कोरोना वायरस यूरोप के लिए किसी भयानक त्रासदी की तरह आया है. जिस कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई वो शहर अब सामान्य होने की ओर बढ़ रहा है लेकिन यूरोप में हर दिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है. कोरोना वायरस के संक्रमण से केवल यूरोप में 30 हजार की मौत हो चुकी है. इनमें से 20 हजार से ऊपर मौत केवल इटली और स्पेन में हुई है.
यूरोप पहले से ही कई तरह के संकट से जूझ रहा है. ये संकट हैं यूरोजोन बेलआउट्स, अवैध प्रवासी और ब्रेग्जिट. लेकिन कहा जा रहा है कि इन सारे संकटों पर कोरोना वायरस की त्रासदी सबसे भारी है. यहां तक कि यूरोपीय यूनियन के टूटने तक की आशंका जताई जा रही है. जैकस डीलोर्स यूरोपीय यूनियन कमिशन के पूर्व प्रमुख हैं. उन्होंने कहा है कि संकट की इस घड़ी में एकता के अभाव में यूरोपीय यूनियन की मौत हो सकती है.
इटली के पूर्व प्रधानमंत्री एनरिको लेट्टा ने भी कहा है कि कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से यूरोपीय यूनियन खत्म होने की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, "हमलोग एक ऐसे संकट से जूझ रहे हैं जो पहले के संकटों से बिल्कुल अलग है. कोरोना वायरस की महामारी से यूरोपवाद की अवधारणा को धक्का लगा है और यह कमजोर हुई है."
यूरोप के देशों ने शुरू में मेडिकल किट के निर्यात पर रोक लगा दी और सरहद को नियंत्रित करने की कोशिश की. इन देशों का यह रुख यूरोप के नागरिकों के लिए हैरान करने वाला था. हालांकि, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और लग्जमबर्ग ने अपने अस्पताल खोल दिए ताकि कोरोना की चपेट में आए पड़ोसी देशों के नागरिकों का इलाज हो सके. फ्रांस और जर्मनी ने इटली में चीन की तुलना में ज्यादा मास्क भेजे. इटली को शुरुआत में ईयू के देश मदद पहुंचाने में नाकाम रहे थे और इस दौरान रूस और चीन ने इटली की ज्यादा मदद की.
इटली के पूर्व पीएम ने ब्रिटेन के अखबार 'द गार्जियन' को दिए इंटरव्यू में कहा है कि यूरोप में मेलजोल दस साल पहले की तुलना में कम हुआ है. ईयू की विदेश नीति की पूर्व सलाहकार नैथली टोसी ने कहा है, "अगर हर कोई बेल्जियम फर्स्ट, इटली फर्स्ट और जर्मनी फर्स्ट की रणनीति पर चलने लगे तो हम सब एक साथ डूबेंगे. यह ऐसा वक्त है जब हमें जरूरत है कि या तो यूरोप को जोड़ें या तोड़ें. अगर अभी की तरह ही सब कुछ चलता रहा तो एक दिन यूरोपीय यूनियन टूट जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार होगा लोकप्रिय राष्ट्रवाद.
कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस की त्रासदी से यूरोपीय यूनियन के कई और पुराने घाव हरे हो गए हैं. ईयू के पूर्व एनलार्जमेंट कमिश्नर हीथर ग्रैबा ने कहा कि अलग-अलग संकटों से यूरोपीय यूनियन के देशों के बीच विश्वास कम हुआ है और यही सबसे बड़ी समस्या है.
डच वित्त मंत्री वोपके होइकेस्त्रा ने इस हफ्ते कहा कि ईयू ने कोरोना वायरस जैसी महामारी से लड़ने के लिए कोई तैयारी नहीं की थी. कोरोना वायरस से आई आर्थिक मंदी को लेकर यूरोप दो खेमों में बंटा हुआ है. फ्रांस, इटली और स्पेन के साथ कम से कम आधा दर्जन देश यूरोजोन के कर्ज से मिलकर निपटने की प्रस्ताव पर सहमत नहीं हैं. वहीं, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और नीदरलैंड्स इसके उलट खड़े हैं. पिछले हफ्ते इस पर कोई सहमति नहीं बन पाई. कोरोना वायरस के संकट के कारण ईयू हंगरी में लोकतंत्र के खिलाफ उठाए गए कदमों को लेकर चुप रहा. हंगरी ने एक आपाताकलीन कानून पास किया है. इससे सरकार के पास निरंकुश फैसले लेने वाली शक्ति आएगी.
इटली में त्रासदी के बीच कई ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स आ रही हैं जिनमें कहा जा रहा है कि इटली के नागरिकों में ईयू के प्रति नाराजगी है. वॉशिंगटन टाइम्स से इटली के एक पॉलिटिकल रिस्क कंस्लटेंसी के संस्थापक फ्रांसिस्को गलिएती ने कहा है, इस मुश्किल घड़ी में जब इटली के नागरिकों को ईयू की मदद की जरूरत थी तब उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है. 2011 में ग्लोबल क्रेडिट संकट से इटली त्रस्त रहा. फिर अवैध प्रवासियों से परेशान रहा और अब कोरोना वायरस. इटली में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर एक लाख 10 हजार 574 हो गई है जबकि मरने वालों की संख्या 13 हजार 155 हो गई है.
इटली पिछले तीन हफ्तों से पूरी तरह से बंद है और यह बंदी कब तक रहेगी, किसी को पता नहीं है. स्पेन और चीन में कोरोना वायरस से हुई मौत को मिला दें तब भी इटली में मरने वालों की संख्या ज्यादा है. इटली की स्वास्थ्य सुविधाएं नाकाफी साबित हो रही हैं और वो कई मामलों में पूरी तरह से बेबस दिख रहा है. कोरोना वायरस से पहले ही इटली कई तरह के संकट से घिरा हुआ था. आर्थिक सुस्ती के कारण वो कई समस्याओं से घिरा हुआ था. ईयू में इटली की अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर स्थिति में है. इटली सरकार की योजना है कि वो संकट से उबरने के लिए 55 अरब डॉलर मार्केट में लगाएगी. जर्मनी की अर्थव्यवस्था इटली से दोगुनी बड़ी है और वो इटली की तुलना में मार्केट में 15 गुना बड़ी रकम 825 अरब डॉलर लगाएगा.
12-13 मार्च को कराए गए एक सर्वे कराया गया जिससे ये बात सामने आई कि 88 फीसदी इतालवी मानते हैं कि यूरोप इटली की मदद करने में नाकामयाब रहा. वहीं 67 फीसदी ने माना कि ईयू की सदस्यता इटली के लिए नुकसानदेह है. अगर यूरोपीय यूनियन में मतभेद यूं ही जारी रहें तो लोगों के दिमाग में ये याद रह जाएंगी कि मुश्किल घड़ी में यूरोप के बजाय चीन और रूस उसकी मदद के लिए आगे आए थे.