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समझ‍िए International Humanitarian Law का रूल 7, जिसमें युद्ध में आम लोगों को न‍िशाना बनाने पर होती है जेल

IHL का रूल 7 खास तौर पर आम नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ा है जिसमें साफ कहा गया है कि युद्ध में आम नागरिकों पर हमला करना एक गंभीर अपराध है. लेकिन ये रूल कहता क्या है और अगर कोई देश इसे तोड़ता है तो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) से उसे क्या सजा मिल सकती है? आइए, जानते हैं इसके बारे में सबकुछ. 

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what is International Humanitarian Law  (Representational Image by AI)
what is International Humanitarian Law (Representational Image by AI)

युद्ध का नाम सुनते ही दिमाग में तबाही, बमबारी और मौत की तस्वीरें उभरती हैं. इन सबके बीच एक सवाल जो हर इंसान के मन में उठता है कि क्या युद्ध में कोई नियम भी होते हैं? तो जान लीजिए कि हां, युद्ध के भी अपने नियम होते हैं, जिन्हें इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन लॉ (IHL) कहा जाता है.  

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ये नियम युद्ध के दौरान इंसानियत को बचाने और गैर जरूरी हिंसा को रोकने के लिए बनाए गए हैं. IHL का रूल 7 खास तौर पर आम नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ा है जिसमें साफ कहा गया है कि युद्ध में आम नागरिकों पर हमला करना एक गंभीर अपराध है. लेकिन ये रूल कहता क्या है और अगर कोई देश इसे तोड़ता है तो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) से उसे क्या सजा मिल सकती है? आइए, जानते हैं इसके बारे में सबकुछ. 

IHL रूल 7, जो है आम नागरिकों की सुरक्षा का ढाल

इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन लॉ यानी IHL युद्ध के दौरान इंसानियत को बचाने का एक कानूनी ढांचा है. इसका रूल 7 ब्रिटिश रेड क्रॉस और ICRC जैसी संस्थाओं के दस्तावेजों में साफ-साफ दर्ज है. इसके अनुसार युद्ध में आम नागरिकों और सैनिकों के बीच फर्क करने की बात की गई है. इस रूल के अनुसार युद्धरत पक्षों को हर हाल में आम नागरिकों और सैनिकों के बीच अंतर करना होगा. आम नागरिकों या उनकी संपत्ति पर हमला करना सख्त मना है. ये हमले सिर्फ सैन्य ठिकानों पर ही किए जा सकते हैं. फिर भी अगर कोई हमला ऐसा है जिसमें नागरिकों को नुकसान पहुंचने की आशंका है तो उसे भी गैरकानूनी माना जाता है. 

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इस रूल का मकसद युद्ध में भी इंसानियत को जिंदा रखना है. उदाहरण के तौर पर अगर कोई सेना जानबूझकर किसी स्कूल, अस्पताल या रिहायशी इलाके पर बमबारी करती है तो ये IHL रूल 7 का उल्लंघन है. ऐसा करना न सिर्फ अनैतिक है बल्कि एक युद्ध अपराध भी माना जाता है. IHL का ये नियम 1949 की जेनेवा संधियों और 1977 के अतिरिक्त प्रोटोकॉल्स से लिया गया है, जो साफ कहते हैं कि नागरिकों को निशाना बनाना या उन्हें अनावश्यक नुकसान पहुंचाना अपराध है. 

क्या कहते हैं ताजा हालात?
हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ने एक बार फिर इस नियम की अहमियत को सामने ला दिया है. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया. इस दौरान भारत ने साफ तौर पर कहा कि उसका निशाना सिर्फ आतंकी ठिकाने थे, न कि आम नागरिक. दूसरी तरफ कई बार देखा गया है कि युद्धरत पक्ष नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हैं जो अपने आप में IHL का उल्लंघन है. 

उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान कई बार ऐसी खबरें आईं कि रूसी सेना ने नागरिक इलाकों पर हमले किए. इसके चलते हजारों लोग मारे गए. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 तक इस युद्ध में 500 से ज्यादा बच्चे मारे गए और 1,100 से ज्यादा घायल हुए. इसी तरह इस्राइल और गाजा के बीच चल रहे संघर्ष में भी IHL के उल्लंघन की खबरें सामने आती रही हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि इस्राइल ने गाजा में पानी, बिजली और ईंधन की सप्लाई रोककर सामूहिक सजा दी, जो IHL के तहत एक युद्ध अपराध है. दूसरी तरफ, हमास जैसे संगठन नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हैं जो भी IHL रूल 7 का उल्लंघन है. 

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IHL को न मानना होता है युद्ध अपराध
IHL रूल 7 का उल्लंघन करना यानी युद्ध अपराध करना है. यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन जेनोसाइड प्रिवेंशन के मुताबिक युद्ध अपराधों में कई तरह के कृत्य शामिल हैं जैसे- नागरिकों पर जानबूझकर हमला करना, अस्पतालों या स्कूलों पर बमबारी करना, बंधक बनाना या नागरिकों को भुखमरी की तरफ धकेलना. अगर कोई सेना या सशस्त्र समूह ऐसा करता है तो ये सीधे तौर पर IHL का उल्लंघन है. 

1998 में बने रोम स्टैट्यूट के आर्टिकल 8(2)(b)(i) में साफ लिखा है कि जानबूझकर आम नागरिकों पर हमला करना एक युद्ध अपराध है. इसी तरह 1977 के अतिरिक्त प्रोटोकॉल I के आर्टिकल 51(2) में कहा गया है कि आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जा सकता. ये नियम सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं हैं. इन्हें तोड़ने वालों को सजा भी मिलती है. 

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में क्या है सजा का प्रावधान 
जब कोई देश या सशस्त्र समूह IHL का उल्लंघन करता है तो उसे सजा देने की जिम्मेदारी कई स्तरों पर तय होती है. सबसे पहले हर देश को अपने कानूनों के तहत युद्ध अपराधियों को सजा देनी होती है. जेनेवा संधियों के तहत हर देश को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो ऐसे अपराधियों को या तो अपनी कोर्ट में सजा दे या फिर उन्हें किसी और देश को सौंप दे जो सजा देना चाहता हो. 

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लेकिन कई बार देश ऐसा करने में नाकाम रहते हैं. ऐसे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) और इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) जैसे संस्थान सामने आते हैं. ICJ जहां देशों के बीच विवाद सुलझाने का काम करता है, वहीं ICC व्यक्तिगत अपराधियों को सजा देता है. उदाहरण से समझ‍िए कि जैसे कोई देश अपने सैन्य बलों के जरिए जानबूझकर नागरिकों पर हमला करता है तो पीड़ित देश ICJ में केस दायर कर सकता है. ICJ इस मामले में फैसला दे सकता है कि दोषी देश को मुआवजा देना होगा या फिर उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे. 

ICC उन व्यक्तियों को सजा देता है जो ऐसे अपराधों के लिए जिम्मेदार होते हैं. इसे आप रवांडा के उदाहरण से समझ‍िए, कैसे रवांडा नरसंहार के बाद वहां के कई नेताओं को ICC ने सजा सुनाई. ICC में सजा के तौर पर लंबी जेल, मुआवजा और पीड़ितों को राहत पहुंचाने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है और दोषी देशों पर प्रतिबंध लगा सकती है. 

बड़ी प्रक‍िया के बाद लागू हो पाते हैं ये नियम 
भले IHL के नियम सख्त हैं लेकिन इन्हें लागू करना आसान नहीं है. कई बार बड़े देश अपनी ताकत का इस्तेमाल करके इन नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं. आप रूस-यूक्रेन युद्ध ही ले लीजिए. रूस पर नागरिकों को निशाना बनाने के कई आरोप लगे लेकिन अब तक कोई ठोस सजा नहीं हो पाई है. इसी तरह इस्राइल पर गाजा में IHL उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं लेकिन कार्रवाई सीमित ही रही है. फिर भी IHL का रूल 7 एक उम्मीद की किरण है जो युद्ध के अंधेरे में भी इंसानियत को बचाने की कोशिश करता है. 

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