जब सब्र खोने लगे और समाज एनकाउंटर को ही इंसाफ के तौर पर देखने लगे तो फिर किसी भी मनीष गुप्ता की मौत हो सकती है. पुलिस का काम मुजरिमों को पकड़ना है. अदालत का काम उन्हें सजा देना है. लेकिन अगर पुलिस खुद ही कानून और अदालत बन जाए तो फिर किसी भी मनीष गुप्ता की मौत हो सकती है. गोरखपुर में सिर्फ एक मनीष गुप्ता की मौत नहीं हुई. बल्कि वो मौत पूरे सिस्टम की मौत है.
जब राज्य के मुखिया ही मरने मारने की बातें करें. जब सूबे के आला पुलिस अफ़सर ख़ुद ही सज़ा देने और इंसाफ़ का फ़ैसला करने लगें. जब ख़ुद पुलिसवालों के मुंह खून लग जाए. तो फिर गोरखपुर जैसे कांड पर क्या रोना पिटना. क्यों रोना पिटना और किस पर रोना पिटना. ये मौत कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की मौत नहीं है. बल्कि ये मौत यूपी पुलिस सिस्टम की मौत है. अगर ये सिस्टम की मौत ना होती, तो मनीष गुप्ता के क़त्ल के बाद सिस्टम में बैठे गिद्ध सिस्टम की गंदगी साफ करने की बजाय गिद्ध की तरह मौत का सौदा नहीं करते.
मनीष गुप्ता की जान लेनेवाले बेशक छह पुलिसवाले हों. लेकिन क़ातिल गोरखपुर के एसएसपी और डीएम भी हैं. बेशर्मी की इंतेहा देखिए और साथ ही देखिए कि सिस्टम की जब मौत हो जाती है. तो सिस्टम में घुसे गिद्ध कैसे चार साल के एक मासूम बच्चे, जिसके सर से ख़ुद क़ानून ने उसके बाप का साया छीन लिया हो और अभी-अभी विधवा हुई उसकी मां के साथ कैसी सौदेबाज़ी कर रहे हैं. ये एक वीडियो काफ़ी है ये बताने के लिए कि एक सिस्टम और एक मुर्दा सिस्टम में क्या फ़र्क होता है.
एक वीडियो वायरल हुआ. जिसमें गोरखपुर के डीएम विजय करन आनंद और एसएसपी डॉ. विपिन पुलिसवालों का शिकार बने मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे हैं. साफ कहें तो दोनों आला अफसर बेशर्मी के साथ मनीष की विधवा से सौदेबाज़ी कर रहै हैं. वो वीडियो मनीष गुप्ता की मौत के बाद का है. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज की पुलिस चौकी में वो वीडियो शूट किया गया है.
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उस वीडियो में मनीष गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी अपने चार साल के बेटे और बहनोई आशीष गुप्ता के साथ नज़र आ रही हैं. वीडियो में एक हैं गोरखपुर के डीएम विजय करन आनंद और दूसरे हैं गोरखपुर के सबसे बड़े पुलिस अफ़सर यानी एसएसपी डॉ विपिन टाडा. मीनाक्षी अपने पति के क़ातिलों को सज़ा दिलाने और ख़ुद के लिए इंसाफ़ मांगने उनके पास आई थी. लेकिन बदले में डीएम और एसएसपी साहब उन्हें बार-बार यही सलाह दे रहे थे कि मुक़दमा दर्ज करने से उन छह आरोपी क़ातिल पुलिसवालों की ना सिर्फ़ नौकरी चली जाएगी, बल्कि पूरा परिवार बर्बाद हो जाएगा.
सिस्टम से जुड़े ये दो ताक़तवर अफ़सर यहीं पर नहीं रुके, बल्कि मीनाक्षी को इशारों-इशारों में ये भी ताकीद करते रहे कि मुक़दमा दर्ज करने से क्या फायदा. बरसों कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने होंगे. ज़रा सोचिए जिन डीएम साहब और एसएसपी की ज़िम्मेदारी गुनहगारों को क़ानून के चौखट तक पहुंचाने की है, वही खुलेआम क़ानून से खिलवाड़ कर रहे हैं. इसीलिए शुरू में ही कहा था कि ये मौत मनीष गुप्ता की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की मौत है.
