भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में पिछले एक साल से दबाव देखा जा रहा है, जबकि अमेरिकी मार्केट ऑलटाइम हाई पर है. ऐसे में अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश एक बेहतर विकल्प हो सकता है. वैसे भी अमेरिका दुनिया का सबसे अमीर देश है, वहां का शेयर बाजार भी दुनिया में सबसे बड़ा है. भारतीय शेयर बाजार के मुकाबले अमेरिकी शेयर बाजार 10 गुना बड़ा है. इसलिए वहां रिटर्न का स्कोप भी ज्यादा है. साथ ही दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां अमेरिकी शेयर बाजारों में लिस्टेड हैं.
यही नहीं, हर कोई चाहता है कि दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे Google, Amazon, Tesla, nvidia और Meta में निवेश करें. इन कंपनियों का कारोबार दुनियाभर में है, और पिछले कुछ दशकों में इन कंपनियों ने अपने निवेशकों को मोटा पैसा बनाकर दिया है. आज हम आपको बताएंगे कैसे आप इन कंपनियों में निवेश कर सकते हैं.
विदेशी मार्केट में निवेश के फायदे
दरअसल, जिस तरह आप भारत में रहते हुए भारतीय शेयर बाजार में, म्यूचुअल फंड और ETF में निवेश करते हैं, ठीक उसी तरह से आप अमेरिकी बाजार में भी निवेश कर सकते हैं. अमेरिकी समेत कई विदेशी मार्केट में पैसे लगाने से मुख्यतौर पर दो फायदे हैं. एक तो जैसे-जैसे कंपनियों का कारोबार बढ़ेगा, निवेशकों का उसी हिसाब से रिटर्न बढ़ता जाएगा. जबकि दूसरा बड़ा फायदा यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट के कारण रिटर्न और भी ज्यादा हो जाता है. पिछले कुछ वर्षों में डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हुआ है. फिलहाल एक डॉलर 86 रुपये के बराबर है. वहीं 2004 में एक डॉलर का भाव महज 46 रुपये था.
भारतीय निवेशकों को अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश से होने वाली आय पर भारत और अमेरिका दोनों देशों के कर नियमों के तहत टैक्स देना पड़ता है. टैक्स का प्रावधान भारत-अमेरिका दोहरे कराधान से बचाव समझौते (DTAA) और भारतीय आयकर नियमों पर आधारित हैं.
लाभांश (Dividend) पर टैक्स
अमेरिकी कंपनियों से प्राप्त लाभांश (Dividend) पर अमेरिका में 25% टैक्स लगता है. यह भारत-अमेरिका डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस अग्रीमेंट (DTAA) के तहत लागू है. जबकि भारत में डिविडेंड को निवेशक की कुल आय में जोड़ा जाता है और उनके लागू आयकर स्लैब के अनुसार टैक्स लगता है. उदाहरण के लिए अगर आप 20% टैक्स स्लैब में हैं, तो लाभांश पर 20% टैक्स देना होगा.
DTAA के तहत अमेरिका में काटा गया 25% टैक्स भारत में आपके टैक्स दायित्व के खिलाफ क्रेडिट के रूप में समायोजित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए अगर भारत में आपका टैक्स दायित्व 30% है, तो आप 25% क्रेडिट ले सकते हैं और केवल 5% अतिरिक्त टैक्स देना होगा.
पूंजीगत लाभ (Capital Gains) पर टैक्स
अच्छी खबर यह है कि अमेरिका में विदेशी निवेशकों (जैसे भारतीय निवेशकों) के लिए पूंजीगत लाभ (Capital Gains) पर कोई टैक्स नहीं लगता है.
जबकि भारत में आप शेयर को 24 महीने के अंदर बेचते हैं, तो यह अल्पकालिक पूंजीगत लाभ माना जाता है. इसपर आपकी आयकर स्लैब दर के अनुसार टैक्स लगेगा (उदाहरण के लिए, 5% से 30% तक, आपकी कुल आय के आधार पर). वहीं अगर शेयर 24 महीने से अधिक समय तक रखे जाते हैं, तो उसपर भारत में LTCG लागू होगा.
- शेड्यूल FA (Foreign Assets): भारतीय निवेशकों को अपने आयकर रिटर्न में विदेशी संपत्तियों (जैसे अमेरिकी शेयर, ETF, बैंक खाते) का खुलासा करना जरूरी है. इसमें संपत्तियों का पीक बैलेंस, क्लोजिंग बैलेंस, और आय की जानकारी देनी होगी.
