पिछले 16 दिसंबर को दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद देश भर में हुए विरोध-प्रदर्शनों को ‘पूरी तरह सही’ और ‘बिल्कुल जरूरी’ करार देते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने कहा, ‘काश मैं भी वहां होता, लेकिन मैं रह नहीं सकता था.’
न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, ‘16 दिसंबर को जो भी हुआ वह नया नहीं था. लेकिन लोगों का ध्यान इस ओर गया जिससे विरोध का जबर्दस्त स्वर फूटा और जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, यह विरोध बिल्कुल जायज था. अपने गुस्से के इजहार के लिए जो प्रदर्शन शुरू हुआ वह बिल्कुल सही था और जरूरी भी था.’
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा विषय पर आयोजित छठे राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, ‘मैं उन सभी को सलाम करता हूं जिन्होंने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. काश मैं भी वहां होता, लेकिन मैं रह नहीं सकता था.’
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने इस बात के प्रति आगाह किया, ‘हम ऐसे लोगों या समूहों को नहीं झेल सकते जो अपने हित के लिए ऐसी स्थिति का फायदा उठाते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इंडिया गेट पर प्रदर्शन के दौरान मेरे भतीजे को भी पीटा गया. बाद में प्रदर्शन को हाइजैक कर लिया गया.’
न्यायमूर्ति कबीर ने कहा कि यह शुरू तो हुआ था ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ की तरह लेकिन अन्य चीजें आनी शुरू हुईं जिससे बाद में इसका स्वरूप बिगड़ गया. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 16 दिसंबर को जो कुछ भी हुआ उसे सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ अपराध नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह पूरे समाज और सभी महिलाओं के खिलाफ अपराध था.
16 दिसंबर की ‘शर्मनाक’ वारदात का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति कबीर ने कहा कि इससे लोग फिर से यह सोचने पर मजबूर हुए हैं कि आखिर समाज में हो क्या रहा है.
गौरतलब है कि 16 दिसंबर की रात दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में 23 साल की एक पैरा-मेडिकल छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद उसे और उसके पुरुष-मित्र को बस से बाहर फेंक दिया गया.