सिस्टम की मौत की ये कहानी गोरखपुर की है. उसी गोरखपुर की, जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमी है. कानपुर के एक प्रॉपर्टी डीलर मनीष गुप्ता 27 सितंबर को कानपुर से गोरखपुर आते हैं. अपने दो दोस्त और बिजनेस पार्टनर प्रदीप चौहान और हरदीप सिंह के साथ. तीनों गोरखपुर के रामगढ़ ताल इलाक़े में होटल कृष्णा पैलेस में रुकते हैं. तीनों दोस्त एक ही कमरे में रुके थे. कमरा नंबर- 512. शाम को कुछ बिज़नेस मीटिंग के बाद तीनों दोस्त रात का खाना खाकर सो जाते हैं.
अब तक सबकुछ ठीक था. रात करीब 12.30 बजे थे. तीनों दोस्त गहरी नींद में थे. तभी उनके कमरे की घंटी बजती है. हरदीप सिंह दरवाज़ा खोलता है. सामने बावर्दी छह पुलिसवाले खड़े थे. इससे पहले कि हरदीप कुछ पूछ पाता, सभी छह पुलिसवाले कमरे में दाखिल हो जाते हैं. मनीष गुप्ता और प्रदीप अब भी बेड पर सो रहे थे. इन छह पुलिसवालों में से एक रामगढ़ ताल थाने का एसएचओ जेएन सिंह भी था. वो हरदीप सिंह को कहता है कि उसे सूचना मिली है कि होटल में कुछ संदिग्ध लोग रुके हुए हैं. लिहाज़ा, तलाशी लेने आया है. शोर सुन कर अब तक मनीष और प्रदीप भी जाग चुके थे. पुलिसवाले सभी से आईडी मांगते हैं. तीनों अपनी आईडी दे देते हैं. इसके बाद इनके सामान की भी तलाशी ली जाती है.
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वक़्त काफ़ी लग रहा था. नींद को झोंके में अचानक मनीष पुलिसवालों से पूछ बैठता है, क्या आख़िर मामला क्या है? इतनी रात वो उनके कमरे में क्या कर रहे हैं? परेशान मनीष इसके बाद अपने घर फोन करता है. मनीष ने फ़ोन अपने भतीजे दुर्गेश गुप्ता को किया था. ये बातचीत फ़ोन में रिकॉर्ड हो गई. रात करीब 1 बजकर 38 मिनट पर किए गए कॉल की ऑडियो में मनीष कहते हैं कि पुलिसवाले आ गए हैं, यहां माहौल बिगड़ रहा है. उन्होंने कहा कि बेटा कुछ पुलिस वाले आए हैं, हम लोग सो रहे थे, जब दरवाजा खोला तो बोले कि अपनी आईडी दिखा दो कप्तान साहब का आदेश है तो उन्होंने अपनी आईडी दिखा दी.
फ़ोन रखने के बाद मनीष फिर से पुलिसवालों से पूछता है कि आख़िर इतनी देर रात उन लोगों को क्यों तंग किया जा रहा है? साथ ही वो ये भी कहता है कि क्या हमलोग आतंकवादी हैं? मनीष के दोस्त हरदीप सिंह की मानें तो मनीष के इतना कहते ही पुलिसवाले भड़क गए. वो जब से कमरे में आए थे, तब से ही बदतमीज़ी से पेश आ रहे थे. हरदीप के मुताबिक कुछ पुलिसवालों ने तो शराब भी पी रखी थी. मनीष के इतना भर कहने के बाद अचानक एसएचओ और उसके कुछ साथी मनीष की पिटाई शुरू कर देतै हैं. पहले हाथों से फिर रायफल के बट से. बुरी तरह पिटाई से मनीष लहूलुहान हो जाता है. कमरे के फ़र्श पर ख़ून फैल चुका था. पिटाई के बाद जब पुलिसवालों का जी भर गया, तो वो मनीष को घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गए. फिर उसे गाड़ी में डाल कर सीधे अस्पताल ले गए.
