सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठकर एक दलित ने खाना खाया तो ऊंची जात के लोगों ने उसकी जमकर पिटाई कर दी. गंभीर रूप से घायल होने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 9 दिन बाद रविवार को उसकी मौत हो गई. समाज को हिला देने वाला ये मामला उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का है.
27 साल का दलित युवक जितेंद्र अपने रिश्तेदार की शादी में शामिल होने 26 अप्रैल को श्रीकोट गांव गया था. श्रीकोट गांव, टिहरी गढ़वाल जिले के नैनबाग तहसील के अंतर्गत आता है. इसी गांव की शादी में समाज के विभेद को दर्शाने वाले यह घटना घटी.
नैनबाग टिहरी के जितेंद्र दास को सवर्णों के साथ खाना खाना इतना महंगा पड़ गया कि उसे सवर्णो ने जात-पात के भेदभाव के चलते इतनी बेरहमी से मारा की अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. ये दुःखद खबर सुनते ही हंसते खेलते परिवार में मातम छा गया. घटना के 9 दिन बाद दलित जितेंद्र ने देहरादून के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया.
मेरा देश बदल रहा है, हम बदल रहे हैं, हम सब एक हैं, लेकिन ये बात झूठी सी लगती है जब एक युवक को सिर्फ इस बात के चलते बेहरहमी से पीटा जाता है कि उसने सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने की हिम्मत की. घटना 9 दिन पुरानी है जब जितेंद्र दास नामक एक व्यक्ति अपने ही समुदाय की एक शादी में खाना खा रहा था कि तभी वहां पर कुछ उच्च जाति के लोग आए . जब उन्होंने जितेंद को कुर्सी पर बैठ कर खाना खाते देखा तो गुस्से से उन्होंने पहले उसकी कुर्सी पर लात मारी और फिर उसके बाद उसकी पिटाई करनी शुरू कर दी. उनका कहना था कि हमारे सामने आखिर एक दलित की हिम्मत कैसे हुई कि वो कुर्सी पर बैठ कर खाना खा सके. जीतेंद्र की इतनी पिटाई की गई कि उसको देहरादून के इंद्रेश अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां 9 दिन के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई.
इस घटना से परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ये गरीब परिवार अब बेटे, भाई को वापस तो नहीं ला सकता लेकिन न्याय की गुहार लगा रहा है. पुलिस ने मौत के बाद तीन लोगों की गिरफ्तारी की है. परिजनों का कहना है कि 7 लोगों के खिलाफ नामजद मुक़दमा दर्ज है लेकिन इतनी बड़ी बात हो जाने के बाद भी अभी आरोपी गिरफ्त से बाहर हैं. पुलिस ने तीन की गिरफ्तारी भी तब की है, जब जान चली गई.
तीन की गिरफ्तारी हो चुकी
मौके पर पुलिस अधिकारी और देहरादून एसडीएम भी मामले को देख रहे हैं. पुलिस प्रशासन पर ग्रामीण और परिजनों का आरोप है कि इस मामले पर संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई. जब एक बेक़सूर चला गया तब जाकर विभाग हरकत में आया है. मामले पर एसडीएम की मानें तो तीन की गिरफ्तारी हो चुकी है और जो लोग शामिल हैं उन पर कार्रवाई की जा रही है. अब यह सवाल लाजिमी है कि आखिर इस मामले पर नौ दिनों तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या प्रशासन मौत के बाद ही जाग पाया?
भाई के इंसाफ के लिए लड़ाई को जारी रखा
हताश और निराश, अपने बेटे को खोये परिजनों का कहना है कि जब तक सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हो जाती तब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा. मृतक की बहन ने पुलिस के रवैये पर साफ तौर पर कहा है कि पुलिस के द्वारा परिवार पर दबाव भी बनाया गया कि वे मुक़दमा वापिस ले लें. लेकिन बेसहारा और लाचार बहन ने अपने भाई के इंसाफ के लिए लड़ाई को जारी रखा है. पुलिस पर ये सवालिया निशान खड़े होते हैं कि इतनी बेरहमी से बिना किसी कसूर के जितेंद्र को मार डालने की बाद भी पुलिस का ये कैसा चेहरा है जो इंसाफ दिलाने के बजाय मुक़दमा वापिस लेने की बात कह रहा है. बहरहाल, पुलिस अब जाकर हरकत में आई है जब किसी परिवार का सब कुछ चला गया. अब देखने वाली बात होगी बाकी बचे दोषी कब तक सलाखों के पीछे होंगे.