देश के अधिकतर शहरों में पेट्रोल के दाम 90 रुपये प्रति लीटर से ऊपर बने हुए हैं. राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल का दाम देश में सबसे अधिक है और लगभग 100 रुपये प्रति लीटर के आस-पास बना हुआ है. इसी तरह डीजल के दाम भी 90 रुपये प्रति लीटर के आसपास बने हुए हैं. (Photos : Getty Images/File)
SBI की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक मार्च में ईंधन श्रेणी में महंगाई की दर 6.17 प्रतिशत थर जो अप्रैल में बढ़कर 7.76% हो गई. जबकि देश में कोरोना की दूसरी लहर के चलते कई जगह लॉकडाउन रहा है और ईंधन की मांग घटी है, तब भी मुद्रास्फीति बढ़ी है. आसान भाषा में समझा जाए तो पहले कोई व्यक्ति अगर 100 मिली पेट्रोल के लिए मार्च में 6.17 रुपये खर्च कर रहा था तो उसे अप्रैल में इतने ही पेट्रोल के लिए ही 7.76 रुपये खर्च करने पड़े, इस तरह उसका ईंधन पर खर्च बढ़ गया. ये पेट्रोल के दाम बढ़ने का प्रत्यक्ष असर है.
SBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरों में महंगाई की दर गांव की अपेक्षा अधिक होती है. इसकी एक बड़ी वजह शहरों में महंगाई दर की गणना में ईंधन और बिजली की महंगाई दर का असर होता है. इसकी वजह गांव में ईंधन की खपत कम होना है. वहीं अगर दूसरे नजरिए से देखें तो शहरों में ज्यादा महंगाई होने की एक वजह पेट्रोल-डीजल और बिजली की कीमतें होती हैं. (Photo : PTI)
जिन लोगों के पास निजी वाहन होता है, उन्हें पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ने का दर्द ठीक से समझ आता है, इसे ऐसे समझें कि यदि आप पहले हफ्तेभर में अपनी गाड़ी में 100 रुपये का पेट्रोल भरवाते थे तो अप्रैल की ईंधन की महंगाई दर के हिसाब से आपको उतने ही पेट्रोल के लिए 107.76 रुपये देने होंगे. ये पेट्रोल के दाम बढ़ने का सीधा असर है, लेकिन क्या सिर्फ निजी वाहन रखने वालों पर ही इसका असर होता है, समझें आगे..
अगर आप ये सोचते हैं कि आप खुद का वाहन नहीं रखते तो आपको पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से क्या ही फर्क पड़ता है? तो समझ लीजिए जेब तो आपकी भी ढीली हो रही है. ये कई अन्य तरह से आपके सामने आता है, पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्ट का किराया बढ़ता है, उसके बढ़ने से फलों-सब्जियों या और अन्य कमोडिटी की कीमतों में इजाफा होता है. अगर ऑनलाइन खरीदारी करते हैं तो आपके डिलिवरी चार्जेस बढ़ सकते हैं और कई जगहों पर बस के किराये वगैरह में भी बढ़ोत्तरी होती है. ये ईंधन की कीमतें बढ़ने का अप्रत्यक्ष असर है.
पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के खर्च को पूरा करने के लिए आम आदमी अपने दूसरे खर्चों में कटौती शुरू करता है. सबसे पहले वह कपड़ों, रेस्तरां में खाना खाने जैसे शौकिया खर्चों में कटौती करता है. इसके बाद जरूरत के सामान जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि के खर्च को टालता है. वहीं खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ने से उसके राशन पर या पोषण पर होने वाले खर्च में भी कटौती होती है. खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ने का असर निम्न मध्य वर्ग और निम्न वर्ग पर सबसे अधिक पड़ता है. ये कहीं ना कहीं आपकी सेहत या मन:स्थिति पर असर डालते हैं. दूसरा अर्थव्यवस्था में लोगों की क्रयशक्ति घटती है तो उस पर भी असर होता है.