दरअसल, पुलिसवालों को भी अहसास हो चुका था कि मनीष की हालत बिगड़ रही है. और फिर अस्पताल जाने के कुछ ही देर बाद मनीष ने दम तोड़ दिया. अब पुलिसवालों का नशा हिरन हो चुका था. बदहवास वो भाग कर फिर से होटल पहुंचते हैं. होटल स्टाफ़ से कह कर कमरे के फर्श से ख़ून साफ़ कराते हैं. साथ ही होटल के सारे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज अपने साथ ले जाते हैं. ताकि उनसे जुड़ा कोई सबूत बचे ही नहीं. इतना ही नहीं मौत के बाद पुलिस ये बयान देती है कि मनीष होटल के कमरे में फर्श पर गिर गया था, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई थी. यानी ये एक हादसा था. इस झूठ में एसएसपी से लेकर सूबे के एडीजी तक शामिल हैं.
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शायद ये क़त्ल हादसा ही बना रहता. लेकिन दो चीज़ों ने पुलिस का खेल बिगाड़ दिया. पहला, मनीष के साथ जो कुछ हुआ, उसके दो चश्मदीद थे और दूसरा मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट. ये रिपोर्ट गवाही दे रही थी कि फ़र्श पर गिरने से वैसी चोटें नहीं आती, जो मनीष के जिस्म पर थी. सिर के अलग-अलग हिस्सों में गहरी गहरी चोटें, हाथ और जिस्म पर डंडों और बटों के निशान. नाक से बहता ख़ून. आंख के ऊपर ज़ख्म. पैरों पर चोट. ये तमाम ज़ख्म इस बात के सबूत थे कि मनीष की जान फर्श पर गिरने से नहीं गई, बल्कि पुलिसवालों ने उसकी जान ली है.
अब तक मनीष की मौत की ख़बर कानपुर तक पहुंच चुकी थी. उनका परिवार भागा हुआ गोरखपुर पहुंचा. पोस्टमार्टम रिपोर्ट सबके सामने थी. अब पुलिसवालों के हाथ पांव पहली बार फूलते हैं. बला टालने के लिए आनन-फानन में मनीष गुप्ता की लाश गोरखपुर से कानपुर भेज दी जाती है. पुलिस चाहती थी कि सुबह-सुबह अंतिम संस्कार भी हो जाए. वैसे भी रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार कराने का यूपी पुलिस का पुराना तजुर्बा है.
हालांकि मनीष का परिवार अंतिम संस्कार को तैयार नहीं था. वो चाहता था पहले योगी आदित्यनाथ खुद कानपुर आएं और भरोसा दें कि उनके साथ इंसाफ़ होगा. भरोसा मिलने के बाद ही अंतिम संस्कार किया गया. इससे पहले जब पुलिस की झूठी कहानी बेनक़ाब हो गई, तो फिर उसी पुलिस ने हादसे की जगह क़त्ल का मामला दर्ज किया. साथ ही गोरखपुर से आरोपी पुलिसवालों को सस्पेंड भी कर दिया गया. बहुत मुमकिन है कि अब ये केस भी यूपी सरकार सीबीआई के हवाले कर दे. क्योंकि पुलिस की करतूत की जांच पुलिस करे, इससे इंसाफ की उम्मीद कम हो जाती है.
वैसे आपको बता दें कि शुरू में ये क्यों कहा था कि पुलिसवालों के मुंह जब ख़ून लग जाए, तो नतीजा मनीष गुप्ता जैसे बेगुनाहों की मौत भी हो सकती है. यूपी में पिछले चार सालों में क़रीब पचहत्तर सौ एनकाउंटर हुए हैं. इनमें 132 अपराधी मारे गए, क़रीब 3 हज़ार घायल हुए और 14 पुलिसवालों की भी जान गई. अब जब एनकाउंटर ही बेलगाम हो जाए, तो फिर पुलिस वालों को बेलगाम होने से कौन रोक सकता है? सवाल गंभीर है, सोचिएगा ज़रूर.