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बटला हाउस एनकाउंटर केस में कोर्ट का इंसाफ

पिछले पांच साल से जिसका इंतज़ार पूरा देश कर रहा था, गुरुवार को आख़िरकार उस फ़ैसले की घड़ी भी आ ही गई. बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउंटर में साकेत कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले के मुल्ज़िम शहज़ाद अहमद को मुजरिम करार दिया और सोमवार को उसकी सज़ा पर बहस करने की बात कही.

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शहीद इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा
शहीद इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा

पिछले पांच साल से जिसका इंतज़ार पूरा देश कर रहा था, गुरुवार को आख़िरकार उस फ़ैसले की घड़ी भी आ ही गई. बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउंटर में साकेत कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले के मुल्ज़िम शहज़ाद अहमद को मुजरिम करार दिया और सोमवार को उसकी सज़ा पर बहस करने की बात कही.

इसी फ़ैसले के साथ ही इस एनकाउंटर के फ़र्ज़ी होने और ना होने पर पर चली आ रही बहस पर फुलस्टॉप लग गया. यानी यह साफ़ हो गया कि बटला हाउस का एनकाउंटर बिल्कुल सही था.

अदालत ने कहा, 'तमाम सबूतों और गवाहों के मद्देनज़र अदालत शहज़ाद अहमद को ताज़िरात-ए-हिंद की दफ़ा 302, 307, 353, 186, 333, 34 और आर्म्स एक्ट के तहत गुनहगार मानती है और अब उसकी सज़ा पर सोमवार को बहस की जाएगी.'

शहज़ाद के खिलाफ़ दाखिल चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने उसे इन धाराओं के अलावा और भी कई मामलों में गुनहगार बताते हुए उसके खिलाफ़ मुकदमा चलाने की गुज़ारिश की थी, जिस पर सुनवाई के दौरान पुलिस ने कई सबूत पेश किए और दलील दी, जबकि बचाव पक्ष ने उनका विरोध किया. लेकिन आख़िरकार अदालत ने उसे इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा का क़त्ल करने, दूसरे पुलिसवालों पर जानलेवा हमला करने, सरकारी काम में बाधा डालने के इरादे से पुलिसवालों पर हमला करने और आर्म्स एक्ट की दफ़ाओं के तहत कुसूरवार पाया.

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हालांकि शहज़ाद के वकील और उसके घरवालों ने इस फ़ैसले पर नाखुशी जताते हुए इस फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. इस एनकाउंटर को ही फर्ज़ी बताते हुए बचाव पक्ष का कहना है कि वो शुरू से ही इस मामले की न्यायिक जांच की मांग करती रही है. लेकिन सरकार ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया. दूसरी ओर शहीद मोहनचंद्र शर्मा के घरवालों ने इस फ़ैसले पर राहत जताई.

दिल्ली में हुए सीरियल धमाकों के बाद पिछले 19 सितंबर 2008 स्पेशल सेल ने बटला हाउस इलाके के एक फ्लैट में आतंकवादियों को पकड़ने के लिए दबिश दी थी. इस दौरान हुए एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हुए थे, जबकि कुछ पुलिसवाले ज़ख्मी हुए थे. एनकाउंटर में साजिद और आतिफ़ नाम के दो आतंकवादियों की मौत हो गई थी, जबकि शहज़ाद और जुनैद मौके से भाग निकलने में कामयाब रहा था. बाद में शहज़ाद को पुलिस ने आज़मगढ़ से गिरफ्तार किया था, जबकि जुनैद अब तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया है.

इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की हत्या का गुनहगार है शहजाद अहमद...दिल्ली के साकेत कोर्ट ने इस हकीकत पर अपनी मुहर लगा दी है. फैसले से राहत दिल्ली पुलिस को भी मिली है, जो पिछले 5 सालों से फर्जी एनकाउंटर के शक के बोझ के साथ जी रही थी.

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19 सितंबर 2008 के बटला हाउस के मकान नंबर एल 18 में हुए एनकाउंटर को ही फर्ज़ी बताते हुए बचाव पक्ष का कहना है कि वह शुरू से ही इस मामले की न्यायिक जांच की मांग करता रहा है. अब इंतजार 29 जुलाई का है, जिस दिन शहजाद की सजा पर बहस होगी.

आतंकी शहजाद अहमद है कौन?
शहजाद मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के खालिसपुर गांव का रहने वाला है. शहजाद आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का हिस्सा है, जिसने 19 सितंबर 2008 को बटला हाउस एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा पर गोली चलाई थी. एनकाउंटर के बाद शहजाद जुनैद नाम के आरोपी के साथ मौके से फरार हो गया था, लेकिन पुलिस को शहजाद का पासपोर्ट मिल चुका था. शहजाद पर पुलिस ने 5 लाख का ईनाम घोषित किया था और 1 फरवरी 2010 को पुलिस ने उसे खालिसपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. शहजाद पर 13 सितंबर 2008 में हुए दिल्ली सीरियल ब्लास्ट में शामिल होने का भी आरोप है.

