का नतीजा है.
क्यों कहा जाता है कॉलीफ्लॉवर ईयर
कॉलीफ्लॉवर ईयर एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब रेसलिंग के दौरान मैट पर रगड़ के कारण कान में छोटे-छोटे खून के थक्के बन जाते हैं. ये थक्के खून और पोषक तत्वों के प्रवाह को ब्लॉक कर देते हैं. जब कान की चोट ठीक होने लगती है, तो कान सिकुड़ कर मुड़ जाता है और पीला दिखाई देता है,जिससे इसका आकार गोभी के फूल जैसा हो जाता है. इसलिए इसे कॉलीफ्लॉवर ईयर कहा जाता है.
मेहनत के दौरान भी रेसलर्स का शरीर का तापमान बढ़ जाता है. कान के पास की रक्त कोशिकाएं बेहद नाजुक होती हैं. जब रेसलर पहला दांव लगता है.इस दौरान शरीर का तापमान बढ़ा होता है और कान पर दबाव पड़ता है. इस दबाव से रक्त कोशिकाएं फटने लगती हैं और कभी-कभी हड्डी भी टूट जाती है.
इसके बाद कान में धीरे-धीरे खून भर जाता है और उसकी बनावट बदल जाती है. कोई भी रेसलर इसका इलाज नहीं कराता क्योंकि इलाज कराने से और भी समस्याएं हो सकती हैं. बिना इलाज के, उन्हें कोई खास दिक्कत नहीं होती है और रेसलिंग में यह एक सामान्य बात मानी जाती है.
कॉलीफ्लॉवर ईयर सिर्फ एथलीटों के नहीं होते
कॉलीफ्लॉवर ईयर केवल एथलीटों में ही नहीं होता, बल्कि यह स्थिति गैर-एथलीटों में भी हो सकती है. हालांकि, यह बॉक्सर, रेसलर, मार्शल आर्टिस्ट और रग्बी खिलाड़ी जैसे करीबी-संपर्क खेलों में अधिक आम है. इसलिए, अगली बार जब आप किसी रेसलर के कान देखें, तो समझें कि यह उनकी मेहनत और संघर्ष का प्रतीक है.