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घर में शौचालय न होने को कोर्ट ने माना क्रूरता, महिला की तलाक याचिका मंजूर

भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट एक महिला ने शिकायत की थी कि उसकी शादी 2011 में हुई थी लेकिन घर में कमरा और शौचालय तक नहीं था. 2015 तक हमने घरवालों को कहा कि आप शौचालय बनवा दें, बाहर जाने में शर्मिदगी होती है मगर किसी ने नहीं सुनी. महिला ने ये शिकायत 2015 में की थी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

राजस्थान के फैमिली कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए घर में टायलेट नहीं होने को क्रूरता मानते हुए एक महिला की तलाक की याचिका मंजूर कर ली. भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट में एक महिला ने याचिका दी कि ससुराल में शौचालय नहीं होने की वजह से वह पीहर (पिता का घर) में रह रही है. बार-बार कहने पर भी उसके पति और ससुराल वाले घर में शौचालय नहीं बनवा रहे हैं. महिला की याचिका को मंजूर करते हुए जज राजेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि यह तो महिला के प्रति क्रूरता है और सामाजिक कलंक है.

कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने फैसले में कहा कि क्या कभी यह दर्द हुआ कि घर की मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़ता है. ग्रामीण महिलाएं शौच के लिए रात की प्रतिक्षा करती हैं. तब तक वह बाहर नहीं जा सकती है. किसी ने यह महसूस किया कि कैसी उनकी शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती होगी. ऐसे दौर में खुले में शौच की कुप्रथा समाज पर कलंक है. शराब, तंबाकू पर बेहिसाब खर्च करने वालों के घर शौचालय न होना विडंबना है.

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यह है पूरा मामला

भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट एक महिला ने शिकायत की थी कि उसकी शादी 2011 में हुई थी लेकिन घर में कमरा और शौचालय तक नहीं था. 2015 तक हमने घरवालों को कहा कि आप शौचालय बनवा दें, बाहर जाने में शर्मिंदगी होती है मगर किसी ने नहीं सुनी. महिला ने ये शिकायत 2015 में की थी. दो साल से अपने पीहर रह रही है और इसी आधार पर तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट में लगाई थी जिसे कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है.

 

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