scorecardresearch
 

Delhi Violence: किसी का घर उजड़ा, किसी की दुकान जल गई और ऐसे तबाह हो गई दिल्ली

वहशी बन चुके चंद लोगों ने चंद घंटों में ना जाने कितनों की ही दुनिया उजाड़ दी. जिन आंखों ने दंगों का वो मंजर देखा वो आंखें अभी भी गीली हैं. अभी भी उनकी सिसकती आवाज की लरज़ती गवाही यही है कि बहुत हो गया.

Advertisement
X
हिंसाग्रस्त इलाके की तस्वीर (फोटो- संदीप तिवारी)
हिंसाग्रस्त इलाके की तस्वीर (फोटो- संदीप तिवारी)

  • दंगाईयों ने खेला हिंसा का नंगा नाच
  • राजधानी दिल्ली के बड़े इलाके पर असर

हिंसा की तस्वीरें देखकर दिल्ली और दिल्लीवालों के दर्द को समझना और महसूस करना मुश्किल नहीं है. कैसे चंद लोगों ने चंद घंटों में ना जाने कितनों की ही दुनिया उजाड़ दी. जिन आंखों ने दंगों का वो मंजर देखा वो आंखें अभी भी गीली हैं. अभी भी उनकी सिसकती आवाज की लरज़ती गवाही यही है कि बहुत हो गया. बहुत घर उजड़ गए. अब बस और कुछ नहीं होना चाहिए. एक भरोसा एक यक़ीन मिल जाए तो आंसुओं से आंखों को राहत मिल जाए.

दिल्ली के शिवविहार में मौजूद एक स्कूल की हालत देखकर सब समझ आता है. हिंसा पर उतारू भीड़ ने जब विद्या के मंदिर पर कब्जा किया तो उस वक्त मनोज गांठ ने इसका विरोध किया. भीड़ ने उन्हे डरा धमका कर कमरे में बंद कर दिया और स्कूल की छत से पत्थर और पेट्रोल बम फेंकने लगे.

Advertisement

ये ज़रूर पढ़ेंः हिंसा की आग में झुलसी दिल्ली, कहां से आया 'मौत का सामान'?

हैवानियत के हमले में किसी को गोली लगी तो किसी का घर फूंका गया. उस वक्त जब बाहर भीड़ जुटी थी और अंधाधुंध फायरिंग कर रही थी. बालकनी में खड़ी एक बच्ची को भी गोली लग गई. हाथ से खून की धार बह रही थी और अस्पताल ले जाना मौत का सामना करने जैसा था.

लेकिन इस खून खराबे के बीच इंसानियत भी सांस ले रही थी. एक हिन्दू दुकानदार को स्थानीय मुसलमानों ने मिलकर बचाया. हिंसा से धधकती इसी दिल्ली में जाफराबाद का एक कोना भी मौजूद था. जहां नफरत की चिन्गारी नाकाम हो गई.

इस बीच हिंसा में पीड़ित तमाम घायलों का लगातार अस्पताल में आना जारी है. सैयद जुल्फिकार घटना वाले दिन नमाज पढ़कर निकले थे, उसी वक्त उन पर हमला हो गया. जुल्फिकार का कहना है कि उसे पता ही नहीं किसने उस पर अचानक हमला कर दिया. किसने गोली चला दी.

Must Read: राजधानी दिल्ली जलती रही, पुलिस तमाशा देखती रही, कमिश्नर साहब कहां थे?

दिल्ली की हिंसा में टूटी सांसों की डोर देश के दूसरे हिस्सों से भी जुड़ी थी. ऐसा ही था बुलंदशहर का रहने वाला 22 वर्षीय अशफाक. अभी 14 फरवरी को अशफाक के सिर पर सेहरा सजा था और अब घरवाले उसके जनाजे की तैयारी में लगे थे. अशफाक रेफ्रिजरेटर रिपेयरिंग का काम करता था. हिंसा के पहले ही दिन उसकी मौत की खबर घर पहुंच गई थी लेकिन अभी तक उसकी लाश वहां नहीं पहुंच सकी.

Advertisement

हिंसा और खून खराबे की खबरें और मौत की गिनती. सरकार और पुलिस के लिए सिर्फ आंकड़ा होता है लेकिन जिनके घरों के चिराग बुझ गए. वहां इसका अंधेरा पूरी उम्र में शायद ही खत्म हो पाए.

Advertisement
Advertisement