डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) के प्रमुख ने पुष्टि की है कि भारत रुद्रम-4 लॉन्ग-रेंज एयर-टू-सरफेस मिसाइल (ALSM) का विकास कर रहा है. यह हाइपरसोनिक स्पीड पर काम करेगी. यह मिसाइल भारतीय वायु सेना (IAF) की क्षमता को बढ़ाएगी. इसकी तेज रफ्तार और मैन्युअवरेबिलिटी के कारण दुश्मनों के लिए इसे रोकना बहुत मुश्किल होगा.
रुद्रम सीरीज: एयर-टू-सरफेस युद्ध में छलांग
रुद्रम परिवार, जिसका अर्थ संस्कृत में "दुखों को दूर करने वाला" है. डीआरडीओ द्वारा विकसित एक सीरीज है, जो दुश्मन की वायु रक्षा और महत्वपूर्ण जमीन के लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए डिजाइन की गई है. इस सीरीज में शामिल हैं...
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रुद्राम-1: एक सुपरसोनिक एंटी-रेडिएशन मिसाइल (ARM) है, जिसकी रेंज 200 किलोमीटर तक है. इसे 2020 में सफलतापूर्वक टेस्ट किया गया. यह IAF के सु-30 एमकेआई जेट्स के साथ तैनात है. इसे सीरियल प्रोडक्शन के लिए तैयार किया जा रहा है.
रुद्राम-2: एक हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसकी रेंज 300 किलोमीटर है. इसमें एंटी-रेडिएशन और ग्राउंड-अटैक वेरिएंट हैं. इसे मई 2024 में सु-30 एमकेआई से सफलतापूर्वक टेस्ट किया गया, जिसने इसके प्रणोदन, नियंत्रण और गाइडेंस सिस्टम्स को साबित किया. इसकी इमेजिंग इन्फ्रारेड (IIR) सीकर इसे विविध लक्ष्यों पर सटीक निशाना लगाने में मदद करती है.
रुद्राम-3: दो-चरण हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसकी रेंज 550 किलोमीटर है. इसे गहरे प्रहार के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें बूस्टर स्टेज और डुअल-पल्स मोटर हैं. साथ ही 16 कंट्रोल सरफेस हैं, जो इसे अत्यधिक मैन्युअवरेबल बनाते हैं. अभी इसका विकास हो रहा है. इसे हवा से छोड़े गए ब्रह्मोस से भी तेज और ज्यादा पेलोड ले जाने की क्षमता होगी.
रुद्राम-4: हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी में गेम चेंजर
डीआरडीओ प्रमुख के अनुसार कि रुद्रम-4 एक लॉन्ग-रेंज स्टैंड-ऑफ वेपन (LRSOW) होगा, जिसकी रेंज 300 किलोमीटर से ज्यादा होगी. यह रुद्रम-3 की 550 किलोमीटर रेंज को भी पार कर सकती है. सीरीज में बाकी मिसाइलों की तुलना में रुद्रम-4 हल्का होगा, जो इसे कई IAF प्लेटफॉर्म्स, जैसे सु-30 एमकेआई, मिराज 2000 और राफेल के साथ तैनात हो सकती है.
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इसकी हाइपरसोनिक स्पीड करीब 6,790 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा—इसे रडार और इंटरसेप्टर्स से बचने में मदद करेगी, क्योंकि इसकी तेज रफ्तार और मैन्युअवरेबिलिटी उन्नत वायु रक्षा सिस्टम्स के लिए भी चुनौतीपूर्ण होगी.
रुद्राम-4 की प्रमुख विशेषताएं शामिल हैं...
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डीआरडीओ प्रमुख ने जोर दिया कि रुद्रम-4 की हाइपरसोनिक क्षमताएं IAF के लिए एक "फोर्स मल्टीप्लायर" होगी, जो इसे गहरे प्रहार करने में सक्षम बनाएगी. यह विशेष रूप से दुश्मन की सरफेस-टू-एयर मिसाइल (SAM) सिस्टम्स और विवादित सीमाओं पर महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने के लिए महत्वपूर्ण है.
रणनीतिक संदर्भ और क्षेत्रीय प्रभाव
रुद्रम-4 का विकास क्षेत्रीय तनावों के बीच हो रहा है, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ. रुद्रम सीरीज LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) और LoC (लाइन ऑफ कंट्रोल) पर बढ़ते वायु रक्षा सिस्टम्स और फोर्टिफिकेशंस का मुकाबला करने के लिए डिजाइन की गई है.
इन मिसाइलों की रडार स्टेशंस, कम्युनिकेशन हब्स और बंकर्स को नष्ट करने की क्षमता SEAD (सप्रेशन ऑफ एनिमी एयर डिफेंस) और DEAD (डिस्ट्रक्शन ऑफ एनिमी एयर डिफेंस) मिशनों को सपोर्ट करती है, जिससे IAF के विमानों को शत्रु एयरस्पेस में स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति मिलती है.
रुद्रम-4 की हाइपरसोनिक स्पीड और बढ़ी हुई रेंज इसे चीन के HQ-9 और पाकिस्तान के HQ-16 SAM सिस्टम्स के लिए सीधा मुकाबला बनाती है. इसका हल्का डिजाइन और कई प्लेटफॉर्म्स के साथ अनुकूलनशीलता IAF की ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाती है. यह दुश्मन क्षेत्र में हाई वैल्यू एसेट्स को निशाना बना सकता है.
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मिसाइल की क्वासी-बैलिस्टिक ट्रैजेक्टरी और अत्यधिक मैन्युअवरेबिलिटी चीन के S-400 जो तिब्बत में तैनात हैं, जैसे सिस्टम्स द्वारा इंटरसेप्ट करने को और जटिल बनाती है. यह विकास क्षेत्रीय हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी में प्रगति का भी जवाब है.
चीन और रूस ने DF-17 और किंझल जैसे हाइपरसोनिक मिसाइल्स तैनात किए हैं, जबकि पाकिस्तान ने चीन से आपूर्ति किए गए CM-400AKG जैसे सिस्टम्स पर भरोसा किया है. रुद्रम-4 के विकास से भारत रणनीतिक समानता बनाए रखने और आक्रामकता को रोकने के लिए विश्वसनीय लॉन्ग-रेंज क्षमताओं का विकास करना चाहता है.