आप किसी ओर भी नज़र घुमाएं, आधी-अधूरी-बनती इमारतें आपको दिखाई पड़ ही जाएंगी. हर तरफ़ ऐसे फ़्लैट्स का अंबार दिखेगा. फिर भी घर का रोना लगा ही रहता है. ये मसला ज़रा पेचीदा है.
हर शख्स जो अपना घर खरीदने की ख्वाहिश रखता है, ज़रूरी नहीं कि उसे खरीदने की हैसियत भी रखे. लगातार बढ़ती आबादी से घरों की भयंकर कमी है सो अलग. ऐसे में कि रेंटल हाउसिंग यानि किराए पर घर को बढ़ावा देना ज़रूरी है. इससे जुड़ी उम्मीदें भी इस बजट में लगी हैं.
रेंटल हाउसिंग को मिले बढ़ावा
रेंटल हाउसिंग घरों की कमी दूर करने का एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है. लेकिन इसके लिए इनकम टैक्स कानून में बदलाव करना होगा. धारा 24 ए के तहत किराए के जरिए होने वाली कमाई पर मिलने वाली छूट को 30 से बढ़ाकर 50 फीसदी करना होगा. साथ ही महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये रियायत 100 फीसदी करनी होगी.
ऐसा करने से ना सिर्फ घरों की किल्लत दूर होगी, बल्कि घरों की कीमतों पर भी इससे दबाव पड़ेगा.
बाथरूम घर का वो हिस्सा होता है जो सीधे तौर पर आपका अपना प्राइवेट स्पेस है. पर इस स्पेस में भी बजट की बारीकियां घुस ही आती हैं. मकान अपना हो, या किराए का, ये एक ऐसा कमरा है जो अपना समझ कर ही मेंटेन किया जाता है. और इसीलिए साबुन-पानी का खर्चा हो या बाथरूम फिटिंग्स, सरदर्द सबका है.
इस क्षेत्र के तमाम पहलुओं पर हमने नज़र डाली. पर एक कड़ी और है. और वो है निवेशक. इतना तो तय है कि जितना ये क्षेत्र फलेगा-फूलेगा खरीददारों को उतना ही फायदा मिलेगा. और इस सेकटर को फायदा तब मिलेगा जब निवेशक आएंगे. रियल एस्टेट सेक्टर में निवेशकों का भरोसा जगाने के लिए कई अहम फैसलों की ज़रुरत है.
सरकार ने शेयर बाज़ार में छोटे निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए टैक्स छूट समेत तमाम तरह के एलान बीते कई बरसों में बजट के दौरान किए हैं. इसी तरह से अब रियल एस्टेट के ज़रिए पैसा बनाने की चाहत रखने वाले निवेशकों की मदद के लिए भी सरकार को आगे आना चाहिए. रियल एस्टेट सेक्टर में छोटे निवेशकों की भागीदारी के लिए भी ठोस कदम उठाना चाहिए.
रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट्स बनें
इससे छोटे निवेशक रियल एस्टेट कंपनियों के शेयरों में पैसा लगा सकेंगे. सेबी काफी समय से इन्हें लॉन्च करने की तैयारी कर रही है. सरकार इसमें निवेश करने वालों को टैक्स छूट देने पर विचार कर सकती है. इस तरह के निवेश के नए रास्ते तैयार होने से विदेशी निवेशक भी यहां पर पैसा लगाने का एक नया विकल्प ढूंढ सकते हैं.
ये मांगें कोई नई नहीं हैं. ये सालों की हसरते हैं. रोटी, कपड़ा, मकान की तीसरी तिकड़ी को हासिल करने में लोगों को पूरा-पूरा जीवन लग जाता है. क्या इस साल ईंट पत्थरों के मकान, खून पसीने की कमाई के साथ इंसाफ़ कर सकेंगे?