- शेड्यूल FSI (Foreign Source Income): विदेश से होने वाली आय (लाभांश, पूंजीगत लाभ) को इस शेड्यूल में घोषित करना होगा, जिसमें देश का नाम और DTAA का उल्लेख करना होगा.
- अगर आप विदेशी संपत्तियों या आय का खुलासा नहीं करते, तो ब्लैक मनी एक्ट के तहत 10 लाख रुपये तक का जुर्माना और बकाया टैक्स का तीन गुना पेनल्टी लग सकती है.
ग्लोबल मार्केट में निवेश करने से जहां आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं. इससे निवेश को लेकर रिस्क भी कम हो जाता है. भारतीयों को विदेशी शेयरों में सीधे निवेश करने की अनुमति मिले करीब 21 साल बीत चुके हैं. लेकिन अभी भी लोग जानकारी के अभाव में विदेशी शेयर बाजारों में पैसे नहीं लगा पाते हैं. हालांकि शेयर बाजार अमेरिका का हो, या भारत का, रिस्क दोनों जगहों पर हैं. इसलिए शेयर बाजार में उतना ही निवेश करें, जितना आप खोने के लिए तैयार हों. साथ ही शेयर बाजार में निवेश के लिए जरूरी जानकारी होनी चाहिए.
कैसे करें अमेरिकी बाजार में निवेश?
आज के दौर में भारतीय निवेशक अमेरिकी शेयर बाजार में सीधे निवेश करने के लिए कई ऑनलाइन ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म का उपयोग कर सकते हैं. जिसमें Groww, INDmoney, Vested Finance और Interactive Brokers शामिल हैं. ये प्लेटफॉर्म भारतीय निवेशकों को आसानी से अमेरिकी स्टॉक और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs) में निवेश करने की सुविधा देते हैं.
डीमैट और ट्रेडिंग खाते जरूरी
अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश करने के लिए एक डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाना होगा. ब्रोकरेज फर्म Zerodha (Groww के माध्यम से) या ICICI Direct, विदेशों में निवेश के लिए विकल्प देते हैं. कुछ अंतरराष्ट्रीय ब्रोकर जैसे Charles Schwab या TD Ameritrade भी भारतीय निवेशकों के लिए उपलब्ध हैं. खाता खोलने के लिए आपको पैन कार्ड, आधार और पासपोर्ट जैसे दस्तावेज की जरूरत होगी.
अमेरिकी शेयर बाजार में आप अलग-अलग विकल्पों में निवेश कर सकते हैं:
आप टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट या गूगल जैसे स्टॉक्स में सीधे निवेश कर सकते हैं. आज के दौर में ETF भी लोकप्रिय है. इसलिए S&P 500 या नैस्डैक जैसे इंडेक्स फंड्स में निवेश कर सकते हैं. इसके अलावा भारत में कई म्यूचुअल फंड्स हैं, जो अमेरिकी बाजार में निवेश करते हैं.
फ्रैक्शनल इंवेस्टिंग की सुविधा
अमेरिकी कंपनियों के शेयर की कीमतें बहुत ज्यादा हैं, ऐसे में अगर आपका बजट कम है, तो फिर कई प्लेटफॉर्म फ्रैक्शनल शेयर खरीदने की सुविधा देते हैं, जिससे आप कम राशि में भी महंगे स्टॉक्स खरीद सकते हैं. उदाहरण के लिए फिलहाल गूगल के शेयर की कीमत करीब 190 डॉलर है, लेकिन फ्रैक्शनल के जरिये आप इस शेयर में 1 डॉलर भी लगा सकते हैं. यानी आप विदेशी बाजारों महज एक डॉलर से भी निवेश की शुरुआत कर सकते हैं. आप फ्रैक्शनल इंवेस्टिंग की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं. फ्रैक्शनल इंवेस्टिंग एक ऐसा तरीका है, जिससे यह काम आसानी से हो सकता है.
बता दें, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत कोई भी भारतीय प्रति वित्तीय वर्ष $250,000 तक विदेश में निवेश कर सकते हैं. इस राशि का उपयोग अमेरिकी शेयर बाजार में भी निवेश के लिए किया जा सकता है. अपने बैंक के साथ LRS फॉर्म (A2) भरें और विदेशी मुद्रा में राशि ट्रांसफर करें. आपको अपने बैंक को यह बताना होगा कि यह राशि विदेशी निवेश के लिए है.