हालांकि दिल्ली पुलिस के सामने एक चुनौती इस बात को साबित करने की बाकी है कि क्या वाकई एनकाउंटर के दिन शहजाद वहां मौजूद था. अब शहजाद का परिवार 29 जुलाई के बाद कोर्ट के सजा पर फैसला का इंतजार कर रहा है, जिसके बाद आगे की रणनीति तय करेंगें.

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आजमगढ़ के सनजरपुर का दिल्ली के बटला हाउस के एल-18 से क्या रिश्ता है? आखिर सनजरपुर के पांच लड़के गांव से सीधे एल-18 कैसे पहुंच गए? आखिर कैसे गांव के सीधे-सादे लड़के आतंकवादी बन बैठे? शहजाद अहमद उर्फ पप्पू के हाथ खून से रंगे हुए हैं. इस बात पर मुहर अब अदालत भी लगा चुकी है. पढे़-लिखे शहजाद को अदालत ने दिल्ली पुलिस के जांबाज सिपाही मोहन चंद शर्मा का कातिल करार दिया.

शहजाद उर्फ पप्पू का ताल्लुक आजमगढ़ से है और पुलिस ने भी बटला हाउस एनकाउंटर के मामले में उसे आजमगढ़ से ही गिरफ्तार भी किया था. पुलिस की तफ्तीश का खुलासा भी यही है कि शहजाद का ताल्लुक उस आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से है, जो हिन्दुस्तान को मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में तबाही की खौफनाक तस्वीरें दिखा चुका है.

सनजरपुर एक छोटा-सा गांव है, जिसकी आबादी है महज 15 हजार, पर 15 हजार की आबादी वाला यह गांव हिंदुस्तान के नक्शे पर सबसे अलग, सबसे जुदा दिखाई देता है. जानते हैं क्यों? क्योंकि जिन 18 लोगों को देशभर में पिछले कुछ सालों में हुए बम धमाकों का जिम्मेदार ठहराया गया, उनमें से 16 लड़के अकेले इस एक गांव के हैं. दिल्ली में 13 सिंतबर 2008 को हुए धमाकों और 19 सिंतबर 2008 को हुए बटला हाउस एनकांउटर के महज़ हफ्तेभर बाद आजतक की टीम इस गांव का सच जानने वहां गई थी.

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सनजरपुर गांव आजमगढ़ शहर से करीब तीस किलोमटीर दूर सराय मीर से बिलकुल सटा हुआ है. लगभग 15 हजार की आबादी वाला यही वो गांव है, जो पिछले एक हफ्ते से अचानक हिंदुस्तान के नक्शे पर सबसे अलग नजर आने लगा है. अगर दिल्ली और मुंबई पुलिस के दावों पर यकीन करें, तो हाल के सालों में देशभर में जितने भी धमाके हुए हैं, उन धमाकों को अंजाम देने वाले ज्यादातर लड़के इसी एक अकेले गांव के हैं.

जीशान, साजिद, खालिद, साकिब, मोहम्मद साजिद, मोहम्मद सादिक शेख, मोहम्मद आरिफ शेख, मोहम्मद जाकिर शेख, मोहम्मद अंसार शेख, आफताब उस्मानी... इन तमाम लड़कों का पता यही सनजरपुर गांव है. आतिफ जिसे पुलिस इन तमाम लड़कों का बॉस बता रही है, वो भी पहले इसी सनजरपुर गांव में रहता था. बाद में उसके घरवाले सराय मीर इलाके में बस गए. जिस अबू बशर को गुजरात धमाकों का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, वो भी इसी गांव के ठीक बराबर के गांव बीना पारा का रहने वाला है.

इस गांव के नजदीक इलाके का सबसे मशहूर है बीआईसी इंटर कॉलेज. एक अबू बशर को छोड़ दें, तो बाकी के तमाम लड़कों ने इसी इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की है. कहते हैं कि इस कॉलेज का रिजल्ट इलाके के बाकी तमाम कॉलेजों से कहीं ज्यादा बेहतर होता है.

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अब सवाल ये उठता है कि आखिर एक संपन्न और खुशहाल गांव के इतने सारे लड़के भटक कैसे गए? तो इसकी दो तस्वीरें हैं. पहली खुद गांववालों की, जो ये मानने को तैयार नहीं है कि उनके बच्चे आतंकवाद के रास्ते पर भी जा सकते हैं. इस गांव के किसी भी मां-बाप से घूम-घूमकर पूछ लीजिए. सब एक ही बात कहते हैं कि उन्होंने तो अपने बच्चे को ऊंची तालीम के लिए गांव से शहर भेजा था.

पर तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. इस गांव के जितने लड़कों पर धमाकों में शामिल होने के इल्‍जाम हैं, वो सभी किसी ना किसी रूप में आतिफ से जुड़े हैं. आजतक ने जब गांव में घूम-घूमकर तफ्तीश की, तो पता चला कि आतिफ इस गांव का पहला नौजवान था, जो पढ़ाई के लिए दिल्ली आया था. वह स्कूल और इंटर कॉलेज में इन तमाम लड़कों का सीनियर था. आतिफ के दिल्ली जाने के बाद ही गांव के दूसरे मां-बाप ने भी अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए दिल्ली भेजना शुरू किया. दिल्ली में इन तमाम लड़कों का एक ही मददगार था...आतिफ.

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